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नानी बाई को मायरो कथा का समापन-सांवरिया सेठ रुकमणि और राधा संग भरने आए मायरा

राजसमन्द Published by: Suresh Bhat Updated Fri, 23 Dec 2016 08:11 AM
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राजनगर। घर में कितनी भी बहुएं हों, कोई अपने पीहर से कितना भी लाए मगर ससुराल के लोगों को कभी भी धन के लिए किसी को प्रताडि़त नहीं करना चाहिए। क्योकि हर किसी की आर्थिक स्थिति एक सी नहीं है। जीवन के अंत समय को इंसान को हमेशा याद रखना चाहिए। क्योंकि लकड़ी के लिए नया पेड़ लगाना पड़ेगा और ही अंतिम संस्कार के लिए नई जमीन खरीदनी पड़ेगी। सब कुछ पहले से ही तय होता है। उक्त उद्गार राजनगर क्षेत्र के सौ फीट रोड स्थित भिक्षु निलयम परिसर में चल रही नानी बाई को मायरो कथा के अंतिम दिन  कथा व्यास पंडित अनरूद्ध मुरारी ने व्यक्त किए।

कृष्ण ने छप्पन करोड़ का मायरा भरा

कथा के अंतिम दिन सबसे विशेष भाग मायरे का मंचन हुआ। इसमें श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त नरसी मेहता की पुत्री नानी बाई के लालची ससुराल में आयोजित कार्यक्रम में मायरा भरने स्वयं श्री हरि द्वारा उपस्थित होकर अपने भक्त की लाज रखने और करोड़ों रुपए का मायरा भरने की कथा का मुरारी द्वारा संगीतमय वर्णन किया गया। नानी बाईरो मायरो कार्यक्रम के अंतिम दिन को कृष्ण ने छप्पन करोड़ का मायरा भरा। नरसी भक्त ने भी कड़ी तपस्या कर भगवान को याद किया और उनको आना पड़ा और कृष्ण ने छप्पन करोड़ का मायरा भी भरा। भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त नरसी मेहता ने जब अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया तब उन्हें भगवान का साक्षात्कार हुआ। हमें भी लोभ, लालच व मोह का त्याग कर भगवान के प्रति समर्पण भाव से भक्ति करनी चाहिए। मनुष्य की तृष्णा कभी शांत नहीं होती, तृष्णा शांत हो जाए तब ही प्रभु मिलन संभव है। नानी बाई का मायरा का सजीव चित्रण के साथ पंडित मुरारी के प्रवचन और भंडारे का आयोजन किया गया। कथा के दौरान पंडित मुरारी द्वारा बीच-बीच में देखो जी सासू म्हारा पीहर का परिवार.., बाई री सासम ननद लडे छे मत नीचे आन पड़े छे.., गलियों में शोर मचाया श्याम चूड़ी बेचने आया.., गोविन्द मेरो है गोपाल मेरो है.. आदि भजनों की प्रस्तुति पर श्रोतागण महिला-पुरूष भाव-विभोर होकर नाचने लगे।
राजसमंद। भिक्षु निलयम में आयोजित नानी बाई की मायरो कथा में सजाई गई झांकि व उपस्थित श्रोतागण। फोटो-सुरेश भाट (न्यूज सर्विस)

 

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