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अखिल भारतीय गीता जयंती महोत्सव में भक्तों ने लिया शहर को पांचवीं बार सफाई में अव्वल बनाने का संकल्प

इंदौर Published by: Sunil Paliwal-Anil Bagora Updated Mon, 28 Dec 2020 02:42 AM
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● देश के तीर्थस्थलों से आए संतों-विद्वानों को विदाई, महोत्सव का समापन, आज से नियमित प्रवचन

इंदौर । (विनोद गोयल...) गीता के संदेश और उपदेश केवल एक दिन गीता पाठ करने के लिए नहीं, बल्कि अपने जीवन में आत्मसात करने के लिए हैं। अर्जुन के ज्ञान में गीता के संदेश उतर गए, इसीलिए कुरूक्षेत्र के मैदान में ही उसका मोह नष्ट हो गया। हमारे आचरण में शुद्धता और शुचिता तभी आएगी, जब हम गीता को पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ आचरण में उतारेंगे। गीता केवल पूजाघर में लाल कपड़े में बांधकर रखने या न्यायालयों में झूठी कसम खाने के लिए नहीं, अपने जीवन के सभी तरह के विकारों का नष्ट करने के लिए भी प्रेरक और प्रासंगिक ग्रंथ है। गीता घर-घर में होना चाहिए।

ये प्रेरक विचार हैं, वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती के, जो उन्होंने आज सांय मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर चल रहे 63वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव के समापन सत्र में अध्यक्षीय उदबोधन देते हुए व्यक्त किए। इसके पूर्व डाकोर से आए स्वामी देवकीनंदन दास, संत जयप्रकाश दास, भदौही (उ.प्र.) के पं. सुरेश शरण, हरिद्वार से आए स्वामी सर्वेश चैतन्य, नैमिषारण्य से आए स्वामी पुरूषोत्तमानंद, गोधरा की साध्वी परमानंदा सरस्वती, उज्जैन के स्वामी वीतरागानंद आदि ने भी अपने प्रवचन में गीता, रामचरित मानस एवं अन्य धर्मग्रंथों की महत्ता बताई। समापन समारोह में ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन एवं सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी ने सभी आए हुए संतों, दानदाताओं, जिला प्रशासन, पुलिस एवं अन्य सहयोगी बंधुओं के लिए आभार व्यक्त किया। प्रारंभ में ट्रस्ट की ओर से महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल, गीता भवन हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. आर.के. गौड़, ट्रस्ट की सचिव सुश्री प्रमिला नामजोशी, अरविंद नागपाल आदि ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न तीर्थस्थलों से आए संत-विद्वानों का सम्मान कर उन्हें आगामी गीता जयंती महोत्सव में पधारने का न्यौता देकर विदाई दी गई।

● सफाई में पंचम का खिताब दिलाने में सहयोग का संकल्प - महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने सभी भक्तों को शहर को लगातार पांचवीं बार स्वच्छता के मामले में पूरे देश में अग्रणी बनाने में हरसंभव सहयोग का संकल्प दिलाया।

विष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति - गीता जयंती महोत्सव के साथ ही गत 23 दिसंबर से आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में चल रहे श्री विष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति भी संतों के सान्निध्य में यज्ञदेवता के जयघोष के बीच संपन्न हुई। इस दौरान जिला प्रशासन की गाईड लाइन का पालन करते हुए भक्तों ने सोशल डिस्टेंस, मास्क एवं सेनेटाईजर का प्रयोग भी किया। मंच का संचालन स्वामी देवकीनंदन दास ने किया।

● आज से नियमित प्रवचन - गीता जयंती महोत्सव के समापन के बाद सोमवार 28 दिसंबर से गीता भवन में सुबह 9 से 10 एवं सांय 5 से 6 बजे तक हरिद्वार से आए स्वामी सर्वेश चैतन्य के नियमित प्रवचन होंगे। इस दौरान आने वाले भक्तों से सोशल डिस्टेंस एवं मास्क का पालन अनिवार्यतः करने का आग्रह किया गया है।

● प्रवचन - महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि गीता भवन केवल इंदौर और म.प्र. ही नहीं, सारे देश में एक ऐसा तीर्थस्थल बन गया है, जहां चारों शंकराचार्यों के अलावा हर तीर्थ के महामंडलेश्वर तथा विभिन्न धाराओं के विद्वान एक मंच पर आकर हम सबका मार्गदर्शन करते हैं। कोरोना जैसी चुनौती के बीच गीता भवन ट्रस्ट ने 63वां अ.भा. गीता जयंती महोत्सव जैसा आयोजन कर सभी भक्तों पर बड़ा अनुग्रह किया है। गीता जयंती की सार्थकता तभी है, जब हम भी अर्जुन की तरह अपने मोह और विषाद से मुक्त होकर गृहस्थ धर्म का पालन करें। कोरोना जैसे संक्रमण काल में भी गीता जयंती महोत्सव का आयोजन अभिनंदनीय पुरूषार्थ है जिसके लिए गीता भवन ट्रस्ट बधाई का हकदार है। गीता हम सबका राष्ट्रीय ग्रंथ है। गीता घर-घर में होना चाहिए। अपने समस्त विकारों से मुक्ति के लिए गीता जैसे धर्मग्रंथों का आश्रय बहुत जरूरी है। धर्म क्षेत्र को कुरूक्षेत्र में बदलने का काम सबसे बड़ा है। गीता के संदेश युद्ध के मैदान में दिए गए हैं, यह भी विलक्षण घटना है। डाकोर से आए स्वामी देवकीनंदन दास ने कहा कि गीता कर्म की ओर प्रवृत्त करने वाला अदभुत और अनुपम ग्रंथ है। जिसके जीवन में गीता नहीं, उसका जीवन बिल्कुल रीता ही रहता है। ज्ञान, ध्यान और भगवान - ये तीनों गीता में मौजूद हैं, जरूरत केवल इन्हें खोजने की है। भदौही के पं. सुरेश शरण ने कहा कि सच्चा सुख संसार के बाहरी साधनों में नहीं, अपने अंदर ही मौजूद है। हम अपने अंतर्मन में बैठे हुए विकारों रूपी अंधकार को गीता जैसे ज्योतिपुंज से दूर कर सकते हैं। नैमिषारण्य के स्वामी पुरूषोत्तमानंद ने कहा कि यदि अपने चित्त को परमात्मा से जोड़ लिया तो या तो बुरे कर्म होंगे ही नहीं और होंगे भी तो वे श्रेष्ठ कर्मों में बदल जाएंगे। भारत के धर्मग्रंथों में यह बहुत बड़ी शक्ति है कि वे निष्ठा के साथ समझे जाने पर क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। संसार में अनेक आकर्षण हैं जो भगवान के प्रति पूजा और अर्चना को रोकते हैं। महापुरूषों के चरित्र का मनन और मंथन कर लेंगे तो हमारे मन के विकार दूर हो जाएंगे। गोधरा से आई साध्वी परमानंद ने कहा कि आज हम अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाने में बड़ी शान समझ रहे हैं लेकिन इसका दुष्प्रभाव यह हो रहा है कि हमारे बच्चे संस्कृति के बजाय विकृति की ओर बढ़ रहे हैं। हमारे आचार-विचार और आहार में भी बदलाव आने लगा है। यह शुभ संकेत नहीं है। गीता जैसे ग्रंथों का आश्रय ले लेंगे तो इन सभी विकृतियों से मुक्ति मिल जाएगी। हरिद्वार से आए स्वामी सर्वेश चैतन्य ने कहा कि मनुष्य का जीवन परमात्मा द्वारा प्रदत्त सर्वश्रेष्ठ उपहार है। हम सारी दुनिया की संपत्ति को अपना समझते हैं जबकि वास्तव में तो यह शरीर भी हमारा अपना नहीं है। दुनिया के सारे विवाद ‘मैं और मेरे’ से शुरू होते हैं। हमारी कामनाएं आसानी से नहीं छुटती हैं। गीता के मंत्रों में संसार की सभी चुनौतियों का सामना करने की क्षमता है। उज्जैन से आए स्वामी वीतरागानंद ने कहा कि सेवा, उपासना और भक्ति से मन की चंचलता पर नियंत्रण होता है। मन को नियंत्रित करना सबसे मुश्किल काम है लेकिन उपासना से मन की एकाग्रता संभव है। अज्ञात का नाश गीता के मंथन से ही संभव है। संसार में ज्ञान से ज्यादा पवित्र और मूल्यवान और कुछ है ही नहीं। हमारी संतान शिक्षित हो, ऐसा सभी माता-पिता चाहते हैं लेकिन शिक्षा के साथ बच्चों को संस्कार का रोपण भी जरूरी है।

● पालीवाल वाणी ब्यूरों-Sunil Paliwal-Anil Bagora...✍️

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