इंदौर. विश्वरंग, हालैण्ड से साझा संसार, वनमाली सृजनपीठ, नई दिल्ली व प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र का ’साहित्य का विश्वरंग’ अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का आयोजन ऑनलाइन संपन्न हुआ.
इस अवसर पर विश्वरंग के सह निर्देशक लीलाधर मंडलोई ने कहा कि ’साहित्य का विश्वरंग’ आयोजन में अक्सर हम दुनिया के विभिन्न महाद्वीपों की सृजनात्मक अभिव्यक्तियों से रुबरू होकर, अलक्षित-अदेखे जीवन समाज की संस्कृति और साहित्य के रंग, ध्वनि, सौंदर्य और दृष्टि से परिचित होते हैं. प्रेम पर आधारित इस आयोजन का महत्व आज युद्ध और विस्थापन के दौर में और भी बढ़ जाता है. अस्तित्व के प्रेम को हम स्वीकार करें तो युद्ध को भी रोका जा सकता है.
इस आयोजन में कनाडा से शिखा पोरवाल ने कहा कि प्रेम पत्र केवल खत नहीं, जिंदगी हुआ करते हैं. दोहा से शालिनी वर्मा ने अपनी, मन को छूती रचना के माध्यम से बताया “बेटियां हार जाती हैं, बाप की बदनामी से...“ भारत से मीनाक्षी जीजिविषा ने मार्मिक शब्दों में बताया “तुम्हारी आवाज़ बांध ली है, दुप्पटे में टोटके सी,.एक दिन ढ़ूढ़ोगे मुझे, आधी पढ़ी किताब सी...“
केन्या से सरिता शर्मा ने भारत और केन्या, इन दो संस्कृतियों के विस्तार और इनके बीच घटते प्रेम की पाती को पढ़ा. अमेरिका से वरिष्ठ अतिथि रचनाकार नीलम जैन ने कालीदास के पात्रों को उद्धृत करते हुए कहा कि अनुराग की भाषा प्रेम, सत्यम शिवम् सुन्दरम है.
इस आयोजन के संयोजक ने सभी रचनाकारों और श्रोताओं का स्वागत वक्तव्य में कहा कि बिन प्रेम अस्तित्व के स्वरूप की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. तक्षक ने भाई बहिन के प्रेम को रेखांकित करते हुए इटालियन भाषा में फिलिप्पो सास्तेती द्वारा 1585 में, अपनी बहिन को लिखे गए पत्र का अनुवाद पढ़ा. अमेरिका से विनीता शर्मा ने इस आयोजन का सफल संचालन किया.