आमेट. नगर के राजमहल प्रांगण में संगीतमय रामकथा के दूसरे दिन पुष्कर दास महाराज ने मानस की चौपाई, कहँ रघुपति के चरित अपारा, कहँ मति मोरि निरत संसार से कथा की शुरुआत की. महाराज ने कहा जहां राम का निवास हो वही रामायण है. सीता जी का पारिवारिक धर्म, भरत भाई का प्रेम, लक्ष्मण की सेवा, हनुमान जी की भक्ति से हमे यही सीखना चाहिए.
इन सभी ने सेवा, प्रेम, पारिवारिक, भक्ति का परिचय दिया. बिना सत्संग विवेक नहीं होता, विवेक के बिना सत्य असत्य का ज्ञान नहीं होता. हर इंसान पर 4 व्यक्तियों का ऋण हे माता, पिता, प्रभु, ओर गुरु. इनका ऋण हम कभी नहीं चुका सकते. कथा सत्संग सुनने से विवेक उत्पन्न होता है. दूध का सार हे, मख्खन और जीवन का सार हे, विवेक तभी ज्ञान रूपी दीपक प्रज्वलित होता है. सत्य हरी का भजन ही है. यही रामायण में शिवजी अपने अनुभव से कहते है.
कथा श्रवण से जीवन में दुखो का प्रभाव कम हो जाता. दुःख हरी भजन, भक्ति, भाव से भोगने तो पड़ते ही है. दुःख सुख अपने ही कर्मो का फल लेकिन व्यक्ति दोष ईश्वर को देता है और अच्छे कार्य का श्रेय खुद स्वयं लेना चाहता है. इस अवसर पर बड़ी संख्या में महिला पुरुष उपस्थित थे.
M. Ajnabee, Kishan paliwal