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नपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी पर संकट के बादल : अविश्वास के घेरे में नगर पालिका परिषद

अन्य ख़बरे Published by: paliwalwani Updated Tue, 19 Aug 2025 10:59 AM
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36 में से 23 पार्षदों ने नपाध्यक्ष-उपाध्यक्ष के खिलाफ जताया असंतोष, विशेष सम्मेलन बुलाने के लिए कलेक्टर को सौंपा पत्र

भाजपा के 12, कांग्रेस के 11 पार्षदों ने शपथ पत्र सौंपकर परिषद के कामकाज पर लगाए गंभीर आरोप

नागदा. सत्ता के अहंकार में अपनाें से बेपरवाह नपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी पर संकट के बादल मंडरा रहे है. शहर के 36 में से 23 वार्डों के पार्षदों ने जिला कलेक्टर को शपथ पत्र सौंपकर नपा परिषद के कामकाज पर असंतोष जताते हुए अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के लिए नपा अधिनियम 1961 की धारा 43 (क) (2) के तहत विशेष सम्मेलन बुलाने की मांग की है.

13 और 14 अगस्त 2025 को कलेक्टर को सौंपे गए अविश्वास पत्र के माध्यम से पक्ष और विपक्ष के पार्षदों ने नपा अधिनियम 1961 की धारा 50,51, 52, 54,62,70,71 में राज्य शासन की पठित धारा 355, 356 पर अतिक्रमण कर नपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष पर नियमों के विरूद्ध कार्य करने का आरोप लगाया है.

पार्षदों के पास अविश्वास प्रस्ताव के लिए यह आधार

अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में एकजुट हुए कांग्रेस और भाजपा पार्षदों का कहना है कि 16 फरवरी 2024 को परिषद द्वारा बुलाए गए, सम्मेलन में बहुमत के अभाव में कोरम पूर्ण नहीं हुआ था. इसके पश्चात 8 अगस्त 2024 को 35 प्रस्तावों पर आधारित सम्मेलन में सभी प्रस्तावों पर पार्षदों ने असहमति जताई थी. तभी नपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष विश्वास खो चुके थे. इसलिए धारा 43 (क) (2) के तहत अविश्वास प्रस्ताव पार्षदों द्वारा लाया गया है.

विभागीय समितियां शून्य, बजट प्रस्ताव भी गिरा : पीआईसी की 80 प्रतिशत विभागीय समितियों में सदस्य बनाए गए पार्षद त्याग पत्र दे चुके हैं।  21 मार्च को बुलाए गए साधारण सम्मेलन में रखे गए बजट प्रस्ताव पर भी 13 पार्षदों ने पक्ष और 20 पार्षदों ने कार्यवृत पुस्तिका में विरोध दर्ज कराया था. विरोध में उतरे पार्षदों ने बजट प्रस्ताव पर चर्चा के पूर्व 2023-24,25 की ऑडिट रिपोर्ट सदन में रखने की मांग की थी. आज तक ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है, इस तरह नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 54 के तहत नपाध्यक्ष संतोष ओपी गेहलोत परिषद का कामकाज करने में सक्षम नहीं है. इसलिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है.

  • 1 साल पहले भी डगमगाई थी अध्यक्ष-उपाध्यक्ष की कुर्सी : नपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष के विरूद्ध पक्ष और विपक्ष के पार्षद एक साल पहले भी नपा अधिनियम के दायरे में अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग कलेक्टर को पत्र सौंपकर कर चुके थे. मगर यकायक प्रदेश सरकार कैबिनेट ने 2 साल में अविश्वास प्रस्ताव लाने के नियम में संशोधन कर इसे बढ़ाकर तीन साल कर दिया था. 

एक साल का लंबा समय मिलने पर भी नपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष विद्राेही पार्षदों से सामंजस्य नहीं बना पाए, नतीजा एक बार फिर विद्रोह की चिंगारी सुलगी है, देखना अब यह होगा कि मामले में कलेक्टर क्या कदम उठाते हैं. नियमों के दायरे में कार्रवाई हुई तो नपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी जाना तय है, लेकिन अगर सत्ता ने हस्तक्षेप किया तो विद्रोही पार्षदों का विरोध पस्त भी हो सकता है. 

  • भाजपा के ये पार्षद अविश्वास के समर्थन में : शशिकांत मावर, महेंद्र सिंह चौहान, शिवा पोरवाल, सीमाकुंवर राणावत, मंजू गगरानी, अंतिम मावर, स्नेहलता सेंगर, उषा सिसौदिया, सतीश कैथवास, उषा यादव, गाेलू यादव, साहिल शर्मा.
  • कांग्रेस के इन पार्षदों को परिषद में नहीं विश्वास : प्रमोद सिंह चौहान, विशाल गुर्जर, संदीप चौधरी, मेघा धवन, रेखा राठौर, आसिफ हुसैन, रमाशंकर मालवीय, अब्दुल शरीफ, श्यामकुंवर शेखावत, गौरी साहनी, सपना चौहान.
  • अविश्वास प्रस्ताव के लिए 27 पार्षद जरुरी : संशोधित नपा अधिनियम के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 3 चौथाई बहुमत जरुरी है. इस मान से कुल 36 में से 27 पार्षद अविश्वास प्रस्ताव पर वोट करें, तो ही नपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी छीन सकती है.  प्रत्यक्ष तौर पर पक्ष और विपक्ष के मिलाकर फिलहाल 23 पार्षद हैं, विश्वस्त सूत्रों की मानें तो 5 पार्षद ऐसे हैं, जो खुलकर सामने नहीं आ रहे, अगर मतदान की स्थिति बनी तो वे भी अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट देंगे ऐसी संभावना बन रही है.  
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