मैंने आज खाना नहीं खाया। नहीं भाया । स्वाद की कोई दिक्कत नहीं थी। दरअसल , मैं उन परिवारों के बारे में सोच रहा हूं,जिनका इंदौर बावड़ी हादसे के बाद जीवन भर के लिए खाना_ पीना हराम हो गया है । कोई घोषणा कहती है कि पांच लाख रुपए प्रति मृतक हमने मुवावजे के रूप में दिए हैं, तो कोई इस घोषणा में एक दो लाख और जोड़ देता है। ये तो वैसा ही हुआ न साहब कि मौतें बिकती है ,बोलो कितने में खरीदोगे। आप यकीन करें या नहीं करे यह आप पर है, लेकिन हमारी जानकारी कहती है कि शवों के पोस्टमार्टम ही नहीं हो पा रहे ।वहां भी लाइनें लगी हुई है। परिजन जान पहचान और रसूखदार लोगों को बार बार फोन कर रहें है कि हमारे मृतक का पोस्टमार्टम तो समय पर करवा दो भाई, ताकि हम दाह_ संस्कार तो विधि_ विधान और समय पर कर सकें। कुछ लोगों को आशंका यह भी है कि यदि पोस्टमार्टम में देरी हुई तो उनके परिजनों के शव सड़ भी सकते हैं।
प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराजसिंह चौहान एक टीवी समाचार चैनल पर आकर सबसे पहले यह कहते है कि इतने लोगों को बचा लिया गया है। और जानें बचाने का प्रयास कर रहें है वे आगे वे कहते है कि समंधित अफसरों को बचाव कार्य में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं। वाह साहब ! वाह!इसका मतलब तो यह भी ही सकता है कि आपके उक्त निर्देश के पहले तक रेस्क्यू ऑपरेशन आराम से चल रहा था। मीडिया की एक खबर तो यह भी कहती है कि वैसे भी बचाव कार्य लगभग एक घंटे बाद शुरू हुआ। जान लें कि ऐसे मुश्किल ,जटिल और कठिन वक्त में सेना को तत्काल तलब किया जाता है। इंदौर में बावड़ी हादसे के दिन सेना तलब तो की गई, लेकिन मीडिया की जानकारी के अनुसार रात एक बजे के आसपास जबकि हादसा सुबह ग्यारह बजे के पहले ही हो गया बताया जाता है। यह भी जन लेना आवश्यक है कि सेना की कुमुक इंदौर से मात्र आधे घंटे की दूरी पर स्थित अंबेडकर नगर (महू) में अंग्रेजों के जमाने से उपलब्ध रहती है।
एक किस्सा तबके आंध्र प्रदेश का है। किसी हादसे में उक्त राज्य के कुछ नागरिकों की मृत्यु हो गई थी। शायद हादसा आंध्र प्रदेश के बाहर हुआ था। आंध्र प्रदेश की तत्कालीन टी. एन.रामाराव सरकार की संवेदन शीलता और जिम्मेदारी का उदाहरण देखिए कि तत्कालीन मुख्यमंत्री टी. एन.रामाराव हैदराबाद रेलवे स्टेशन पर एक _एक शव और घायल को पूरे सम्मान और एहतियात से बोगियों से उतरवाने की देखरेख खुद कर रहे थे।और , इंदौर के तमाम नेता तो न जानें किस मिट्टी के बने हुए है। ये लोग घायलों का हालचाल पूछने तत्काल अस्पताल पहुंच गए , जबकि इनकी सबसे पहले जरूरत घटना स्थल पर थी, क्योंकि वहां मृतकों और घायलों के लिए स्ट्रेचर तो ठीक, चादरें भी उपलब्ध नहीं थी। सुबह में इन नेताओ में से कुछ के अस्पताल की नीली केप लगाए फोटो भी कुछ अखबारों में छप गए।
ये ,तो वैसा भी हो सकता है न कि फलां ने भिया संघर्ष करो , हम तुम्हारे साथ हैं । इस मिज़ाज के नारे अक्सर चुनाव के वक्त दिए जाते हैं । अजीब संयोग है मध्य प्रदेश विधानसभा के आम चुनाव कुछ ही महीनों बाद होने जा रहे हैं । याद आ रहे हैं वो दिन ,जब हवा कोरोना नाम की मौत सरे आम बांट रही थी।एक बार हुआ यह कि कहीं से सड़क मार्ग से ऑक्सीजन टैंकर इंदौर आए थे। उन्हें कुछ स्थानीय नेताओं ने इन्दौर की सीमा पर ही रोक लिया था। फिर ,उन टैंकरों पर बाकायदा रंगीन गुब्बारे लगाए गए। फिर श्री फल या नारियल बधारा गया। इस भावना का निरादर करने जैसी कोई बात नहीं है ,लेकिन पता चला कि इन वाह वाही बटोरू गतिविधियों के कारण उक्त ऑक्सीजन टैंकर अपने गंतव्यो पर विलंब से पहुंच पाए थे।
किसी दार्शनिक ने कहा था कि किसी की हत्या कर देने से ,तो फिर भी माफी मिल सकती है , लेकिन जब आप अपने को जन सेवक ,और जन प्रतिनिधि चुनने वाले बेबस लोगों के विश्वास ,और आस्था की हत्या कर देते हैं ,तो दुनिया की किसी कोर्ट कहचरी में उसका कोई माफीनामा स्वीकार नहीं किया जाता। बेहद भारी मन से। काश यह सब लिखने की नौबत नहीं आती ।
स्वतंत्र पत्रकार