राजेश जैन दद्दू
इंदौर.
मुनि श्री ने कहा "...कमल जब तक अपनी नाल से जुड़ा रहता है, वह सूरज की प्रचंड किरणों के मध्य भी खिला रहता है और नाल से संपर्क टूटते ही वह मुर्झा जाता है..." ऐसे ही जो व्यक्ति धर्म से जुड़ा रहता. वह व्यक्ति हमेशा खिला खिला रहता है, जैसे कि आज आप लोग सब खिले-खिले नजर आ रहे हो.
मुनि श्री ने कहा कि दूसरा फूल है, सूरज मुखी जो कि सूरज के आगमन से खिलता है और जिधर सूरज का मुख होता है. उसी अनुसार अपना मुख मोड़ लेता है "...यदि आप चाहते हो कि आपका जीवन भी खिला खिला रहे, तो अपना मुख सूर्य अर्थात "धर्म" की ओर मोड़ लो.
मुनि श्री ने सुखी और दुःखी व्यक्ति की परिभाषा बताते हुये कहा कि संसार में सबसे सुखी व्यक्ती वही है, जो इस संसार से पार हो गये और जो अभी तक संसार में है. उन सभी को पूर्ण सुखी तो नहीं कह सकता. मुनि श्री ने कहा कि अच्छा आप लोग बताओ सुखी किसे मानते हो? "जिसके पास अथाह दौलत हो जिसका समाज में खूब मान सम्मान हो गाडी़ बंगला हो, दास दासियाँ हों खूब ठाटबाट से रहता हो अथवा ऐसा व्यक्ति जो अमीर होंने के साथ साथ खूब दान करता हो. पूजा पाठ में रूचि रखता हो. धार्मिक हो नियम संयम से रहता हो, मुनि श्री ने कहा कि दान त्याग पूजा पाठ धन संपन्नता यह धर्म का बाहरी रुप तो हो सकता है.
लेकिन धर्म का असली स्वरूप है अंतरंग की समता, जिसके अंदर समता आ जाती है. उसके अंदर से आकुलता का अभाव हो जाता है तथा सही समझ विकसित होकर सकारात्मकता का गुण प्रकट हो जाता है. उन्होंने मेरी भावना की ये लाईन "...होकर सुख में मग्न न फूले,
"संसार मैं जितने संयोग है वह सभी नष्ट होंने बाले है जिसके अंदर यह समझ विकसित हो गई, तो वह कभी विलखेगा नहीं" मुनि श्री ने कहा "धर्म हमें स्थिरता प्रदान करती है" "में एक मात्र दर्शन ज्ञान स्वभावी आत्मा हूं" यह "तत्वज्ञान" हमें अंतरंग में स्थिरता प्रदान करता है. जैसे बच्चा बेलून से खेलते समय वह फूट जाता है. तो रोने लगता है तब बड़े उस बच्चे को समझाते है कि वैलून तो होता ही फूटने के लिये है. दूसरा ले आऐंगे और वह बच्चा चुप हो जाता है.
मुनि श्री ने कहा कि धर्म हमें सही समझ के साथ स्थिरता और सहनशीलता प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति की सोच सकारात्मक हो जाती है एवं वह विसंगति में भी संगति को देखना प्रारंभ कर देता है. उन्होंने कहा कि "धर्म को एक मात्र क्रिया मत मानो, वल्कि यह जीवन के रुपांतरण की प्रक्रिया है" उन्होंने कहा कि आप लोग खूब अभिषेक पूजन स्वाध्याय प्रवचन सुनते हो लेकिन अंतरंग में समता, स्थिरता, सहनशीलता, तथा सकारात्मकता नहीं आ पाती, धर्म तो व्यक्ती की चेष्टा चहरा तथा हाव भाव से झलकता है, उसे कहना नहीं पड़ता कि वह धर्मी है.
जैसे जंहा अगरवत्ती जलती है, तो उसकी महक लगभग एक घंटे तक तो बनी रहती है, उसी प्रकार जब आप सुवह-सुवह पूजन पाठ और प्रवचन सभा से बाहर निकलो तो उसकी महक बनी रहना चाहिये. आपके आचरण से यह लगना चाहिये कि आप धर्मी हो. इस अवसर पर मुनि श्री निर्वेगसागर महाराज मुनि श्री संधान सागर महाराज सहित समस्त क्षुल्लक महाराज मंचासीन थे.
धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि स्मृति नगर जैन समाज ने भव्य अगवानी कर गुरु देव के पाद प्रक्षालन आरती कर स्मृति नगर में प्रवेश करवाया. इस अवसर पर सचिन जैन प्रफुल्ल जैन तरुण भैया आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन अभय भैया ने किया. उपरोक्त जानकारी देते हुये राजेश जैन दद्दू एवं प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया प्रारंभ में आचार्य श्री के चित्र का अनावरण एवं दीपप्रज्वलन प्रगति स्कूल के संचालक एवं धर्म प्रभावना समिति के पदाधिकारियों ने किया.
तत्पश्चात मुनि श्री का पादप्रछालन एवं कर कमलों में सौभाग्यशाली पात्रों द्वारा शास्त्र भेंट किये गये. इस अवसर पर धर्म प्रभावना समिति के अध्यक्ष अशोक डोसी आनंद नवीन गोधा महामंत्री हर्ष जैन सहित बहूत बड़ी संख्या में स्मृति नगर के पारसनाथ दि. जैन मंदिर, मुनिसुव्रतनाथ दि. जैन मंदिर के साथ दिव्याप्लेश, संगमनगर, अशोक नगर तथा प्रगति कान्वेंट स्कूल के संचालकों छात्र छात्राओं तथा श्रावक श्राविकाओं ने श्री फल अर्पित किये.