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'अमित ' छोड़ गए...अमिट यादें : देवियों और सज्जनों, मिलते है बहुत जल्द

इंदौर Published by: नितिनमोहन शर्मा Updated Thu, 19 Jan 2023 02:16 AM
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'अमित ' छोड़ गए...अमिट यादें  : देवियों और सज्जनों, मिलते है बहुत जल्द
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 इन्दौर को स्वच्छता के बाद स्वास्थ्य में भी नम्बर एक का दे गए मंत्र 

 इन्दौर को बताया अदभुत, शहर से प्रेम की अभिव्यक्ति 

 नितिनमोहन शर्मा...✍️ 

देवियों और सज्जनों। मिलते है। बहुत जल्द। फिर लौटते है।तब तक के लिए अलविदा...!!

कुछ इसी अंदाज में सदी का महानायक, सदी के सबसे साफ शहर से लौट गया। आये थे वे एक अस्पताल का लोकार्पण करने और दे गए इन्दौर को सेहत का सन्देश। शुभाशीष दे गए कि जैसे साफ सफाई में " अपन का इन्दौर " देश मे नम्बर एक है, ठीक उसी तरह स्वास्थ्य में भी नम्बर एक हो। इन्दौर को अदभुत तो बताया ही अमिताभ बच्चन ने साथ ही शहर से प्रेम का प्रकटीकरण भी किया। व्यस्तता जरूर उन्हें हमारे शहर से झटपट बिदाकर ले गई लेकिन हम सबके प्रिय ' अमित ' यहां अमिट यादें छोड़ गए। 

अपने संक्षिप्त प्रवास पर वो आये तो वाकई सबने देखा कि लाइन वही से शुरू होती है, जहा वे खड़े हो जाते है। पिता के मंसूबे भी जिसे जमीदोंज न कर सके, गरीबो के मकानों की ऐसी मजबूत बुनियाद बनवाने वाले बच्चन, कल एक अस्पताल की बुनियाद भी उसी मजबूती से रख रहे थे। अपनी सेहत को लेकर उसी बेबाकी से सच भी बोला, जिस बेबाकी से भरी महफ़िल में अपने चुनाव लड़ने वाले पिता को कह दिया था कि-झूठ बोलते है ये...एक औलाद तो पाल नही पाये..सेकड़ो मुंहबोली ओलांदे कैसे पालेंगे।

मौत पर भी क़हक़हे लगाने वाला कल बताकर गया कि कितनी बार उसका मौत से साक्षात्कार हुआ लेकिन वो वैसे ही बच गए, जैसे 786 लिखे बिल्ले से टकराकर गोली बिखर गई थी। जैसे अल्लाह पाक की दुआओं से सजी चादर आकर लिपट गई थी, जब तीन तीन गोलियां सीने में उतर गई थी। फिर भी जीने की जिद ऐसी, जैसी मांडवा लेने का जुनून था। हर हाल में मांडवा मांगता, वैसे ही हर हाल में जीना मांगता। फिर भले ही लिवर 100 में से 15 फ़ीसदी रह जाये। कोविड हो या फिर अन्य संक्रमण। अपन के बच्चन वैसे ही बीमारियों को हराकर, मारकर बाहर आ गए, जैसे पीटर और उसके पंटरों को कूट पीट कर विजय वर्मा नीली बुशर्ट में बाहर आ जाता है और गोदी पर सब तालियां पीटने लगते है।

अपना विजय ऐसा ही है। 

मर्द है वो, जिसे दर्द नही होता।

न हारी बीमारी का। न जीवन के उतार चढाव का।

बस गतिमान है वो। 

अपनी पिता की उस कविता की भांति....

वृक्ष हो भले खड़े

हो घने हो बड़े

एक पत्र छांह भी 

मांग मत मांग मत मांग मत

तू न थकेगा कभी

तू न रुकेगा कभी

तू न मुड़ेगा कभी

कर शपथ कर शपथ कर शपथ

ये महान दृश्य है

चल रहा मनुष्य है

अश्रु श्वेत रक्त से 

लथपथ लथपथ लथपथ

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ

बड़प्पन का बच्चन 

यू ही नही कोई अमिताभ बच्चन बन जाता है। जिस ऊंचाई पर आज बच्चन है, उसी कई गुना ऊंचाई पर उनका व्यक्तित्व है। सहज। सरल। सौम्य। और शांत। अपनी विराट छवि से ठीक उलट। वैसे ही, जैसे कोई आम इंसान होता है। न मिज़ाज से, न भाव भंगिमाओं से वे ये अहसास कराते है कि वे सदी के महानायक है। बिग बी है। उनसे मिलने वाला जरूर हतप्रभ होता है लेकिन वे निर्विकार भाव से मुस्कुराते रहते है। एक स्थितप्रज्ञ की भांति। जीते जी किवदंती बन चुके बच्चन अपने से मिलने वाले को भी सहज करते हैं। उसकी सांसों को थामते है कि...बस बस, शांत हो जॉइए...!! कल एयरपोर्ट पर आगमन से लेकर बिदाई तक बच्चन का ये ही स्वरूप सबने देखा। महसूस भी किया। देखने वाले जरूर ऊपर नीचे हुए, लेकिन बच्चन स्थिर ही रहे। एक वटवृक्ष के भांति। जिसकी जड़े गहरी, घनेरी और छाया घनीभूत होती है। ठीक वैसे ही। जैसे कल्पवृक्ष होता है। बच्चन बॉलीवुड के लिए ही नही, भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य के कल्पवृक्ष है। 

इन्दौर की कामना....

आप दीर्घायु हो...आप शतायु हो।

 मालवा के लजवाई दियो हो भाभी 

ए लो। तमने यो कई करियो हो भाभी। तमारे से असी उम्मीद नि थी हो मालवी भाभी। तमने तो पूरा मालवा के लजवाई दियो हो। यू तो तम भोत ज्ञान की बात करो। न कल मूरख जैसा काम करी दियो। 

अपणा मेहमान था बच्चनजी। न तम उने लंबू लंबू के री थी। वा भी जोर जोर से। वी बिचारा भी अई वई देखने लग्या कि असो कुण है जो लंबू लंबू के रियो हैं। न तम इतरा पे भी नि रुकी। ऊपर चढ़ी गी कि म्हारा संग फोटू खिंचवाई लो। असो कोई करे कई? कोई कायदा कानून रे की नि मेहमान के सारू? कई सोंचयो होगो बच्चन जी ने? कि इन्दौर में असि बयरां होण भी रे कई जो 80 साल का आदमी के लंबू लंबू कई ने झपटी पड़ी।

भाभी वी तो बच्चनजी भला आदमी है। नि तो कोई और होतो तो मिनिट नि लगती, तमारो माजणो खराब हुई जातो। न नाक हमारी भी कटी जाती। अरे तम तो खुद ही ज सेलिब्रिटी हो ओ। असो कई करो। तमारे सब लाड़ से देखे न सुने। अब ध्यान राखजो। तमारा व्वेवार से तो मालवा की मेहमाननवाजी झलकनी चईये नि? फिर तम तो कल जबरन ही हाबली गाबली हुई गी। सबके बुरयो लग्यो।

तो म्हने तम्हारे बताई दियो। अब यो तमारे पे है कि तम इस्से सबक लेव या हम पे नाराज हुई जाव? हमारो काम तो खरो खरो बोलवा, लिखवा को है। हम " पक्का इन्दौरी " जो ठहरिया।

 फ़्यूजन का मैनेजमेंट : इंदौर में जन्मी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी फ्यूजन इवेंट के हाथों में थी पूरी कमान। फ्यूजन ने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के आगमन पर सुनियोजित इवेंट मैनेजमेंट कर एक और इतिहास रचा। फ्यूजन इवेंट पूरे हिंदुस्तान में काम कर रहा है पर जब अपने शहर की बात आती है तो फ्यूजन टीम अपना सब कुछ उस इवेंट मैनेजमेंट मैं निछावर कर देती है।  बीसीएम कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के शुभारंभ अवसर पर फ्यूजन टीम के लीडर सुनिल अग्रवाल ने टीम के साथ इस बहुप्रतीक्षित इवेंट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया

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