रेपोर्ट : रविंद्र आर्य
जैन संत आचार्य सूर्य सागर महाराज के प्रवचनों में सामाजिक और ऐतिहासिक तथ्यों का गहन विश्लेषण देखने को मिलता है। उनकी शिक्षाएं न केवल अतीत की अनदेखी सच्चाइयों को उजागर करती हैं, बल्कि समाज में एकता और समरसता का संदेश भी देती हैं। उनके विचारों में जातिगत भेदभाव को समाप्त कर, कर्म और कर्तव्य के आधार पर समाज को एकजुट करने की प्रेरणा निहित है।
सूर्य सागर महाराज ने अपने प्रवचनों में "चमार" शब्द की ऐतिहासिक और सामाजिक व्याख्या करते हुए कहा कि यह शब्द मूल रूप से सम्मानजनक था। यह चमरवंशी समुदाय के वीरता और त्याग का प्रतीक रहा है। उन्होंने बताया कि मुगल और ब्रिटिश शासनकाल में इस शब्द को नकारात्मक रूप में बदल दिया गया, जिससे समाज में विभाजन और जातिगत भेदभाव बढ़ा।
महाराज के अनुसार, चमरवंशी समुदाय का इतिहास त्याग और बलिदान की कहानियों से भरा हुआ है। प्राचीन काल में इस समुदाय ने शासन और समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका मानना है कि अंग्रेजों द्वारा लागू "एस सी - एस टी कास्ट फॉर्मूला" हिंदू समाज को बांटने की साजिश थी।
महाराज ने अपने प्रवचनों में सिकंदर लोदी के शासनकाल का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि लोदी जैसे शासकों ने जातिगत व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अपमानजनक शब्दों और नीतियों का सहारा लिया। "चमार" शब्द का उपयोग भी इसी उद्देश्य से अपमानजनक संदर्भ में किया गया।
सूर्य सागर महाराज ने संत गुरु रविदास के योगदान की भी प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि रविदास जी ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में समानता और भाईचारे का संदेश दिया। यह प्रेरणा देती है कि व्यक्ति का मूल्यांकन उसके कर्म और चरित्र से होना चाहिए, न कि उसकी जाति से।
सूर्य सागर महाराज ने विजय सोनकर शास्त्री द्वारा लिखित पुस्तक "चमरवंशी का गौरवशाली इतिहास" का उल्लेख किया। इस पुस्तक में चमरवंशी समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक योगदान का वर्णन है।
इतिहास और परंपरा : चमरवंशी समुदाय का प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास।
सूर्य सागर महाराज का यह प्रवचन हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव से ऊपर उठने और एकजुट होने का आह्वान करता है। उनका मानना है कि समाज तभी प्रगति कर सकता है, जब हम इतिहास की गलत धारणाओं को त्यागकर समरसता के मार्ग पर चलें।
परिणाम : सूर्य सागर महाराज की शिक्षाएं न केवल प्रेरणा देती हैं, बल्कि समाज को एक मजबूत और एकजुट दिशा में ले जाने का मार्ग भी प्रशस्त करती हैं। उनके विचार हमें यह याद दिलाते हैं कि भारतीय संस्कृति की जड़ें समरसता, त्याग और परस्पर सम्मान में निहित हैं।
जैन संत सूर्य सागर महाराज द्वारा दिया गया यह प्रवचन न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करता है, बल्कि सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है। उनके विचारों में स्पष्टता और साहस झलकता है, जो समाज के विभाजनकारी तत्वों की पोल खोलता है और भारतीय इतिहास की अनदेखी सच्चाइयों पर प्रकाश डालता है।
सूर्य सागर महाराज ने जिस प्रकार "चमार" शब्द के ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ को स्पष्ट किया, वह यह समझाने का एक प्रयास है कि यह शब्द मूलतः सम्मानजनक था और चमरवंशी समुदाय के राजाओं के साहस, वीरता और त्याग का प्रतीक था। उन्होंने बताया कि मुगलों और अंग्रेजों ने इस शब्द को नकारात्मक बना दिया, ताकि भारतीय समाज में फूट डाली जा सके और जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देकर अपनी सत्ता को मजबूत किया जा सके।
महाराज ने गुरु रविदास संत का भी उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने इन विभाजनकारी नीतियों का खुलकर विरोध किया और समाज में समानता और एकता का संदेश दिया। सूर्य सागर महाराज ने यह भी कहा कि व्यक्ति का मूल्यांकन उसके कर्मों से होता है, न कि उसकी जाति या जन्म के आधार पर।
उनके अनुसार, चमरवंशी समुदाय का इतिहास त्याग और बलिदान से भरा हुआ है, और यह समुदाय प्राचीन काल से ही शासन और समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। उन्होंने यह भी जोर दिया कि अंग्रेजों द्वारा लाए गए "एस सी - एसटी कास्ट फॉर्मूले" का उद्देश्य हिंदू समाज को बांटना और उन्हें आपस में लड़ाकर कमजोर करना था।
सूर्य सागर महाराज के इस प्रवचन का उद्देश्य हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव से ऊपर उठाकर एकजुट करना और इतिहास की उन गलत धारणाओं को समाप्त करना है, जो समाज को कमजोर बनाती हैं। उनके ये विचार प्रेरणादायक हैं और समाज को एकता, समरसता और परस्पर सम्मान का मार्ग दिखाते हैं।
ऐसे संतों की शिक्षाएं हमें न केवल अपने इतिहास को समझने में मदद करती हैं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए एक मजबूत और एकजुट समाज की दिशा में प्रेरित भी करती हैं।
"चमार" शब्द का मूल और इसका ऐतिहासिक संदर्भ भारतीय समाज की जातिगत संरचना से जुड़ा हुआ है। इस शब्द का उपयोग पारंपरिक रूप से उन समुदायों के लिए किया गया, जो मुख्य रूप से चमड़े के काम से जुड़े हुए थे। यह काम समाज में आवश्यक था, लेकिन इसे "अस्पृश्य" मानते हुए निचले दर्जे का समझा गया।
सिकंदर लोदी (दिल्ली सल्तनत का शासक) ने अपने शासनकाल में जातिगत व्यवस्थाओं को मजबूत करने और समाज के कुछ वर्गों को नीचा दिखाने के लिए कई प्रकार के भेदभावपूर्ण कदम उठाए। कुछ ऐतिहासिक स्रोतों में यह उल्लेख मिलता है कि सिकंदर लोदी ने निम्न जातियों के लिए अपमानजनक शब्दों और नीतियों का प्रयोग किया, जिससे उन्हें समाज के मुख्यधारा से अलग रखा जा सके। ऐसा कहा जाता है कि "चमार" शब्द को पहली बार अपमानजनक संदर्भ में इस्तेमाल करने का श्रेय उसके शासनकाल को दिया जाता है।
पारंपरिक पेशा : "चमार" शब्द संस्कृत के "चर्मकार" (चमड़े का कार्य करने वाला) से लिया गया है। यह एक समय सम्मानित कार्य था, क्योंकि समाज को जूते, चप्पल और अन्य चमड़े की वस्तुओं की आवश्यकता थी।
भारतीय समाज में जाति व्यवस्था के साथ पेशे का भी वर्गीकरण किया गया। "चर्मकार" जैसे सम्मानजनक पेशे को धीरे-धीरे "अस्पृश्य" घोषित किया गया, और "चमार" शब्द का उपयोग अपमानजनक स्वरूप में होने लगा।
कुछ शासकों ने समाज के निचले तबके के लोगों को अपमानित करने के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग किया। सिकंदर लोदी के शासनकाल को भी इसी संदर्भ में देखा जाता है।
आज "चमार" शब्द को कई लोग अपने गौरव और पहचान का प्रतीक मानते हैं। भारत में सामाजिक जागरूकता और संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के कारण अब यह समुदाय सम्मानपूर्वक अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है।
ऐतिहासिक स्रोतों और दस्तावेजों में "चमार" शब्द के सिकंदर लोदी से सीधे संबंध के बारे में स्पष्ट और सर्वसम्मत प्रमाण नहीं मिलते। यह संभावना है कि यह शब्द पहले से प्रचलन में था और लोदी जैसे शासकों ने इसे सामाजिक विभाजन को बढ़ाने के लिए अपनाया हो।
जैन संत सूर्य सागर बताते है, अगर आप इससे संबंधित प्राचीन ग्रंथों, ऐतिहासिक विवरणों, या अन्य संदर्भों की खोज करना चाहते हैं, तो मैं और गहराई से सनातनी हिन्दू की मदद कर सकता हूँ।
सूर्य सागर महाराज एक पुस्तक के उल्लेख के बारे मे भी बताते है जो की विजय सोनकर शास्त्री की पुस्तक "चमरवंशी का गौरवशाली इतिहास" में चमार समुदाय और उनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक योगदान की विस्तृत व्याख्या की गई है। यह पुस्तक मुख्य रूप से निम्नलिखित पहलुओं पर प्रकाश डालती है:
चमार समुदाय का प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास, जिसमें उनके योगदान और सामाजिक महत्व को रेखांकित किया गया है। यह बताता है कि चमरवंशी किस प्रकार से भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।
इस पुस्तक में चमरवंशी समुदाय की कला, संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिक मूल्यों का वर्णन है। लेखक ने इसे भारतीय सभ्यता और संस्कृति का गौरव बताया है।
चमार समुदाय के महापुरुषों और उनके द्वारा किए गए योगदान को सामने लाने का प्रयास किया गया है, जो भारतीय समाज के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
पुस्तक में चमार समुदाय के संघर्षों, उनके अधिकारों के लिए किए गए आंदोलन, और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को समझाया गया है।
आधुनिक युग में चमरवंशी समुदाय की उपलब्धियों और उनके समाज में किए गए सकारात्मक योगदान पर भी प्रकाश डाला गया है।
यह पुस्तक चमार समुदाय की गौरवशाली परंपराओं और उनके योगदान को समझाने का एक प्रयास है, जो इतिहास में अक्सर अनदेखा कर दिया गया। लेखक ने इसे भारतीय समाज में समावेशिता और विविधता को दर्शाने वाले एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है।
लेखक: रविंद्र आर्य 9953510133