इंदौर : भारतीय संस्कृति में विवाह सात जन्मों का रिश्ता माना गया है. हम विवाह को सौदा नहीं, संस्कार की श्रेणी में रखते हैं. विवाह की जो आदर्श व्यवस्था भारतीय समाज में है, वैसी दुनिया के किसी देश में नहीं है. यही कारण है कि विदेशी जोड़े भी भारत आकर विवाह रचाने को लालायित देखे जाते हैं. भागवत कथा हमारे अंदर की पशुता को हटाकर मनुष्यत्व की ओर ले जाती है.
लालाराम नगर स्थित हनुमान मंदिर के पास चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में मालवा माटी के युवा संत भागवत मर्मज्ञ पं. अर्जुन गौतम ने आज रुक्मणी विवाह प्रसंग के दौरान उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। संध्या को कथा में कृष्ण रुक्मणी विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। राजपुताना शैली में बारात भी निकली और फूलों की वर्षा के बीच मेहमानों का स्वागत-सत्कार भी किया गया। जैसे ही वर-वधू ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाई, समूचा पांडाल भगवान के जयघोष से गूंज उठा। बधाई गीत पर भक्तों ने नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। कथा शुभारंभ के पूर्व भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे, गोलू शुक्ला, कैलाश राठौर, बंटी शर्मा, पूर्व पार्षद दीपक जैन टीनू, शैलेन्द्र प्रतापसिंह सेंगर, डॉ.भूपेन्द्रसिंह शेखावत, सत्यमसिंह गोल्डी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संयोजक दीपेन्द्रसिंह सौलंकी ने बताया कि शनिवार 16 अप्रैल को दोपहर 3 से सायं 6.30 बजे तक भागवत कथा में कृष्ण-सुदामा मिलन का उत्सव मनाया जाएगा।
युवा संत पं. गौतम ने कहा कि जीवन तभी महत्वपूर्ण बनेगा जब जीने का तरीका महत्वपूर्ण होगा। जिसका वर्तमान अच्छा होता है, उसका भविष्य भी अच्छा ही होगा, विशेषकर धर्मनिष्ठ लोगों के मामले में। भगवान को धर्म की हानि बर्दाश्त नहीं होती। जब-जब पृथ्वी पर अन्याय, दुराचार और अनीति का प्रभुत्व बढ़ता है, भगवान को सज्जनों की रक्षा के लिए पृथ्वी पर आकर अपनी लीलाएं करना पड़ती है। भक्तों में ही वह शक्ति होती है, जो भगवान को अपने पास बुला लेती है।