लहसुन की खेती करने वाले किसान कुछ चीज़ो को ध्यान में रख अपनी फसल से अधिक लाभ कमा सकते हैं। इसके लिए किसान भाइयों को यह जानकारी लेना आवश्यक है कि जिस तरह की मिट्टी है उसकी जांच कृषि विशेषज्ञ से कराकर समझें की किस प्रजाति के लहसुन की खेती से अच्छी पैदावार मिलेगी।
वैज्ञानिक के अनुसार लहसुन की खेती को बारिश के मौसम खत्म होने के बाद ही शुरू करें। इसकी खेती के लिए अक्टूबर और नवम्बर का माह सबसे अधिक उपयुक्त होता है। लहसुन की खेती उसकी कलियों से की जाती है। लहसुन की बुआई 10 सेमी की दूरी पर की जाती है, जिससे उसकी गांठ अच्छी बैठे। इसकी खेती मेड़ बनाकर करने से अच्छी पैदावार होती है।
लहसुन की खेती किसी भी खेत में की जा सकती है, लेकिन उसमें पानी नहीं रुकना चाहिए, इसकी फसल करीब 5-6 महीने में अच्छे से तैयार होती है। एक हेक्टेयर खेत में लगभग 5 क्विंटल तक लहसुन की कलियां लगेंगी। जिसमें इसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 120-150 क्विंटल तक मिलता है। लहसुन की खेती में किसान को कम लागत में अधिक लाभ मिलता है।
लहसुन का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है। इसमें एक वाष्पशील तेल पाया जाता है जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है, इसके रोजाना प्रयोग से पाचन सही रहता है और यह मानव रक्त में कोलेस्ट्रॉल भी कम करता है। लहसुन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फास्फोरस, कैल्शियम आदि प्रचूर मात्रा में पाई जाती है। इसका प्रयोग प्रतिदिन के भोजन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पाद जैसे लहसुन का अचार, लहसुन की चटनी, लहसुन का पाउडर तथा लहसुन पेस्ट आदि बनाने में भी किया जाता है। प्रसंस्करण इकाइयों के स्थापित होने से अब लहसुन कि मांग पूरे वर्ष रहती है, किसान इसकी खेती से अपनी आय कई गुणा तक बढ़ा सकते हैं।
लहसुन की प्रजातियों में एग्रीफाउंड सफेद,एग्रीफाउंड पर्वती,यमुना सफेद-1,यमुना सफेद-2,यमुना सफेद-3 है।
यह पद्धति प्रतिकूल के लिए अच्छी रहती है, इस पद्धति में सबसे पहले पौध शाला में पौधे तैयार करते हैं, छोटे-छोटे क्यारियों में कलियों को पास-पास लगा देते हैं। 40-45 दिन बाद छोटे पौधों को उखाड़कर खेत में 15 से.मी. कतार से कतार तथा 10 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी पर रोपाई कर देते हैं, इस तरह की खेती पूर्वांचल में नहीं होती है।
खेत में पर्याप्त नमी होने पर लहसुन में प्रथम सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह बाद करें, परन्तु नमी कम होने की स्थिति में बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई जरूर करें, समय-समय पर नमी के अनुसार सिंचाई करते रहें, जब फसल परिपक्व होना शुरू हो जाये तो खुदाई के 10-12 दिन पहले ही सिंचाई पूर्णतया बंद कर दें।
लहसुन में निराई-गुड़ाई अति आवश्यक है। प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरी बार 45-50 दिन बाद अवश्य करें। इससे जड़ों का विकास अच्छा होता है और साथ-साथ खरपतवार भी निकल जाता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी रसायन का प्रयोग बहुत कारगर होता है। इससे खरपतवार निकालने का अतिरिक्त खर्च बच जाता है। इसके लिए पेंडिमेथलीन 3.35 लीटर 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 72 घण्टे के अन्दर छिडकाव करने से 30 दिन तक खरपतवार से मूक्ति मिल जाती है, जिससे खरपतवार का प्रतिकूल प्रभाव फसल पर नहीं पड़ता है और उपज बढ़ जाती है।
लहसुन का भंडारण किसानों के लिए बहुत ही फायदे का सौदा है, यदि किसान अपने उत्पाद का भंडारण करना चाहते हैं तो इसके लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है। लहसुन को 6-8 माह तक 70 प्रतिशत से कम आद्रता एवं हवादार स्थान पर रख सकते हैं।