चुनाव आयोग द्वारा चुनावी बांड का ब्यौरा सार्वजनिक किए जाने के बाद भारत की राजनीति में हंगामा हो रहा है। कहा जा रहा है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने उन कारोबारी संस्थानों से चंदा लिया जिनके यहां सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स ने छापेमारी की थी।
अब तक जो जानकारी सार्वजनिक हुई है, उससे पता चलता है कि वित्तीय गड़बडिय़ा करने वाली कंपनियों से भाजपा ने भी चंदा लिया है। लेकिन जारी सूचनाओं की खास बात यह है कि देश के राजनीतिक दलों ने 20 हजार करोड़ रुपए का चंदा प्राप्त किया। इसमें से 14 हजार करोड़ रुपए विपक्षी दलों को मिले हैं। जो भाजपा केंद्र में सत्तारूढ़ है और 12 राज्यों में सरकारें हैं, उसे 6 हजार करोड़ का चंदा मिला है।
यानी भाजपा से ज्यादा चंदा विपक्षी दलों को मिला है। इसमें पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को एक हजार 600 करोड़ रुपए तथा कांग्रेस को एक हजार 400 करोड़ का चंदा मिला। चंदा प्राप्त करने वाले दलों में बीआरएस, बीजद, डीएमके, वायएसआर काँग्रेस, तेलगू देशम पार्टी, शिवसेना और राजद भी शामिल है। आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस से ज्यादा चंदा ममता बनर्जी की पार्टी को मिला है।
धीरे धीरे उन कारोबारियों के नाम भी सामने आ रहे हैं, जिन्होंने राजनीतिक दलों को चंदा दिया है। भाजपा और विपक्षी दल एक दूसरे पर डरा धमका कर चंदा वसूलने का आरोप लगा रहे हैं। अब चूंकि लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई है। इसलिए आने वाले दिनों में चंदे का मामला और उछलेगा। सभी दल एक दूसरे पर आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। यह सही है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसियां केंद्र सरकार के अधीन आती है, लेकिन राज्य की पुलिस और जांच एजेंसियां राज्य में सत्तारूढ़ दल के अधीन काम करती है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और राजस्थान में पिछले कांग्रेस के शासन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किस तरह जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया यह किसी से भी छिपा नहीं है। गहलोत ने तो अपनी सरकार को बचाने के लिए एजेंसियों का जमकर दुरुपयोग किया। आने वाले दिनों में पता चलेगा कि गहलोत ने भी डरा धमका कर कितनी कंपनियों से कांग्रेस को चंदा दिलवाया। यदि भाजपा ने डरा धमका कर चंदे की वसूली की है तो भाजपा भी इसके लिए जवाब देय है।
कारोबारी संस्थान सिर्फ चंदा देकर ही राजनीतिक दलों को खुश नहीं करते बल्कि अप्रत्यक्ष तौर पर भी दलों के नेताओं को खुश रखते हैं। प्रभावशाली नेताओं को सोने चांदी के जेवरात, उपहार में दिए जाते हैं। परिवार के सदस्यों को बेनामी साझेदार भी बना लिया जाता है। कारोबारी संस्थान के होशियार अधिकारी नेता की औकात देखकर सेवा करते हैं।
यदि कोई नेता घूमने फिरने के लिए कार की उम्मीद जताता है तो उसे कार भी उपलब्ध करवाई जाती है। जो नेता अपने शहर से जयपुर और दिल्ली जाना चाहता है उसे भी कार उपलब्ध करवाने से लेकर रहने तक की व्यवस्था करवाई जाती है। यानी नेता भाजपा का हो या कांग्रेस का। कारोबारी संस्थान सभी को खुश रखते हैं। यहां तक कि एक होटल मालिक भी मुफ्त में राजनीतिक दलों के कार्यक्रम करवाते हैं। यानी कारोबारियों से पैसा वसूलने में कोई राजनीतिक दल पीछे नहीं है।
चुनावी चंदे का जो ब्यौरा सामने आया है, उसमें राजस्थान से जुड़े संस्थानों ने भ ी87 करोड़ रुपए का चंदा दिया है। इसमें वंडर सीमेंट और आरके मार्बल संस्थान के मालिक अशोक पाटनी भी शामिल है। पाटनी ने 32 करोड़ रुपए का चंदा दिया है। पाटनी को अब यह बताना चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा को कितना कितना चंदा दिया है। सब जानते हैं कि अशोक पाटनी की राजस्थान में अनेक खाने हैं।
वंडर सीमेंट के प्लांट भी राजस्थान में ही लगे हुए हैं। पिछले 25 वर्षों से राजस्थान में एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस का शासन रहा है। कांग्रेस सरकार के तीन बार मुख्यमंत्री रहेे अशोक गहलोत, अशोक पाटनी को अपना भाई समझते हें। कई बार गहलोत भी पाटनी परिवार की मेहमान नवाजी का आंदन ले चुके हैं। इसी प्रकार भाजपा सरकार में दो बार मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे तो स्वयं को पाटनी परिवार का सदस्य मानती है।
वसुंधरा राजे भी अशोक पाटनी के किशनगढ़ (अजमेर) स्थित महलनुमा बंगले में भोजन प्रसादी प्राप्त कर चुकी है। राजस्थान में सरकार किसी की भी हो वह अशोक पाटनी के चांदी के थैले में रहती है। राजस्थान में वंडर ग्रुप के अलावा जीनस पावर ने 34 करोड़, ओम मेटल ने 9 करोड़, मोहित मिनरल्स ने 5 करोड़, नवल किशोर अग्रवाल ने 4 करोड़, श्री सीमेंट ने डेढ़ करोड़ और संजय अग्रवाल ने एक करोड़ रुपए का चंदा दिया है।
S.P.MITTAL BLOGGER