लेखक : रविंद्र आर्य
17 मार्च 2025, रविवार को मध्यप्रदेश महिला कांग्रेस की महासचिव रेखा विनोद जैन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भगवान परशुराम से संबंधित एक विवादित पोस्ट साझा की। इस पोस्ट में उन्होंने भगवान परशुराम को औरंगजेब से अधिक क्रूर बताया तथा हिंदुत्व को ‘खतरनाक’ विचारधारा करार दिया।
यह पोस्ट सार्वजनिक होने के बाद कांग्रेस के ही कई नेताओं ने उनकी तीखी आलोचना की और इसे भारतीय संस्कृति व आस्था के प्रतीकों का अपमान बताया। यह बयान राजनीतिक और सामाजिक हलकों में व्यापक असंतोष का कारण बना, विशेष रूप से उन वर्गों में जो भगवान परशुराम को न्यायप्रिय, धर्मरक्षक और भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में पूजते हैं।
कांग्रेस नेता रेखा जैन द्वारा हाल ही में दिया गया यह बयान, जिसमें उन्होंने भगवान परशुराम को औरंगजेब से अधिक क्रूर और हिंदुत्व को ‘खतरनाक’ कहा, न केवल ऐतिहासिक तथ्यों का विकृतिकरण है बल्कि भारतीय संस्कृति और आस्था पर भी आघात है। इस लेख के माध्यम से मैं इस भ्रामक कथन का तथ्यात्मक खंडन प्रस्तुत कर रहा हूँ।
यह सत्य है कि भगवान परशुराम ने अनेक क्षत्रियों का वध किया था, किंतु इसके पीछे का मूल कारण समझना आवश्यक है। उन्होंने उन क्षत्रियों का वध किया जो धर्म त्यागकर वासना और लोभ में लिप्त हो गए थे, जिन्होंने जनता की संपत्ति छीनकर राक्षसों की भांति उसका उपभोग किया। वे धर्मविरोधी और जनहित से विमुख शासक बन चुके थे। यदि परशुराम केवल क्षत्रिय विरोधी होते, तो वे धर्मपरायण क्षत्रिय श्रीराम को क्यों नहीं मारे? इसका स्पष्ट कारण यही है कि श्रीराम धर्म का पालन कर रहे थे और जनता के कल्याण में लगे थे।
वास्तविक अर्थ में परशुराम अधर्मी क्षत्रियों के विरुद्ध एक धर्मयुद्ध के महायोद्धा और प्रबंधक थे। उन्होंने अधर्म का नाश कर धर्म की पुनर्स्थापना की। उनका संघर्ष किसी जाति विशेष के विरुद्ध नहीं था, बल्कि उस ‘इकोसिस्टम’ के विरुद्ध था जो धर्मविरोधी होकर समाज को अधर्म में धकेल रहा था।
भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। वे ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। उनके जीवन का मूल उद्देश्य अधर्म का नाश और धर्म की पुनर्स्थापना रहा। महाभारत, रामायण और विभिन्न पुराणों में परशुराम का उल्लेख धर्मरक्षक, तपस्वी और न्यायप्रिय योद्धा के रूप में मिलता है। महाभारत के वनपर्व (अध्याय 116) में स्पष्ट उल्लेख है कि परशुराम ने उन क्षत्रियों का नाश किया जो राज्यशक्ति का दुरुपयोग कर जनता पर अत्याचार कर रहे थे।
सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि भगवान परशुराम ने श्रीराम से भेंट के समय (रामायण, बालकाण्ड) उन्हें आदरपूर्वक सम्मान दिया और उनकी धार्मिकता के कारण न केवल क्षमा किया बल्कि उन्हें अपना दिव्य धनुष भी समर्पित किया। यह इस बात का प्रमाण है कि परशुराम का संघर्ष केवल अधर्मी शासकों के विरुद्ध था, न कि सम्पूर्ण क्षत्रिय समाज के विरुद्ध।
औरंगजेब एक ऐतिहासिक अत्याचारी, कट्टरपंथी और सांस्कृतिक विनाशक था जिसने भारत में हजारों मंदिरों को ध्वस्त किया, असंख्य हिंदुओं का बलपूर्वक धर्मांतरण कराया और गुरु तेग बहादुर व समर्थ गुरु रामदास जैसे संतों का वध करवाया। भगवान परशुराम का उद्देश्य धर्म-संरक्षण था जबकि औरंगजेब का उद्देश्य धर्म-विनाश और दमन। अतः दोनों की तुलना न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है बल्कि भारतीय सभ्यता की गरिमा का भी अपमान है।
हिंदुत्व का तात्पर्य संकीर्णता नहीं है, बल्कि ‘हिंदू जीवन दृष्टि’ से है जो सहिष्णुता, विविधता, सेवा, सत्य और शांति का प्रतीक है। हिंदुत्व भारतीय दर्शन, योग, वेदांत, अहिंसा, करुणा और वसुधैव कुटुम्बकम् जैसी उदात्त भावनाओं पर आधारित है। इसे ‘खतरनाक’ कहना न केवल अज्ञानता है बल्कि करोड़ों आस्थावान भारतीयों का भी अपमान है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी हिंदुत्व ने कभी भी आक्रामक साम्राज्यवाद या धार्मिक असहिष्णुता नहीं फैलाई है।
ऐसे समय में जब समाज को एकता और सांस्कृतिक जागरूकता की आवश्यकता है, इस प्रकार के भ्रामक और उन्माद फैलाने वाले बयान अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं। हम सभी का दायित्व है कि ऐतिहासिक तथ्यों का सम्मान करें, भारतीय संस्कृति के प्रतीकों का आदर करें और किसी भी मतभेद का समाधान संवाद और विवेक के माध्यम से करें -न कि असत्य वाक्यों द्वारा समाज में विभाजन फैलाकर।