प्रवीण जोशी : संपादक
M. 9993095904
अगर मनुष्य बीमार ना पड़े तो वह शायद ही डॉक्टर के पास जाये और यदि चुनाव नहीं हो तो शायद ही नेता को अपने वोटर की याद आये। वोटर के वोट की कीमत बेशकीमती होती है फिर चाहे वह किसी निर्धन सुदामा का हो या किसी धन्ना सेठ का। विडंबना यही है कि ये दोनों अपना वोट आसानी से दान कर मतदान को महादान बताकर एक सच्चे वोटर का तमगा पा लेते है। सब जगह यही हो रहा है।
अगर किसी जाति, वर्ग या समुदाय विशेष के चुनाव हो तो यह और आसानी से मिल जाता है। विश्वास नहीं हो तो देख लीजिये। पिछले दिनों में आपको अपना भाई, काका, भतीजा, बहनोई, और न जाने क्या - क्या संबोधन से नवाज़ा गया। मुझे स्वय् भी इसकी जानकारी नहीं थी कि जो समाज बंधु मुझसे वोट की गुहार कर रहा है वो मेरा इतना करीबी रिश्तेदार है। अगर समाज में चुनाव नहीं हो तो मुझे भी पता ही नहीं चले कि मैं किस बंधु का जीजा, साला से लेकर साढ़ू, मामा, फूफा, ताऊ आदि हू। अब इतने रिश्ते - नाते गिनाने के बाद भी अगर मैं मतदान नहीं करूँ तो मुझे सामाजिक प्राणी कहने का कोई अधिकार नहीं है।
राजनीति में चुनाव लड़ने वाले उमीदवार को अपने वोटर से वोट मांगने में जितनी दिक्कत आती है उतने पापड़ उसे समाज नीति के चुनाव लड़ने में नहीं बेलना पड़ते है। राजनीति में चुनाव लड़ने वाले को मतदाताओं की कई कसौटियों पर खरा उतरना पड़ता है जैसे उमीदवार का चाल -चरित्र कैसा है? कितना पढा - लिखा है? पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है आदि। और ये सब उसे घोषणा पत्र में भरकर भी देना होता है। समाज नीति के चुनाव में इतनी पारदर्शिता स्पष्ट हो, यह जरूरी नही है।
खैर, पालीवाल ब्राह्मण समाज 24 श्रेणी, इंदौर में चुनाव पारदर्शिता के साथ हो रहे है। जो चुनावी मैदान में हैं वे बड़ी शालीनता के साथ समाज में संपर्क कर अपने लिए वोटों की गुहार कर रहे है। जो पदाधिकारी पुन चुनावी समर में उतरे हैं वे अपनी उपलब्धियों को क्रमवार गिनाकर वोट मांग रहे है और जिन्हें समाज का भरपूर आशीर्वाद नहीं मिला वे एक बार अवसर जरूर मांग रहे कि अच्छा काम नहीं करे तो अगली बार सेवा का अवसर मत देना।
समाज संस्था में जो पूर्व में पदाधिकारी रहे है वे यह कहकर वोट मांग रहे है कि काम किया है और काम करेगे। सबके पास अपने - अपने तर्क है। कोई गाँव का हवाला देकर अपने लिए वोट चाहता तो कोई अपने पिता या भाई की पुण्याई पर। कुछ उमीदवार तो इसी भरोसे अपनी चुनावी वैतरणी पार करना चाहते है।
हर उमीदवार जीत की आस लिए मैदान में है। इसलिए इसकी गुजांइश कम है कि कोई उमीदवार किसी और का खेल बिगाड़कर वोट कटवा या रायता फैलाने वाले नहीं बनना चाहते है। यानी इस चुनाव में कोई भी उमीद वार आरोप - प्रत्यारोप की राजनीति नही कर रहा है और नहीं वह बड़ी - बड़ी घोषणाये कर रहा है।
मैंने देखा है राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले लोग कितनी बड़ी -बड़ी डींगे हाँकते है ,इसलिए वे घोषणा वीर कहलाते है। ऐसे में एक कवि की कुछ लाइन याद आ गई, जो इस प्रकार है - “ हम ये कर देगे,वो कर देगे, हर घर को ताजमहल कर देगे,चपरासी को सर कर देगे। बस एक बार जितवा दो हर नारी को नर कर देगे“।
हालाँकि समाज नीति के चुनावी उमीदवारो की घोषणाये बहुत भारी- भरकम नहीं है और ना उनका कोई विजन डॉक्यूमेंट है। सभी उसी पालीवाल भवन इमली बाजार, इंदौर को और बेहतर बनाने की बात कर रहे है, जिसकी शुरुआत दो- तीन पीढी पहले हो चुकी थी। इस अवधि में हमारा समाज साइकिल से मोटर -कार में आ चुका है, चिमनी- लालटेन के युग से हेलोजन लाइट तक पहुँच गया, डिब्बो से पानी भरने वाले और कोर्ट में मुंशीगिरी करने वाले के बच्चे साफ्टवेयर इंजीनियर से लेकर डॉक्टर, वकील, चार्टेड अकांउटेट आदि बन चुके है, लेकिन समाज अलग से एक इंच जमीन भी (साकरोदा मांगलिक भवन को छोड़कर) खरीद नहीं पाया। हम सब 50 - 60 वर्षो से एक ही भवन को ऊँचा और ऊँचा कर रहे हैं और इस ऊँचाई में समाज के कितने ही चुनाव सम्पन्न हो चुके है और इस बार भी18 मई को हो ही जायेंगे।
इस बार भी यह मुद्धा चर्चा में है और इसे घोषणा का रूप भी दिया गया, लेकिन इसकी कार्य योजना क्या होगी? इसको लेकर कोई निश्चिंता नहीं है। भूमि के लिए पैसा कहां से आयेगा और किस माध्यम से आयेगा, कितनी जमीन लगेगी और यह शहर से कितनी दूरी पर होगी ?ऐसे कई प्रकार के सवाल है। ऐसे में इसका इतना जल्दी पटाक्षेप कही नजर नही आता है और यह मुद्दा अगले चुनाव के लिए भी जा सकता है, पर अपेक्षा तो यही है कि आने वाले दिनों में कम से कम हम मैरिज गार्डंन के लिए भूमि तो तलाश ही ले ,क्योकि जिस तरह जमीन के भाव आसमान को छू रहे है ,ऐसे में बाद में जमीन खरीदना हमारे लिए और भी कठिन होगा।
वैसे पालीवाल भवन की बुलंद इमारत से कभी किसी को कोई शिकायत नहीं रही । यही वह भवन है जिसे हमारे बाप - दादाओ ने अपने पसीने से सींचा है। हजारों समाज बंधुओ की भावनाएं इससे जुड़ी हुई है। जिन्होंने इस भवन का पुराना स्वरूप देखा है उन्हें इसकी दीवारो से भी गहरा लगाव है। वे जब यहाँ आते है तो दीवारे उनसे बात करती है। आखिर 6 सदी से भी अधिक पुराना यह समाज भवन है। आधी सदी से तो मैं ही इस भवन को बनते, टूटते, बिखरते और संवरते हुए देख रहा हु। हर बार यह नए रंग -रूप में निखरकर आया है और अब तो यह काफी निखर गया है।
आज समाज भवन में पहले से भी अधिक वैवाहिक समारोह हो रहे है। मरण-मौत के निमित के अलावा सूरज पूजा, ढूढ़,उद्यापन, होली मिलन,फुलडोर, अन्नकूट महोत्सव, कावड यात्रा, सम्मान समारोह आदि के कार्यक्रम सफलतापूर्वक निविघन संपन्न हो रहे है। ऐसे में पालीवाल भवन ही ठीक है, क्योकि नये मैरिज गार्डंन के शुरू होने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे है।