अमेरिका ने चीन को उन्नत किस्म के सेमीकंडक्टर चिप भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया है. रोजमर्रा की चीजों में काम आने वाले सेमीकंडक्टर चिप के क्षेत्र में चीन का दबदबा बढ़ा है. इससे अमेरिका और यूरोपीय संघ खासे चिंतित हैं.सेमीकंडक्टर चिप जो 28 नैनोमीटर या उससे बड़ी होती हैं, उन्हें लेगेसी चिप कहा जाता है.
इनका इस्तेमाल वाशिंग मशीन, टीवी और कार से लेकर चिकित्सा उपकरणों तक में होता है. यह चिप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की खूबियों वाली आधुनिक सेमीकंडक्टर चिप जितनी सक्षम नहीं होती हैं. हालांकि लेगेसी चिप के बाजार में चीन के दबदबे के चलते अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) की चिंता बढ़ रही है.
अमेरिका ने पहले ही पश्चिमी देशों में डिजायन की गई आधुनिक चिपों का चीनी कंपनियों को निर्यात करने पर प्रतिबंध लगा दिया है. अमेरिका को उम्मीद है कि इससे चीन की तकनीक के क्षेत्र में महाशक्ति बनने की इच्छा पूरी होने में देरी होगी. ऐसे में अब ध्यान लेगेसी चिप पर चला गया है. दुनियाभर में बनने वाली सभी लेगेसी चिपों में से लगभग एक तिहाई केवल चीन में बनती हैं.
आधुनिक चिप तक चीन की पहुंच सीमित हो गई है. ऐसे में चीन ने उन्नत चिप तकनीक तैयार करने के लिए निवेश काफी ज्यादा बढ़ा दिया है. पिछले साल सितंबर में चीन सरकार ने घरेलू सेमीकंडक्टर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चार हजार करोड़ डॉलर के निवेश फंड का ऐलान किया था. जिसके बाद यह मांग मजबूत हुई कि पश्चिमी देश अपने यहां चिप बनाने वाली कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाएं.
जोएन चिआओ ताइवान के चिप रिसर्च हाउस ट्रेंडफोर्स में विश्लेषक हैं. वे कहते हैं, "वर्तमान में अमेरिका के निर्यात प्रतिबंध सिर्फ आधुनिक तकनीक पर लागू होते हैं. परिपक्व तकनीकों पर इन प्रतिबंधों का प्रभाव सीमित है.”
पिछले साल दिसंबर में बाइडेन प्रशासन ने पूरी सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन की समीक्षा करने का आदेश दिया. जिससे लेगेसी चिप के बाजार में चीनी दबदबे का आकलन किया जा सके. इस हफ्ते ‘यूरोपीय संघ-अमेरिका व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद' की बैठक हुई. इसके बाद यूरोपीय आयोग की तरफ से सप्लाई चेन की समीक्षा करवाने का फैसला हो सकता है.
बैठक के बाद परिषद की ओर से आए बयान ने संभावित समीक्षा की ओर इशारा किया. कहा गया कि ईयू और अमेरिका साथ मिलकर कोई कदम उठा सकते हैं, जिससे लेगेसी सेमीकंडक्टर के ग्लोबल सप्लाई चेन पर पड़ रहे बुरे प्रभावों पर ध्यान दिया जा सके.
मैल्कम पेन सेमीकंडक्टर क्षेत्र के विश्लेषक हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "कुछ करने का दबाव है, लेकिन सवाल यह है कि प्रतिबंध कितने कारगर साबित होंगे."
सेमीकंडक्टर उद्योग के जानकार चेतावनी देते हैं कि अगर चीन बाजार को सस्ती लेगेसी चिप से भर देता है तो पश्चिमी देशों की चिप कंपनियां बाजार से बाहर हो सकती हैं. वे बताते हैं कि चीन ने इसी तरह बाजार को सस्ते सोलर पैनलों से भर दिया था. ब्रसेल्स का कहना है कि इससे चीन को अनुचित लाभ मिला.
लैम रिसर्च और अप्लाइड मैटेरियल्स अमेरिका की दो सबसे बड़ी लेगेसी चिप कंपनियां हैं. पेन कहते हैं, "अगर इन जैसी कंपनियों ने बाजार में अपनी आधी हिस्सेदारी खो दी तो उन्हें अपना आकार घटाना पड़ेगा. क्योंकि इन कंपनियों ने खुद को दोगुने आकार के बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार किया है.”
ट्रेंडफोर्स के डेटा के मुताबिक, अगले तीन सालों में चीन की लेगेसी चिप बनाने की क्षमता कुल बाजार की 39 फीसदी की दर से बढ़ सकती है. इसका श्रेय चीन की ओर से दी जा रही सब्सिडी को जाता है.
गवेकल ड्रैगोनॉमिक्स ने भी एक अनुमान लगाया है. इसके मुताबिक, इस साल चीन इतनी चिप उत्पादन क्षमता बढ़ाएगा जितनी बाकी दुनिया मिलकर नहीं बढ़ा पाएगी. पिछले साल के मुकाबले, इस साल चीन में हर महीने 10 लाख ज्यादा लेगेसी चिप बनेंगी.
भारत भी इस क्षेत्र में अपनी जगह बनाना चाहता है. इससे चिप बनाने की वैश्विक क्षमता जरूरत से काफी ज्यादा हो सकती है. भारत का टाटा समूह अपनी चिप फैक्ट्री के निर्माण के लिए 11 सौ करोड़ डॉलर का निवेश कर रहा है. ये फैक्ट्री गुजरात के धोलेरा में बनेगी.
फिलहाल पूरी दुनिया की चिप उत्पादन क्षमता में से लगभग आधी ताइवान की चिप कंपनियों के पास है. इन कंपनियों ने भी अपनी योजना में बदलाव किया है. ये अब अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान की तरह आधुनिक चिपों की मांग पूरी करने के लिए काम कर रही हैं.
ट्रेंडफोर्स ने दिसंबर में एक पूर्वानुमान लगाया था. इसके मुताबिक, सेमीकंडक्टर क्षेत्र में चीनी निवेश बढ़ने के चलते ताइवान की चिप कंपनियों की कुल बाजार हिस्सेदारी में कमी आ सकती है.
चीन पर बहुत ज्यादा निर्भरता भी चिंता का विषय है. अगर पश्चिमी चिप कंपनियां चीनी कंपनियों से मुकाबला नहीं कर पाईं और अपना आकार घटा लिया तो अमेरिका और यूरोपीय संघ चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर हो सकते हैं. खासकर उन सेमीकंडक्टर्स के लिए जो घरेलू इलेक्ट्रॉनिक सामान से लेकर मिलिट्री हार्डवेयर और अहम बुनियादी ढांचे में इस्तेमाल किए जाते हैं.
बाजार में दबदबा बनाने के लिए, चीन आर्थिक दबाव का इस्तेमाल कर सकता था, जिससे पश्चिमी देशों तक पर्याप्त लेगेसी चिप्स नहीं पहुंचतीं. इसका परिणाम कोविड महामारी के दौरान हुई चिप्स की कमी से भी बुरा होता. महामारी के दौरान चिप्स की कमी होने के चलते गाड़ियों और गैजेट्स की डिलीवरी होने में देरी हुई थी. एपल कंपनी के नए आईफोन पर भी इसका प्रभाव पड़ा था. इस सबका दोष लेगेसी चिप्स की कमी को दिया गया, ना कि आधुनिक चिप्स की कमी को.
ट्रेंडफोर्स के चिआओ कहते हैं, "ग्राहकों के लिए एआई वाली आधुनिक चिप की तुलना में लेगेसी चिप का महत्व ज्यादा है. चर्चा में बने रहने के बावजूद एआई चिप की वैश्विक सेमीकंडक्टर खपत में हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम है."
उदाहरण के लिए, चीन में बनी लेगेसी चिप की कमी होने पर जर्मनी की कार कंपनियों के लिए समस्या खड़ी हो सकती है. ये कंपनियां पहले ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों के क्षेत्र में भारी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रही हैं.
इस बात पर सहमति है कि अमेरिका और ईयू को कुछ करना चाहिए. लेकिन यह चिंताएं भी हैं कि प्रतिबंधों से पश्चिमी चिप कंपनियों को भी नुकसान हो सकता है.
पेन ब्रिटेन स्थित चिप कंसल्टेंसी फर्म फ्यूचर होराइजंस के सीईओ हैं. वे कहते हैं, "यह सही समस्या का गलत हल है. प्रतिबंधों से चीन का प्रभुत्व स्थापित होने में देरी होगी, लेकिन उनसे यह रुकेगा नहीं."
पेन बताते हैं, "यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पश्चिमी देशों से रूस में निर्यात करने पर प्रतिबंध लगाए गए थे. लेकिन इसके बाद भी निर्यातकों और रूसी खरीदारों ने अन्य देशों के जरिए रास्ते तलाश लिए थे."
वे चेतावनी देते हैं, "प्रतिबंध लगने की स्थिति में चीन भी जवाबी प्रतिबंध लगा सकता है. इससे चीन से आने वाली चिप में कमी आ सकती है. पश्चिमी देशों की कंपनियां इस कमी को पूरा करने के लिए बहुत तेजी से अपना चिप उत्पादन नहीं बढ़ा पाएंगी.”
पेन समझाते हैं, "अगर आप आज घरेलू उत्पादन में ज्यादा निवेश करने का फैसला लेते हैं तो भी तीन साल से पहले चिप का बनना शुरू नहीं हो पाएगा. संभव है कि इससे ज्यादा समय भी लग जाए. यह भी उस स्थिति में होगा जब फैक्ट्री बनाने में कोई देरी ना हो और काम करने के लिए कुशल कर्मचारी मिल जाएं."
अमेरिका और ईयू के अधिकारी चीन पर और प्रतिबंध लगाने पर विचार कर सकते हैं. उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि उन उपकरणों पर निर्यात प्रतिबंध लगने की अधिक संभावना है, जो लेगेसी चिप के उत्पादन में मदद करते हैं.
अमेरिका और यूरोपीय संघ फ्रेंडशोरिंग की नीति भी अपना सकते हैं. इसके तहत उत्पादन और आयात भारत समेत अन्य भू-राजनीतिक सहयोगियों के साथ किया जाएगा. जिससे चीन पर उनकी निर्भरता खत्म हो.
पश्चिमी देश अतिरिक्त सब्सिडी भी दे सकते हैं. जिससे घरेलू फैक्ट्रियां ज्यादा लेगेसी चिप बनाने के लिए प्रोत्साहित हों. साथ ही कीमत के मामले में भी चीनी चिप का मुकाबला कर सकें. हाल ही में पास हुए दो चिप अधिनियमों के तहत, अमेरिका और ईयू अगले एक दशक में सेमीकंडक्टर क्षेत्र को 8600 करोड़ डॉलर की सब्सिडी देने का वादा कर चुके हैं.
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)