इंदौर| मालवा, निमाड सहित इंदौर पालीवाल समाज 24 श्रेणी एवं पालीवाल बजरंग मंडल ने भी गणगौर महोत्सव पर गणगौर माता की पूजा का आयोजन किया। जिसमें पालीवाल समाज की मातृशक्ति ने गणगौर माता की विशेष रूप से पूजा की ओर मातृशक्ति के साथ युवतियाँ ने पारंपरिक मंगल गीत गाते गणगौर माता का महोत्सव राजस्थानी पारंपरिक रूप से मनाया। विशेष रूप से गीत गाने के लिए आस-पास की मातृशक्ति के साथ युवतियाँ को तो बुलाया ही जाता है, कई जगह गणगौर तीज का उद्यापन किया गया। कल गणगौर महोत्सव श्री चारभुजानाथ मंदिर परिसर पर पालीवाल बजरंग मंडल द्वारा मनाया गया जिसके कारण मातृशक्ति के साथ युवतियाँ का उत्साह चरम पर रहा जो देखते ही लायक था। इस अवसर पर मौजूद सभी समाजबंधुओ ने स्वरूचि भोज में प्रसाद ग्रहण किया।
मातृशक्ति ओर युवतियाँ ने गणगौर महोत्सव के दौरान समाज की समस्त मातृशक्ति के सहयोग से कल शाम 5 बजे श्री चारभुजानाथ मंदिर परिसर से गणगौर माता की गाजे, बाजे के साथ भव्य शोभायात्रा हेमिल्टन रोड, किशनपुरा, राजबाडा, सुभाष चैक चैपाटी, इमली बाजार होती तिलक पथ तक निकाल कर नगर भ्रमण कराया गया। गणगौर माता पुनः श्री चारभुजानाथ मंदिर परिसर पहुंची। उसके बाद गणगौर माता का पूजन मातृशक्ति ने किया। मनमोहनी घुमर, ईसर एवं गणगौर की प्रतिमा को आकर्षक श्रृंगार कर सजाया गया। गणगौर के पारंपरिक मंगल गीत गए। पालीवाल बजरंग मंडल की अपील पर समस्त मातृशक्ति ने गणगौर की सवारी में पधारकर इस राजस्थानी पारंपरिक महोत्सव को भव्य सफल बनाया।
देखा जाये तो गणगौर मूलतः राजस्थानी पर्व है, लेकिन मालवा और निमाड में भी इसकी धूम रहती है। घरों में गणगौर को श्रृंगारित कर बैठाया जाता है। कहीं गणगौर बैठती है तो कहीं गणगौर के साथ ईश्वरजी भी बैठाकर पूजा की जाती है। इस आयोजन को लेकर पालीवाल समाज की मातृशक्ति को विशेष इंतजार रहता है, इसी दौरान श्रंृगारित होकर मातृशक्ति नई-नवेली दुल्लन बनकर गणगौर माता का पूजन कर सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती है तो युवतियाँ अपने लिए जीवन साथी का वरदान मांगती है। माता जी दोनों को आशीर्वाद प्रदान कर खुशहाल होने का वरदान देती है।
पालीवाल समाज के साथ अन्य समाजों में भी गणगौर रखने वाली मातृशक्ति, युवतियां के घर में एक उत्सव का माहौल बन जाता है। इस दौरान गाना, बजाना, नाच होता है। गणगौर उत्सव मस्ती का पर्व है। गेहूँ के ज्वारे के साथ इसर, गणेशजी की पूजा करते हैं। इनको रोजाना गीत गाकर भोग लगाते हैं और पानी पिलाते हैं। 16 श्रृंगार कर और बिनोरा निकालती हैं।
गणगौर महोत्सव में गणगौर माता की अन्य समाज में भी खुब घुम मची। गणगौर की स्थापना होली के दिन की जाती है। इसके बाद अठारह दिनों तक रोज सुबह-शाम इसे पूजा जाता है। इसमें राजस्थानी, माहेश्वरी व मारवाडी समुदाय की कुँवारी लडकियां व नई-नवेली दुल्हनों के लिए हर रोज ही किसी उत्सव से कम नहीं है। अच्छे पति की कामना से गणगौर तैयार कर रोज पूजा करने का सिलसिला होली के दिन से ही शुरू होता है जो सतत् जारी रहता है।
मातृशक्ति, युवतियां पहले घर पर ही मिट्टी से गणगौर की मूर्तियां बनती थीं, लेकिन अब मार्केट में रेडीमेड गणगौर मिलने से आसनी हो गई। अठारह दिनों तक गणगौर पूजने के बाद आखिरी दिन पक्की रसोई बनाकर प्रसाद भोग लगाया जाता है। शुरू से लेकर अंतिम दिन तक सुबह से ही घर में उत्सव सा माहौल रहता है। घर में पक्की रसोई के तौर पर विशेष रूप से खीर, पुडी, सीरा, लप्सी बनाकर उसे प्रसाद के रूप में चढाया जाता है। इसमें युवतियाँ व महिलाएँ अपनी गणगौर पर सजाकर प्रतियोगिता में हिस्सा लेती हैं। इसके बाद मंदिर या गार्डन में इसे घुमाकर तालाब में विसर्जन किया जाता है।
इंदौर चारभुजानाथ मंदिर में गणगौर महोत्सव पर मातृशक्तियो ओर युवतियों ने धूम-धाम से गणगौर माता की पूजा-अर्चना की और मातृशक्ति, युवतियों ने अपने राजस्थानी वेशभूषा के साथ पारंपरिक मंगल गीत गाकर महोत्सव मनाये जाने पर पालीवाल बजरंग मंडल के कार्यकर्ताओं ने मातृशक्तियों, युवतियों के साथ समाज के वरिष्ठजनों का तहेदिल से आभार माना। जिसके चलते आयोजन सफल हुआ ओर कार्यक्रम में चार चाँद लग गए।