विभिन्न समाज संगठनों का रहा सहयोग
कांकरोली। दस साल बाद फागोत्सव में पधारे प्रभु लाडीलेश एवं प्रभु मदन मोहन के स्वागत में शहरवासियों ने पलकपावड़े बिछाए। महोत्सव को सफल बनाने में कुमावत, पुर्बिया, तेली, राजपूत, चारण, गौरवा, गुर्जर गौड़, शर्मा, सेन, जैन, माहेश्वरी, माली, बोहरा, दाधीच, नन्दवाना, शाकद्वीप, बृजवासी सहित सर्व समाज का सहयाग रहा। इसी के साथ शहर में निकाली गई सवारी में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के लिए विभिन्न समितियों के सदस्यों ने सवारी मार्ग में पेजयल, गन्ने का रस, फल आदि की व्यवस्थाएं की गई है। वहीं सदस्यों द्वारा सवारी में प्रभु के स्वागत के लिए पुष्पवर्षा की व्यवस्थाए भी की गई जिसमें श्रद्धालु दोनों प्रभु को पुष्प अर्पित कर स्वागत किया। श्रीधाम गिरिराज मथुरा से आए आठ सदस्यीय रसियागान के दल ने चंग, ढोलक, मजीरा की थाप पर रसिया गान व कीर्तन से मेवाड़ और ब्रज भूमि की सांस्कृतिक सुगंध से वातावरण सराबोर कर दिया। तृतीय पीठाधीश ब्रजेशकुमार महाराज का स्वास्थ्य सही नहीं होने के कारण वे फाग की सवारी में शामिल नहीं होंगे। उनका डोलोत्सव तक आने की संभावना है।
फाग यात्रा में सांसद हरिओम सिंह राठौड़, कांगे्रस जिलाध्यक्ष देवकीनंदन गुर्जर, सभापति सुरेशचन्द्र पालीवाल, उपसभापति अर्जुन मेवाड़ा, पूर्व सभापति आशा पालीवाल, महेश पालीवाल, अशोक रांका, प्रदीप पालीवाल, डॉ. राकेश तैलंग, त्रिलोकीमोहन पुरोहित, देवनारायण पालीवाल, कमलेश पालीवाल, नर्मदाशंकर पालीवाल, गोपाल पुरोहित, जमनाशंकर पालीवाल, मुकेश पालीवाल, राजेश पालीवाल, गौरवा समाज अध्यक्ष राजकुमार गौरवा, सनाढ्य समाज अध्यक्ष प्रमोद सनाढ्य, गुर्जर समाज अध्यक्ष बृजेश कुमार गुर्जर, जाट समाज अध्यक्ष छन्नूसिंह जाट, पार्षद अशोक टांक, हेमंत रजक, रोहित पंचोली, कुशलेन्द्र दाधीच, हिम्मत मेहता, प्रकाश गमेती, हेमंत गुर्जर, भाजपा नगर अध्यक्ष महेन्द्र टेलर, विनोद सनाढï्य, मनोरथी, कुलदीप शर्मा, प्रमोद पालीवाल, गोपाल सनाढ्य, नितेश जोशी, शैलेन्द्र पालीवाल, हेमंत लढï्ढा, प्रदीप लढï्ढा, ललित पाण्डे, मौजुद थे। प्रभु की निकली शोभायात्रा में स्वागत के लिए विभिन्न संघ संगठनों के गणमान्य नागरिक एवं जनप्रतिनधि उपस्थित रहे।
विट्ठल विलास बाग से निकाली प्रभु की सवारी में सुरक्षा की दृष्टी से जिला प्रशासन सहित पुलिस प्रशासन के कई आलाधिकारी उपस्थित रहे। उपखण्ड अधिकारी राजेन्द्र प्रसाद अग्रवाल, आयुक्त ब्रजेश रॉय, तहसीलदार गजानंद जांगिड़, कांकरोली थानाधिकारी लक्ष्मणराम विश्नोई, रामसुमेर मीणा मय पुलिस जाप्ता उपस्थित रहे।
आयोजन को लेकर द्वारिकाधीश मंदिर से लेकर विट्ठल विलास बाग तक पूरे मार्ग में आकर्षक सजावट की गई। उत्सव को लेकर द्वारिकाधीश मंदिर में ब्रज जैसा माहौल बना रहा। फाग को लेकर कांकरोली चौपाटी पर भव्य स्वागत द्वारा तैयार किया गया था। इसके अलावा विट्ठल विलास बाग से द्वारकेश चौराहे, जेके मोड़, सब्जि मण्डी, नया बाजार, बड़ा दरवाजा, रेती मोहल्ला से मंदिर तक जगह-जगह पर विभिन्न धर्म समुदाय के लोगों द्वारा स्वागत द्वार एवं बाजार को रंग-बिरंगी फर्रियों से सजाया गया था। तथा प्रभु के आलिकिक मिलन व उत्सव से गद्गद दिखाई दिए।
सवारी के द्वारिकाधीश मंदिर पहुंचन के बाद प्रभु द्वारकाधीश, प्रभु मदनमोहन, प्रभु लाडीलेश एवं छोटे मथुराधीश प्रभु के संग विराजे। वहीं सामेवार के बाद ठाकुरजी एकादशी, द्वादशी, बगीचा, रंग तेरस चौरासी स्तंभ का बगीचा, होली उत्सव में आदि में भाग लेंगे। साथ ही भव्य होली खेल की कीच मचेगी।
प्रभु द्वारकाधीश के यहां रविवार को हुए फागोत्सव के चलते सभी झांकियों के दर्शन तय समय से देर में हुए। राजभाग के दर्शन दोपहर सवा एक बजे हुए तो वहीं उत्थापन की झांकि के दर्शन फाग सवारी मंदिर में पहुंचने के बाद हुए तो शयन व आरती के दर्शन देर रात एक साथ हुए। शयन की झांकि के समय भव्य राल के दर्शन किए गए। वहीं होली रसिया स्वांग का नृत्य के दर्शन का अलौकिक भव्यतम होली फागोत्सव में हजारों श्रृद्धालुओं ने भाग लिया।
गोस्वामी पराग कुमार महाराज ने पालीवाल वाणी को बताया कि आयोजित होने वाले फाग महोत्सव की जानकारी देते हुए पराग कुमार महाराज कांकरोली के फागोत्सव मनोरथ के अनुसार सूरत गुजरात से तृतीय गृहनिधि परम मोहिनी स्वरूप श्री मदनमोहन प्रभु श्री लाडलेश प्रभु एवं ठाकुरजी दस वर्ष के बाद प्रथम होली फागोत्सव के सुअवसर पर कांकरोली पधारें जो डोलोत्सव तक मंदिर में ही विराजेगे। उन्होंने पालीवाल वाणी को बताया कि उक्त फागोत्सव का आयोजन 250 सालों के बाद हुआ।
पुष्टिमार्गीय परंपरा में वसंतोत्सव का एक विशिष्ट स्थान है। बसंत पंचमी से लेकर 40 दिन तक श्री द्वारकाधीश प्रभु संग रंगोत्सव मनाया जाता है। यह परम्परा व्रज मंडल से शुरू हुई और उसे पुष्टिमार्गीय उत्सव परंपरा में प्रस्थापित किया गया। फाग सवारी ब्रज मंडल में बसंतोत्सव के दौरान आयोजित होती रहती है। फाग सवारी का मनोरथ श्री द्वारकेश फागोत्सव समिति एवं नगर वासियों के द्वारा सामुहिक रूप से कांकरोली में पहली बार आयोजित किया गया।
ज्यों-ज्यों होली नजदीक आ रही है, त्यों त्यों कहीं खुशी, कहीं भक्ति, तो कहीं आनंद के रंग गहरा रहे हैं। पुरातन संस्कृति शृंखला की अनूठी कड़ी में फागोत्सव घर-घर धूमधाम से मनता है। मगर पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय के मंदिरों में फाग का महात्व कुछ अलग है। यहां दूर-दूर से आए श्रद्धालु कृष्ण भक्ति और आनंद रस में ऐसे सराबोर हो उठते हैं, मानो प्रभु से एकाकार हो गया हो। अब रविवार से श्री द्वारकाधीश प्रभु, मथुरेश प्रभु के साथ लाडलेश और मदनमोहन भगवान के शृंगार, दर्शन, उत्सव और फाग गायन के अलौकिक नजारे आनंदित व आह्लादित करेंगे।
राजसमंद में श्री द्वारिकाधीश के दर्शन की आतुरता में दूर-दूर से श्रद्धालु खींचे चले आते हैं और इस फाग महोत्सव के प्रति तो समूचे देशभर के लोगों का खास आकर्षण रहता है। बसंत पंचमी से प्रतिदिन राजभोग के दर्शन के वक्त मंदिर में फाग की गुलाल उड़ाई जाती है और इसी उत्सवी भाव से प्रभु का शृंगार, दर्शन और अन्य व्यवस्थाएं की जाती है। कीर्तनकार पूरे माह के दौरान फाल्गुन मास की रीतों, भगवान की रासलीलाओं और बृज संस्कृति की महिमा का गुणगान कीर्तन में करते हैं। मंदिर में धूलण्डी के दूसरे दिन डोलोत्सव पर राजभोग के अलावा अन्य चार भोग के दर्शन होते हैं। चौथे दर्शन के बाद रंग-गुलाल नहीं खेली जाती। विशेष उत्सव के दौरान शयन में राल के दर्शन होते हैं। कुंज एकादशी से पूर्णिमा तक खास उत्सवी माहौल में धर्मनगरी श्रद्धा के रंग में रंगी रहती है। इस तरह श्री द्वारकाधीश मंदिर में बृज संस्कृति का अहसास होगा।
पुष्टिमार्गीय परंपरा में आनंद, उल्लास व हर्ष को जन-जन तक प्रसारित कर उन्हें अपने आराध्य के श्रीचरणों में अनुरक्त बनाए रखने के लिए उत्सवों की शृंखलाबद्ध व्यवस्था है। पुष्टिमार्ग में चालीस दिवसीय फागोत्सव की सेवा में प्रभु को चौवा, चंदन, गुलाब, अबीर की सेवा धराने की अनूठी परंपरा है। डोल, राल, स्वांग, प्रदर्शन के माध्यम से ठाकुरजी खुद भक्तों के बीच रंग खेलकर आनंद का संचार करते हैं।
इस बार श्री द्वारकाधीश मंदिर में श्री प्रभु के साथ मथुराधीश, लाडलेश व मदनमोहन प्रभु समक्ष रसिया गान होगा। होली खेले रे नंद को लाला...., वृंदावन की कुंज गलिन...., कान्हा धरयो रे मुगट खेले होली...., होरी खेल रहे नंदलाल वृंदावन की कुंज गलीन मे...., उड़त गुलाल लाल भये बादल....,वृंदावन रचयो रे मुरारी.... सरीखे गीत गाकर प्रभु को रिझाया जाएगा। रसिया गान का राग वृंदावन व ब्रज भाषा पर ही आधारित है। साथ ही मंदिर में हो हो होरी खेलन जैइये....,आज भलो दिन है मेरी प्यारी नित सुहाग बढैये....,बाजत ताल मृदंग झांझ डफ गोरिन राग जमायो....,का कीर्तन गान भी होगा। इस बीच प्रभु के समक्ष गार गायन की भी अनूठी परंपरा है।
प्रभु द्वारिकाधीश की राजभोग की झांकि के दौरान रसिया गान करती श्रीधाम गिरिराज से आई टोली। फोटो- सुरेश भाट