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सॉफ्टवेयर इंजीनियर को डिजिटल अरेस्ट करके 25 लाख लूटे : DG पुलिस बताकर 3 घंटे फंसाए रहे, डिटेल्स लीं : 9 लाख का प्री-अप्रूव्ड लोन लिया

जोधपुर Published by: paliwalwani Updated Fri, 30 Aug 2024 01:47 AM
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जोधपुर.

राजस्थान के जोधपुर में साइबर ठगों ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर को डिजिटल अरेस्ट करके 25 लाख रुपए लूट लिए। ठग ने खुद को मुंबई क्राइम ब्रांच का DG बताया और 3 घंटे तक डिजिटली अपनी गिरफ्त में लिए रहे।

इंजीनियर के खाते में 6 लाख रुपए थे। उसकी प्रोफाइल में ICICI बैंक से 19 लाख रुपए का लोन प्री-अप्रूव्ड था। ठगों ने लोन ओके किया 25 लाख रुपए अपने खाते में ट्रांसफर कर लिए। ठग ने उसे नसीहत भी दी कि अपना बैंक अकाउंट ब्लॉक करवा लो, नहीं तो साइबर फ्रॉड हो सकता है। दैनिक भास्कर ने पीड़ित युवक से जाना कि उन तीन घंटे में उसके साथ क्या-क्या हुआ.

फोन उठाते ही आधार कार्ड के नंबर बताकर झांसे में लिया

जोधपुर के महामंदिर इलाके में रहने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर अंकित देवड़ा (30) के पास 19 अगस्त की सुबह 10 बजे अनजान नंबरों से 2 से 3 बार कॉल आए थे। उन्होंने इस कॉल को रिसीव किया तो फोन करने वाले ने कहा- आपका नाम अंकित देवड़ा है? आपका आधार नंबर 3315 **** है? अंकित ने हामी भरी।

इसके बाद कॉलर ने कहा- कोई पास में तो नहीं है, एकांत में जाओ और बात करो। तुम मुश्किल में फंस चुके हो। तुम पर केस हो सकता है। ये है वो ट्रांजैक्शन इसमें साफ नजर आ रहा है कि ठगों ने महज 3 मिनट में 25 लाख 83 हजार रुपए निकाल कर पीड़ित अंकित के खाते को खाली कर दिया।

कॉलर ने खुद को मुंबई क्राइम ब्रांच का DG बताया

अंकित घबराकर घर के कमरे में गया और अंदर से लॉक करके कॉलर से बात करने लगा। कॉलर ने खुद को मुंबई क्राइम ब्रांच का DG बताया और कहा- तुम्हारा आधार नंबर मुंबई में कोई इमरान नाम का तस्कर यूज कर रहा है। दूसरा यह कि तुम्हारे नाम से एयरपोर्ट पर एक पार्सल रोका है। इसमें MD ड्रग, पांच पासपोर्ट, 2 लैपटॉप, 3 क्रेडिट कार्ड हैं। ऐसा लग रहा है कि तुम इंटरनेशनल तस्करी में लिप्त हो। आधे घंटे में पुलिस तुम्हारे घर पर होगी और तुम्हें अरेस्ट कर लिया जाएगा।

उसने अंकित को भरोसा दिलाया कि वह उसकी मदद कर रहा है। भरोसे में लेकर उसने अंकित से उसके बैंक की डिटेल्स और 6 महीने का बैंक स्टेटमेंट भी ले लिया और इसी के जरिए प्री-अप्रूव्ड लोन लेकर ठगी कर ली।

मदद के बहाने झांसे में लिया

अंकित के पिता पृथ्वी देवड़ा ने कहा- खुद को DG बताने वाले ठग ने अंकित से कहा- आपका नाम क्रिमिनल केस में आ चुका है। अब आपके पास बचने का एक ही रास्ता है कि आप कुछ देर हमारी इंक्वायरी में हमारा साथ दो। उसने अंकित से कहा- आप बेंगलुरु में जिस कंपनी में काम करते हैं उस एरिया में भी आप पर 5 क्रिमिनल केस दर्ज हैं। अब अगर आप चाहते हैं कि आपका नाम इन केस से हटाया जाए तो आपको इसके लिए मुंबई आना होगा।

अंकित ने कहा- मैं इस वक्त बेंगलुरु में नहीं हूं मैं अपने होम टाउन जोधपुर आया हुआ हूं। मैं मुंबई नहीं आ सकता। साइबर ठग ने कहा- ठीक है। आप फिर कुछ देर तक हमारी कार्रवाई चलने तक वीडियो कॉल पर बने रहो।

6 महीने का बैंक स्टेटमेंट, आधार, पैन और सैलरी स्लिप मांगी

ठगों ने अंकित से उसके बैंक अकाउंट की डीटेल्स मांगी। कहा- आपके खाते में संदिग्ध लेनदेन दर्ज हुए हैं। हमें इन्हीं की जांच करनी है। इसके लिए 6 महीने का बैंक स्टेटमेंट भेजो। आधार कार्ड, पैन कार्ड और सैलरी स्लिप भी चाहिए। अंकित ने ये सारी डिटेल दे दी।

ठगों ने अगले दिन फिर अंकित को कॉल किया और कहा- आपके खाते से ऐसे लेनदेन और ना हो इसके लिए आप अपना अकाउंट ब्लॉक करवाओ। ठगों ने यह इसलिए किया ताकि ब्लॉक कराने से पहले ही वे उसके खाते से रुपए निकाल लें और इसके बाद वह ट्रांजैक्शन नहीं देख पाए।

तीन बार में 25 लाख निकाले

अकाउंट ब्लॉक कराने के बाद अंकित ने ठगी की आशंका को देखते हुए 21 अगस्त को बैंक की ऐप के जरिए अपना ट्रांजैक्शन देखना चाहा। अकाउंट ब्लॉक होने के चलते वह ट्रांजैक्शन देख नहीं पाया।

इसके बाद अंकित ने अकाउंट बैलेंस जानने के लिए टोल फ्री नंबर पर कॉल किया। वो ये जानकर हैरान था कि उसके अकाउंट से 3 बार में (17 लाख, 2 लाख और 6 लाख 43 हजार) किसी ने 25 लाख रुपए निकाले हैं।

अंकित ने कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव से कहा- मेरे अकाउंट में तो 6 ही लाख थे फिर 25 लाख कैसे हो गए? 19 लाख कहां से आए? कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव ने बताया- आपने 19 लाख का लोन लिया है और इसी को विड्रॉल कर लिया है। बैंक से अकाउंट ब्लॉक कराने से पहले ये ट्रांजैक्शन हुए हैं। इसके बाद अंकित को ठगी का एहसास हुआ और उसने महामंदिर थाने में मामला दर्ज कराया।

2 मिनट में मिलता है प्री अप्रूव्ड लोन

बैंकिंग सेक्टर से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया- SBI और अन्य बैंकों से बैंक जाए बिना भी लोन मिल जाता है। ये प्री अप्रूव्ड लोन की सुविधा है, जो 2 प्रकार की होती है। इसमें बिजनेस या पर्सनल लोन उपलब्ध करवाए जाते हैं। इसमें आपको OTP के जरिए लोन दे दिया जाता है। इसके बाद सिर्फ 2 से 3 मिनट के अंदर लोन अमाउंट खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है। उन्होंने बताया इसमें ट्रांजैक्शन के आधार पर लोन का अमाउंट तय किया जाता है।

सिबिल के आधार पर मिल सकता है लोन

ICICI बैंक के लोन सेक्शन को हैंडल करने वाले अधिकारी का कहना है कि प्री अप्रूव्ड लोन ऐसे कस्टमर के लिए होता है, जिनका सिबिल अच्छा होता है। उनको एक OTP पर उनके सिबिल के आधार पर लोन दिया जा सकता है। बता दें कि अंकित की सैलरी 6 लाख महीना है। ऐसे में बैंक 19 लाख का लोन अमाउंट नॉर्मल मानती है।

नई लोकेशन, महंगी गाड़ियों की पोस्ट पर ठगों की नजर

साइबर एक्सपर्ट अंकित चौधरी कहते हैं- ऐसे ठग सोशल मीडिया के जरिए अपना शिकार ढूंढते हैं। ये सोशल मीडिया लाइक्स और उनकी लाइफस्टाइल पर नजर रखते हैं। लगातार उनकी लोकेशन को ट्रैक करते हैं। कहां-कहां घूमने गया है और कौन सी नई-नई गाड़ियों में घूम रहा है। ठग डार्क वेब से निजी जानकारियां चुराते हैं। डार्क वेब एक ऐसी जगह है, जहां से आपकी निजी जानकारियां ले लेते हैं।

बड़ा अमाउंट आया हो तो सावधान हो जाएं

साइबर एक्सपर्ट चौधरी बताते हैं कि हाउस अरेस्ट या डिजिटल अरेस्ट के मामले आजकल ज्यादा हो रहे हैं। ये उन लोगों के साथ होता है, जिनके पास हाल ही में लोन का अमाउंट आया हो। या फिर पेंशन का भारी अमाउंट आया हो। इनके निशाने पर वो लोग भी होते हैं जिनके अकाउंट में बड़ा ट्रांजैक्शन हुआ हो।

उन्होंने कहा- अपने ऑनलाइन अकाउंट को प्राइवेट रखें। लाइव लोकेशन या कहीं जाएं तो वहां की लोकेशन शेयर करने से बचें। इसके साथ ही, कोई भी आपको KYC रिन्यू करने या बैंक से जुड़ी कोई भी जानकारी अपडेट करने के लिए कॉल करें तो बिना घबराए पुलिस से मदद लें।

5 सवालों के जवाब में जानिए क्या है डिजिटल अरेस्ट? साइबर अपराधी कैसे इसका इस्तेमाल लूट के लिए कर रहे? क्या है इससे बचने के तरीके?

सवाल 1: क्या है डिजिटल अरेस्ट?

जवाब: साइबर एक्सपर्ट्स इसे कानूनी तौर पर कोई शब्द नहीं बताते हैं। हालांकि, यह साइबर अपराधियों के लिए एक नया तरीका बन गया है। इसमें अपराधी, पीड़ित को डराकर, लालच या किसी दूसरे बहाने से वीडियो या ऑडियो कॉल पर जोड़े रखते हैं। डर और लालच दिखाकर कुछ घंटे या हफ्तों तक कैमरे के सामने रखते हैं। कई मामले ऐसे भी सामने आए, जिसमें साइबर ठगों ने पीड़ितों तो सोने तक नहीं दिया।

साइबर एक्सपर्ट्स की मानें तो साइबर ठग ज्यादातर ऐसे लोगों को टारगेट करते हैं, जो रिटायर हो चुके हैं या फिर फिलहाल कोई बड़े अफसर या डॉक्टर-इंजीनियर हैं। इसके पीछे की वजह है- इनके बैंक अकाउंट में मोटी रकम होने की गारंटी। ठगों को पता होता है कि इनके अकाउंट में ज्यादा पैसे होंगे। साथ ही इनकी जिंदगी इतनी बीत चुकी होती है कि उनके कौन-कौन से दस्तावेज कहां-कहां इस्तेमाल हुए हैं, ये ठीक से इन्हें याद नहीं होगा।

सवाल 2: डिजिटल अरेस्ट के लिए क्या तरीके अपनाते हैं ठग?

जवाब: ऐसे मामलों में अक्सर देखा जाता है कि साइबर ठग खुद को पुलिस, ED कार्यालय, CBI या इनकम टैक्स ऑफिसर बताकर फोन करते हैं। बातचीत के लिए कुछ कॉमन पैतरें और बातें कहते हैं-

पहला तरीका: साइबर ठग फोन करके कहते हैं- आपके आधार कार्ड, सिम कार्ड, या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल गैरकानूनी गतिविधियों के लिए हो रहा है या हुआ है। ऐसे में अगर आप बचना चाहते हैं तो पैसे ट्रांसफर कर दीजिए।

दूसरा तरीका: ठग फोन पर कहते हैं- विदेश से आपके नाम कोई पार्सल आया है, जिसमें गैरकानूनी सामान है। ठग फोन पर खुद को कस्टम या नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का कोई बड़ा अधिकारी बताते हैं। सामने वाले इंसान का भरोसा जीतने के लिए वो उनसे जुड़ी जानकारियां बताते हैं। जांच के नाम पर अकाउंट नंबर से लेकर संवेदनशील जानकारियां निकलवाते हैं।

तीसरा तरीका: इसमें साइबर ठग बेटा या बेटी या किसी नजदीकी रिश्तेदार के नाम का इस्तेमाल करते हैं। फोन कर कहते हैं- आपके परिवार का कोई सदस्य गंभीर मामले में फंस गया है। अगर आप इन्हें छुड़ाना चाहते हैं तो पैसे ट्रांसफर कर दीजिए। ऐसे मामलों में कथित किसी बड़े अधिकारी से बात करवाकर पैसे से केस सेटलमेंट की बात करते हैं। ठग शिकार बनाने वाले व्यक्ति के बेटा या बेटी का नाम अक्सर इस्तेमाल करते हैं।

ऐसे मामलों में जब पीड़ित डर जाते हैं तो ठग वीडियो कॉल पर जुड़ने के लिए कहते हैं। अगर कोई कॉल पर जुड़ने से मना करता है तो ठग उनके घर पुलिस भेजने की बात करते हैं। वीडियो कॉल पर जुड़ने पर ठग पहले से तैयारियां करके रखते हैं। ऐसे अपराधी पहले से थाने का सेटअप, नकली SP, दरोगा, नारकोटिक्स और CBI जैसे अधिकारियों से बात कर पीड़ित को पूरी तरह फंसाने की कोशिश करते हैं।

सवाल 3: साइबर ठग कैसे तय करते हैं अपना शिकार?

जवाब: साइबर एक्सपर्ट्स बताते हैं कि डिजिटल अरेस्ट करने वाले गैंग रिटायर अफसरों, डॉक्टर, शिक्षकों और इंजीनियर का डेटा खरीदते हैं। ऐसे डेटा डार्क वेब (वो साइटों जो सामान्य सर्च में नहीं दिखती) पर आसानी से उपलब्ध होता है। साइबर अपराधी यहां से अपने टारगेट ग्रुप का डेटा खरीदते हैं। उदाहरण के लिए बैंक की डिटेल मिलने पर वो लोगों को फोन करते हैं और उन्हें उनके खाते की ही जानकारी देते हैं।

भरोसा जीतने के लिए सेविंग अकाउंट से लेकर FD तक में जमा राशि की पूरी डिटेल बताते हैं। मामला असली लगे, इसके लिए वो जिले के प्रशासनिक अफसरों के नाम का इस्तेमाल करते हैं। इन चालबाजों से सामने वाला इंसान अपराधियों पर भरोसा कर बैठता है। पीड़ित को लगता है कि वह सच में किसी मुसीबत में फंसने वाला है।

सवाल 4: डिजिटल अरेस्ट होने से कैसे बचें?

जवाब: नोएडा पुलिस ने जुलाई महीने में एक 12 पॉइंट्स की एडवाइजरी जारी की। इसमें कहा गया कि पुलिस कभी भी किसी का अरेस्ट वारंट वॉट्सऐप पर जारी नहीं करती है। नोएडा पुलिस के सामने कुछ महीनों में ही 10 डिजिटल अरेस्ट के मामले आए। पुलिस ने इसके बचने के ये तरीके बताए:

जब फोन पर कोई व्यक्ति पुलिस या वीडियो कॉल पर वर्दी पहने खुद को पुलिस या किसी जांच और सुरक्षा एजेंसी का अधिकारी बताए। ऐसे में सबसे पहले फोन नंबर के साथ आए नाम को गूगल पर सर्च करें।

वह खुद को जिस विभाग का अधिकारी या पुलिस बता रहा हो, उस डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर जाएं और पोस्टेड अफसरों की लिस्ट देखें।

कॉल पर या वॉट्सऐप कॉल पर कोई भी जानकारी साझा करने से पहले मौजूद हेल्पलाइन पर पता करें।

गूगल सर्च से उस डिपार्टमेंट की वेबसाइट से हेल्पलाइन नंबर लेकर उस पर कॉल करें।

ठग खुद को जिस डिपार्टमेंट का बता रहा है, जैसे- नारकोटिक्स कंट्रोल तो वहां के हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें। इसी तरह वो जिस कूरियर कंपनी या सर्विस प्रोवाइडर का नाम ले रहे, वहां फोन कर मामले को जांचें।

किसी भी विभाग का हेल्पलाइन नंबर डालकर गूगल या इस जैसे किसी भी सर्च इंजन पर सर्च न करें। साइबर अपराधी गूगल पर इन एजेंसियों के नाम पर फर्जी नंबर अपलोड किए होते हैं।

अगर आपने कोई पार्सल नहीं भेजा है या कोई कहे कि आपके नाम पर पार्सल मिला है, जिससे आपका मोबाइल नंबर और आधार नंबर मिला। ऐसे फोन कॉल पर भरोसा नहीं करें।

वॉट्सऐप या वीडियो कॉल पर आपका बैंक अकाउंट देखने के बाद अगर कोई पुलिस क्लियरैंस सर्टिफिकेट जारी करता है तो तय है कि ठग आपको बहकाने की कोशिश कर रहा। ठग आपका भरोसा जीतकर पैसे अकाउंट में ट्रांसफर करने के लिए ऐसा करते हैं।

अगर फोन पर कोई कानूनी कार्रवाई की धमकी देता है तो इस स्थिति में डरें बिल्कुल नहीं। ऐसा कुछ होने पर अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन को सूचित करें।

अगर आपके फोन नंबर और आधार नंबर का इस्तेमाल कर कोई बैंक अकाउंट खोलता है, इसकी जानकारी मिलते ही नजदीकी बैंक ब्रांच में जाकर अकाउंट बंद कराएं।

अगर कभी कोई फोन पर कहे कि आपके खिलाफ गैर जमानती वारंट या वारंट जारी किया गया है, तो तत्काल नजदीकी पुलिस स्टेशन जाएं। यहां कॉल के बारे में पूरी जानकारी दें, क्योंकि वारंट और गैर जमानती वारंट हमेशा कोर्ट जारी करता है। पुलिस का इसे वॉट्सऐप पर जारी करना नामुमकिन है।

कॉल या वॉट्सऐप ऑडियो-वीडियो कॉल पर कोई कहता है कि आपके अकाउंट में हवाला या मनी लॉन्ड्रिंग का पैसा आया है, तो इस पर विश्वास ना करें। पुलिस या कोई भी सरकारी संस्था ऐसी जानकारी फोन के माध्यम से नहीं देती।

सवाल 5: प्रदेश में कितना बड़ा है साइबर ठगों का नेटवर्क?

जवाब: नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट (2023) के मुताबिक, साइबर क्राइम के मामले में उत्तर प्रदेश 8वें नंबर पर है। इसमें भी साइबर क्राइम के जरिए यौन शोषण के मामले में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है। साल 2020 में UP कुल 11,097 साइबर क्राइम के मामले दर्ज हुए। 2021 में 8,829 और 2022 में 10,117 केस दर्ज हुए।

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