इंदौर. मध्य प्रदेश में शपथ पत्र बनवाने के लिए अब 50 की जगह 200 रुपये और अचल संपत्ति के एग्रीमेंट के लिए 1000 की जगह 5000 रुपये का स्टांप लगेगा. ऐसे 12 तरह के कामों के लिए स्टांप शुल्क में वृद्धि होने वाली है. इसके लिए विधानसभा में प्रस्तुत भारतीय स्टांप (मप्र संशोधन) विधेयक 2025 बुधवार को पारित हो गया है.
चर्चा के दौरान कांग्रेस ने विधेयक का जमकर विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन किया. इसके साथ ही वाणिज्यिक कर विभाग से जुड़े तीन और विधेयक पारित किए गए. इनमें मप्र माल सेवा कर संशोधन विधेयक 2025, रजिस्ट्रीकरण मप्र संशोधन विधेयक 2025 और भारतीय स्टांप मप्र द्वितीय संशोधन विधेयक 2025 शामिल हैं.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा, स्टांप बढ़ाने के पीछे सरकार ने तर्क दिया है कि महंगाई बढ़ रही है, इसलिए स्टांप शुल्क बढ़ाया जा रहा है. ऊपर से शुल्क बढ़ाकर जनता पर बोझ बढ़ाया जा रहा है. यह तो राजस्व की भूख और जनता से लूट है. जवाब में उप मुख्यमंत्री वाणिज्यिक कर जगदीश देवड़ा ने कहा कि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए शपथ पत्र में स्टांप शुल्क की छूट है. 11 वर्ष बाद स्टांप शुल्क में परिवर्तन किया जा रहा है. विपक्ष ने कहा कि कर से प्राप्त आय भ्रष्टाचार में जा रही है. इस पर देवड़ा ने कहा कि कर की आय विकास कार्यों में खर्च की जा रही है.
मध्य प्रदेश माल सेवा कर संशोधन विधेयक 2025 में बड़ा प्रावधान यह है कि बंधक संपत्ति के डिमाडगेजिंग की प्रक्रिया अब नहीं होगी. जगदीश देवड़ा ने कहा इससे पंजीयन शुल्क में छूट के साथ ही लोगों को पंजीयन कार्यालय के चक्कर अब नहीं काटने होंगे.
भारतीय स्टांप मप्र द्वितीय संशोधन विधेयक 2025 में यह प्रावधान है कि यदि संबंधित व्यक्ति स्टांप शुल्क की पूरी राशि नहीं चुकाता तो बकाया राशि के भुगतान पर उसे कम भुगतान की गई राशि पर एक प्रतिशत अर्थदंड और भुगतान की गई राशि पर एक प्रतिशत ब्याज लगेगा, पहले दोनों दरें दो प्रतिशत थीं.
मप्र माल एवं सेवाकर संशोधन विधेयक में कई बदलाव किए जा रहे हैं. साथ ही दो नई धाराएं जोड़ी गई हैं. इसमें एक यह है कि कुछ वस्तुओं का उपभोग हतोत्साहित करने के लिए यूनिक आइडेंटिटीफिकेशन मार्किंग अनिवार्य की जा रही है. दूसरा यह कि जीएसटी के मामले में अर्थदंड में 10 प्रतिशत राशि जमाकर ट्रिब्यूनल में अपील का अधिकार मिल जाएगा.
मध्य प्रदेश समाज के कमजोर वर्गों के लिए विधिक सहायता व विधिक सलाह (निरसन) विधेयक, 2025 : विधिक सेवा प्राधिकरण व अन्य एजेंसियां होने के चलते अब कमजोर वर्ग के लिए विधिक सहायता के संबंध में इस कानून की आवश्यकता नहीं है. इस कारण समाप्त करने के लिए विधेयक लाया गया था.