हिंदू धर्म में शादी को बहुत पवित्र संस्कार माना जाता है. इसलिए विवाह से पहले कुंडली मिलान की प्रथा है. इस दौरान लड़के-लड़की के ग्रहों के साथ उनके गोत्र का भी विशेष महत्व होता है. ब्राह्मण एवं अन्य हिंदू समुदायों में एक ही गोत्र में शादी करना अनुचित माना जाता है. विद्वानों के अनुसार ऐसा करने से अपशगुन होता है. तो किन कारणों से एक ही गोत्र में नहीं की जाती है शादी, आइए जानते हैं.
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हिंदुओं में गोत्र का विशेष महत्व है. वेदों के अनुसार मनुष्य जाति विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप और अगस्त्य जैस महान ऋषियों की वशंज हैं.
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक ऋषि की अपनी प्रतिष्ठा है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति एक ही गोत्र में शादी करते हैं तो वह एक ही परिवार के माने जाते हैं.
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शास्त्रों के अनुसार एक ही वंश में जन्मे लोगों का विवाह हिंदू धर्म में पाप माना जाता है. ऋषियों के अनुसार ये गौत्र परंपरा का उल्लंघन माना जाता है.
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक गोत्र में शादी करने से विवाह दोष लगता है. इससे पति-पत्नी के सबंधों में दरार पड़ने का खतरा रहता है.
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कई विद्वानों के अनुसार एक ही गोत्र में शादी करने से होने वाली संतान को भी कष्ट झेलने पड़ते हैं. इससे संतान में कई अवगुण और रोग उत्पन्न हो सकते हैं.
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गोत्र परंपरा का नाता रक्त संबंधों से होता है. ऐसे में एक ही कुल में शादी करने से न सिर्फ होने वाली संतान में शारीरिक दोष बल्कि चरित्र और मानसिक दोष भी हो सकते हैं.
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एक ही गोत्र में कई अलग-अलग कुल होते हैं. इसलिए अलग-अलग समुदायों की अपनी परंपराएं हैं. कहीं 4 गोत्र टाले जाते हैं तो किसी वंश में 3 गोत्र टालने का भी नियम है. इससे विवाह में किसी तरह का दोष नहीं लगता है.
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परंपराओं के अनुसार पहला गोत्र स्वयं का होता है. दूसरा मां का और तीसरा दादी का गोत्र होता है. कई लोग नानी के गोत्र का भी पालन करते हैं.
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वैदिक संस्कृति के अनुसार, एक ही गोत्र में विवाह करना वर्जित है, क्योंकि एक ही गोत्र के होने के कारण स्त्री-पुरुष भाई और बहन हो जाते हैं.
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जानकारों के मुताबिक एक ही गोत्र में शादी करने से होने वाले बच्चों की विचारधारा में भी नयापन नहीं होता है. इसमें पूर्वजों की झलक देखने को मिलती है.