कुरज। कस्बे में रामद्वारा में चल रही श्रीमद भागवत कथा के छठे दिन संत दिगिवजयराम महाराज कहा कि हम अपनी संस्कृति छोडक़र पाश्चात्य को अपना रहे है और पाश्चात्य देश हमारी संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे है जबकि सत्यता यह है की भारतीय संस्कति वैज्ञानिक प्रमाणिक है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति जिस स्थिति में भगवान को देखता है भगवान भी उसे उसी प्रतिरूप मे दिखाई देते है हमे कभी भी किसी की कमी पर हंसना नहीं चाहिए। जीवन में शत्रु का होना जरूरी है क्योंकि शत्रु हमारी शक्ति का हमें बोध कराते है। जीवन शरीर से चलता है ओर शरीर इन्द्रिमय है। हमें अपने अस्तित्व का ज्ञान होना आवश्यक है इन्द्रियों का स्वभाव बाहर का संसार इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि वह इन्द्रियों के अभ्यस्त हो चूका है यह बात उन्होंने कहा कि जब छोटा सुनता है तभी विकास होता है ओर विनय करने से ही व्यक्ति अपना विकास कर सकता है। जहां संतों का वास वहां भागवत निवास करते है जिस भूमि पर संत रहते है।
वह भूमि चारों धाम के समान होती है। जहां संत ज्ञान की धारा प्रवाह कर रहे हो वही सच्चा तीर्थ है मनुष्य तीर्थ के दर्शन करने जाता हैै लेकिन उसके मन को शांति संतो की शरण में जाने पर ही मिलती है मनुष्य को पहली भक्ति संतो की करनी चाहिए जिससे की उसका जीवन धन्य हो जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य भगवान की भक्ति सच्चे मन ना करते हुए अन्य सांसारिक वस्तुओं को पाने के लिए दिन रात भाग रहा है अगर भगवान भक्ति नित्य श्रद्वा एव विश्वास के साथ करे तो उसे सांसारिक वस्तुओ को पाने लिए नहीं भागना पड़ेगा भगवान स्वयं सब कुछ प्रदान कर देते है मनुष्य राम कथा सुनना उसे जीवन मे उतारे राम कथा से मनुष्य मोह माया के बंधन से मुक्त हो जाएगा ओर भगवान की भक्ति प्राप्त होगी। इस अववसर पर संत रमतारात महाराज, समाजसेवी व आयोजक रामगोपाल काबरा, हेमंत लढ्ढा, प्रदीप लढ्ढा, जगदीशचन्द्र काबरा, सौरभ लढ्ढा, नारायण काबरा, दीपक काबरा, उपसरपंच कमलेश राजोरा, उदयलाल जोशी, गिरीराज लावटी, संदीप टेलर, भगवतीलाल मण्डोवरा, रामदयाल काबरा, आदि उपस्थित थे।
राजसमंद। कुरज में चल रही भागवत कथा में स्वयंवर की सजई गई झांकी व भजनों पर थीरकते श्रद्धालु। फोटो-सुरेश भाट