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मेधा पाटकर को बड़ा झटका : मानहानि मामले में कोर्ट ने माना दोषी

ज्योतिषी Published by: paliwalwani Updated Sat, 25 May 2024 01:34 AM
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मेधा पाटकर को बड़ा झटका : मानहानि मामले में कोर्ट ने माना दोषी
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नई दिल्ली. दिल्ली की एक अदालत ने शिकायत दर्ज होने के करीब 23 साल बाद ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ (एनबीए) की नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को उनके खिलाफ दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल वी के सक्सेना की ओर से दायर मानहानि मामले में शुक्रवार को दोषी ठहराया। अदालत ने कहा कि प्रतिष्ठा ‘सबसे मूल्यवान संपत्तियों’ में से एक है और समाज में व्यक्ति की स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

23 साल पहले दायर किया था मामला

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर के बयानों को मानहानि के समान और "नकारात्मक धारणा को उकसाने के लिए तैयार किया गया करार देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता को आईपीसी के तहत आपराधिक मानहानि के अपराध का दोषी ठहराया, जिसके लिए अधिकतम दो साल तक साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। सक्सेना ने यह मामला नवंबर 2000 में उस वक्त दायर किया था, जब वह ‘नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज’ के अध्यक्ष थे। सक्सेना ने उक्त मामला पाटकर द्वारा उनके खिलाफ जारी की गई एक अपमानजनक प्रेस विज्ञप्ति के लिए दायर किया था।

'प्रतिष्ठा सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक'

मजिस्ट्रेट ने 55 पेजों के अपने फैसले में कहा, 'प्रतिष्ठा एक व्यक्ति के पास मौजूद सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक होती है, क्योंकि यह व्यक्तिगत और पेशेवर, दोनों संबंधों को प्रभावित करती है और समाज में किसी व्यक्ति की स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है।' उन्होंने कहा कि सक्सेना को "देशभक्त नहीं, बल्कि कायर कहने वाला और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाने वाला पाटकर का बयान न केवल अपने आप में मानहानि के समान है, बल्कि इसे नकारात्मक धारणा को उकसाने के लिए गढ़ा गया था।

साल 2000 से जारी है कानूनी लड़ाई

उसने कहा कि बयान जारी करने के खिलाफ पाटकर के बेबुनियाद दावों और बहानों पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है और आरोपों की गंभीरता और सटीकता से यह उजागर होता है कि उन्होंने जानबूझकर ऐस कदम उठाया था और उनका प्राथमिक उद्देश्य सार्वजनिक रूप से सक्सेना की विश्वसनीयता और ईमानदारी को कमतर करना था। पाटकर और सक्सेना के बीच वर्ष 2000 से ही एक कानूनी लड़ाई जारी है, जब पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के विरुद्ध एक वाद दायर किया था। सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर उनके (सक्सेना) खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस को मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए भी पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए थे।

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