इंदौर। श्रीलंका में खेली गई वेस्ट एशिया बेसबॉल कप में हिंदुस्तान के लिए ब्रॉन्ज लेकर आई टीम का हिस्सा रहे इंदौर के अंकित जोशी को पहली बार देश के लिए खेलने का मौका मिला। एक मैच चूक गए, वरना सोना ही लाते, यह मलाल लेकर लौटे अंकित का खेल प्रेमियों ने सम्मान किया। कान्हा मामा की उंगली पकड़ कर चिमनबाग के बेसबॉल मैदान पर पहुंचे, इक्कीस साल के अंकित ने नौ साल में इस खेल से तमगों की बारिश कर दी। अंकित के परिवार में आज तक किसी का खेल से नाता नहीं रहा। दूर के मामा किशन पुरोहित (कान्हा) ये खेल खेलते थे, दो-चार बार इनाम लेकर आए, तो इन्हें देख अंकित की मां ने कहा कि इसे भी खेलने ले जाया करो। एक बार बेसबॉल का मैदान जो अंकित ने पकड़ा, इसके बाद स्कूल, स्टेट, नेशनल और अब इंटरनेशनल खेल कर आया है।
कल दोपहर अंकित के घर लौटने की खबर आई, तो पिता श्री राजेश जोशी (आरके) और दादा श्री प्रेमशंकर जोशी (गांव. आमली) वालों के साथ पालीवाल बजरंग मंडल की टीम रेलवे स्टेशन पहुंच गई। शहर का नाम देश के लिए रोशन करके आए अंकित जोशी का स्टेशन पर ढोल-ढमाकों से स्वागत किया गया। अंकित जोशी ने बताया कि नौ साल से नेशनल चैम्पियनशिप खेल रहा है। मध्यप्रदेश सब-जूनियर बेसबॉल का चार साल से कोच है। परिवार से भले ही किसी ने इस खेल को खेला नहीं हो, लेकिन उसके लिए यही सब कुछ है। पिता नौकरी करते हैं। खेल के लिए सुविधा जुटाने का काम अंकित ने अपने खेल से ही किया।
बेसबॉल भले ही अमेरिका का राष्ट्रीय खेल हो, लेकिन हिंदुस्तान में भी इसे पसंद किया जाता है। अंकित बताता है कि इसी साल जनवरी में इंदौर में सीनियर नेशनल टूर्नामेंट हुआ था, उसमें 27 टीमें देशभर से आई थीं, उसी में से चुने गए खिलाडिय़ों का आंध्र प्रदेश और दिल्ली में कैंप लगा था। श्रीलंका में पाकिस्तान, नेपाल, ईरान, बांग्लादेश और मेजबान श्रीलंका से मुकाबला हुआ। तीसरी पायदान के लिए ईरान को हराया था। मुझे तीन मैच खेलने का मौका मिला। इसके पहले नेशनल में तीन तमगे अंकित जोशी के पास हैं। बताता है कि यह खेल भी क्रिकेट की तरह खेला जाता है, केवल ग्राउंड का डायमेंशन अलग होता है, बैट का फर्क है। क्रिकेट से ज्यादा पॉवर इस गेम में रहता है। बाल पर चौकसी रखना पड़ती है। पीचर (बॉल फेंकने वाला), कैचर (पकडऩे वाला) और हीटर के बीच ही मुकाबला रहता है।
अंकित जोशी बताता है कि मध्यप्रदेश से दो खिलाड़ी चुने गए थे, वे इंदौर से ही हैं। इसके अलावा गौरव सेंगर भी हिस्सा था। देश की तरफ से विश्वास खैर रेफरी बनकर गए थे, वे भी इंदौर से ही हैं। एक दौर शहर ने वो भी देखा, जब टीम इंडिया में आधा दर्जन खिलाड़ी इंदौर से रहे और उन्होंने लगातार पांच साल तक देश के लिए सोना लाया। हम भी ऐसा ही कमाल करके दिख्राएंगे। अभी तो शुरुआत है। हमें भी जितेन्द्र शिंदे, गिरीश उपाध्याय, बलवंतसिंह चंदेल, शैलेन्द्र सिंह चंदेल, विशाल भैरवे और तिलक दवे की तरह खेलना है। यह हमारे इंदौर के स्टार रहे हैं। इंटरनेशनल खेलने गए तो बहुत कुछ सीखने को मिला है कि ऊंचे स्तर पर कैसे खेला जाता है। दादा प्रेमशंकर जोशी ने अंकित को गले लगाया, तो आंसू छलक आए, बोले कि पोते ने नाम रोशन कर दिया। हम तो शहर में रोजीरोटी की तलाश में आए थे और ताउम्र इसी में लगे रहे। पोते ने जो कमाल किया, उसकी खबर तो 17 जुलाई को ही लग गई थी, लेकिन असल खुशी आज उसे गले लगाकर हो रही है।
● पालीवाल वाणी ब्यूरो-शेखर बागोरा...✍
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