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पाकिस्तानी जासूस के व्हॉट्सऐप ग्रुप में भारतीय सेना के चार कर्नल और लेफ्टिनेंट कर्नल स्तर के अधिकारी, जानिए क्या है पूरा मामला

देश-विदेश Published by: Pushplata Updated Tue, 26 Jul 2022 06:18 PM
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भारतीय मिलिट्री इंटेलीजेंस के चार अधिकारियों का नाम एक पाकिस्तानी जासूस के व्हॉट्सऐप ग्रुप से जुड़े होने को लेकर सामने आया. सेना ने कार्रवाई की तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पर इन अधिकारियों को वहां राहत नहीं मिली. अब उनके वकील ने कहा है कि इस मामले में जल्द ही पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी. इन चारों अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी निजता के अधिकार की रक्षा की मांग करते हुए याचिका दायर की थी. लेकिन इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया.

इन अधिकारियों पर पाकिस्तान के एक जासूस के व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल होने का आरोप है और और जांच के दौरान उनके फोन और लैपटॉप ज़ब्त कर लिए गए थे उनके ख़िलाफ़ हुई जांच में ये पाया गया था कि वो कथित तौर पर ऐसे व्हॉट्सऐप ग्रुप का हिस्सा थे जिसमें अज्ञात विदेशी भी शामिल थे. ये भी पाया गया कि उस व्हाट्सएप ग्रुप में अनैतिक व्यवहार (यौन दुराचार) किया जाता था. इसके बाद उन्हें सेना से निलंबित कर दिया गया.

कर्नल और लेफ्टिनेंट कर्नल स्तर के अधिकारी

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने की. मिलिट्री इंटेलिजेंस के इन चार अधिकारियों में तीन कर्नल और एक लेफ्टिनेंट कर्नल स्तर के अफ़सर शामिल हैं.

पूर्व कर्नल अमित कुमार पेशे से वकील हैं और वे इस मामले में निलंबित किए गए अधिकारियों का पक्ष रख रहे हैं.सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में उन्होंने अपने क्लाइंट्स की प्राइवेसी और प्रक्रिया का पालन न किए जाने को लेकर आरोप लगाए थे. एडवोकेट कर्नल (रिटायर्ड) अमित कुमार ने बीबीसी से कहा, "सुप्रीम कोर्ट के 14 जुलाई के आदेश के ख़िलाफ़ मैं जल्द ही पुनर्विचार याचिका दायर करने जा रहा हूं."

एडवोकेट कर्नल (रिटायर्ड) अमित कुमार ने कहा, "ये पुनर्विचार याचिका सेना अधिनियम की धारा 50 (बी) की व्याख्या को लेकर दायर की जाएगी. ये प्रावधान ऑपरेटिव नहीं रह जाएगा. ये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित होगा. इन आदेशों के कहीं व्यापक प्रभाव होंगे और इस मामले में सभी रिकॉर्ड्स को मांगना भी ज़रूरी होगा." निलंबित किए गए सेना के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में पूछा था कि क्या उनके पास भी भारत के संविधान के तहत प्राप्त वही मूल अधिकार हैं जो भारत के दूसरे नागरिकों के पास हैं.

उन्होंने अपनी याचिका में मिलिट्री जांच के दौरान अपनी निजता के उल्लंघन के आरोप लगाए हैं. इन चार अधिकारियों को जांच के दौरान ही उनके पदों से निलंबित कर दिया गया था. याचिका में दावा किया गया था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इन चारों अधिकारियों में से किसी ने पाकिस्तानी जासूस के साथ किसी तरह का कोई वार्तालाप किया हो.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

याचिका में ये भी दावा किया गया कि उन्हें नहीं पता था कि कोई पाकिस्तानी जासूस उस ग्रुप का हिस्सा है या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "हम निलंबित सैन्य अधिकारियों की ओर से पेश की गई याचिकाएँ स्वीकार नहीं करते हैं. जबकि कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी चल रही थी तो उन्हें निलंबित करने से पहले उन्हें सुनवाई का अवसर देना ज़रूरी था. यहां तक कि रेगुलेशन 349 के तहत भी ऐसी किसी प्रक्रिया का पालन करने की कोई ज़रूरत नहीं थी. कोर्ट ऑफ़ इनक्वायरी पूरी होने से पहले भी याचिकाकर्ताओं को निलंबित किया जा सकता है. जैसा कि महाधिवक्ता तुषार मेहता ने बताया है कि कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी गठित की जा चुकी है और जांच चल रही है. इस लिहाज से देखा जाए तो याचिकाकर्ता फिलहाल किसी राहत के हक़दार नहीं हैं." कोर्ट ने कहा है, "हालांकि, याचिकाकर्ता के केस को क़ानून के अनुसार और सेना अधिनियम की प्रक्रियाओं के तहत ही निपटाया जाएगा. इसी के साथ वर्तमान याचिका फिलहाल खारिज की जाती है."

कोर्ट ऑफ़ इनक्वायरी

इन चारों की तरफ़ से एडवोकेट अमित कुमार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, "कोर्ट ऑफ़ इनक्वायरी शुरू होने से पहले ही इन चारों अधिकारियों को केवल बोर्ड ऑफ़ ऑफ़िसर द्वारा कथित तौर पर जुटाए गए साक्ष्यों के आधार पर अवैध तरीक़े से निलंबित कर दिया गया."

एडवोकेट अमित कुमार ने कहा कि इन चारों अधिकारियों के मोबाइल फोन और डेटा को अनाधिकृत तरीक़े से सैन्य अधिकारियों ने ज़ब्त कर लिया और उनकी व्यक्तिगत बातचीत का इस्तमाल उन्हें ब्लैकमेल करने और उनकी छवि को नुक़सान पहुंचाने के लिए किया गया. बावजूद इसके कि उन्होंने दो दशकों से अधिक तक देश की सेवा बिना किसी चूक के की है. अमित कहते हैं, "अगर वो दोषी पाए जाएं तो उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाए."

गिरफ़्तारी या हिरासत?

वहीं, महाधिवक्ता तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अभी इन चार अधिकारियों को गिरफ़्तार नहीं किया गया है और उनके ख़िलाफ़ सेना के क़ानून के तहत और अन्य स्थापित क़ानूनों के तहत सख़्त कार्रवाई की जाएगी.

अमित कुमार ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि इन चारों अधिकारियों के फोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से मिले निजी वार्तालाप और अन्य डेटा को सार्वजनिक ना किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में ये भी दावा किया गया था कि चारों अधिकारियों को 65 दिनों से अवैध तरीके से हिरासत में रखा गया है जबकि ऐसे मामलों में हिरासत में लिए जाने के 48 घंटों के भीतर चार्जशीट पेश करना अनिवार्य होता है.

याचिका में ये दावा भी किया गया था कि भारतीय सेना के इतिहास में ये पहली बार है जब याचिकाकर्ताओं को इस तरह से निलंबित कर दिया गया जबकि ना ही कोई जांच हुई, न इन्क्वायरी हुई और ना ही उनके ख़िलाफ़ किसी भी न्यायालय के समक्ष कोई मामला दायर किया गया.

 

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