नई दिल्ली. अमेरिका ने भारत के साथ नागरिक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने के लिए एक अहम घोषणा की है। इसके तहत अमेरिका की नागरिक परमाणु सहयोग की प्रतिबंधित सूची से भारत की इंदिरा गांधी आण्विक अनुसंधान केंद्र (आईजीएआरसी) और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) जैसे निकायों को निकाल दिया जाएगा। इससे परमाणु ऊर्जा से जुड़ी भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी कंपनियों, निकायों या एजेंसियों के साथ तकनीकी व कारोबारी सहयोग करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
भाषण में सुलीवैन ने किया एलान : इस बात की घोषणा भारत के दौरे पर आए अमेरिकी एनएसए जैक सुलीवैन ने नई दिल्ली में एक सार्वजनिक भाषण में की। मौजूदा जो बाइडन सरकार सत्ता में सिर्फ दो हफ्ते से भी कम रहने वाली है। मगर उससे पहले एनएसए की तरफ से भारत आकर नागरिक सहयोग संबंधों में नई ऊर्जा फूंकने की घोषणा को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
यह एक तरफ रूस के साथ भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत होते संबंधों के साथ प्रतिस्पर्धा करने और दूसरी तरफ आतंकवादी पन्नू को मारने की कथित साजिश की वजह से भारत के साथ रिश्तों में आए तनाव को कम करने के लिए बाइडन प्रशासन की अंतिम कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
डोभाल के साथ हुई बैठक : सुलीवैन ने सोमवार को दोपहर में भारत के एनएसए अजीत डोभाल से द्विपक्षीय बैठक की। इसके बाद उन्होंने आईआईटी-दिल्ली में दिए गए एक भाषण में कहा कि 20 वर्ष पहले पूर्व राष्ट्रपति बुश और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने भारत व अमेरिका के बीच नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग का सपना देखा था। हमें अभी भी इसका पूरा इस्तेमाल करना है।
जल्द होगी औपचारिक घोषणा : बाइडन प्रशासन पूर्व में इस क्षेत्र में उठाए गए सहयोग को और प्रगाढ़ करने को दृढ़ है। मैं आज यह घोषणा करता हूं कि अमेरिकी सरकार मौजूदा नियमों में बदलाव को अंतिम रूप दे रहे हैं जिसकी वजह से भारतीय व अमेरिकी कंपनियों को नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग से रोक रहे हैं। इस बारे में औपचारिक घोषणा जल्द की जाएगी। यह हमारे लिए भूतकाल के विवाद को भूलकर अमेरिका की प्रतिबंधित सूची से बाहर आकर भारतीय कंपनियों के लिए भविष्य में अमेरिका के साथ, अमेरिकी कंपनियों के साथ और हमारे वैज्ञानिकों के साथ सहयोग का अवसर देगा।''
2008 में हुआ था परमाणु समझौता : पूर्व पीएम सिंह और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बुश ने अपनी-अपनी सरकारों को दांव पर लगाकर और तीन वर्षों के सघन विमर्श के बाद वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु सहयोग समझौते को अंतिम रूप दिया था। इस विषय पर तत्कालीन यूपीए सरकार से वामपंथी दलों ने अपना समर्थन वापस ले लिया था। तब कांग्रेस की अगुवाई वाली इस सरकार को समाजवादी पार्टी व कुछ दूसरे दलों ने समर्थन दिया था। हालांकि, इस समझौते का अभी तक कोई फायदा नहीं हुआ है।
समझौते के बावजूद कई पेंच : समझौता होने के बावजूद दोनों देशों के बीच इससे जुड़े कई मुद्दों पर असहमति रही जैसे किसी दुर्घटना के समय जिम्मेदारी तय करने संबंधी प्रावधान। समझौते की वजह से भारत में अमेरिका की दो कंपनियां वेस्टिंगहाउस और जेनरल इलेक्ट्रिक और फ्रांस की अरेवा की तरफ से 18 परमाण संयंत्र लगाने की सहमति बनी। मगर इन तीनों कंपनियों के साथ समझौता नहीं हो सका।
रूस की मदद से परमाणु ऊर्जा बढ़ा रहा भारत : बाद में वर्ष 2017 में वस्टिंगहाउस दिवालिया भी हो गई। कालांतर में परमाणु ऊर्जा के बगैर ही भारत ने अपनी ऊर्जा आवश्कताओं को पूरा भी कर लिया। यह भी वजह रहा कि भारत अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुका। आज भारत की कुल परमाणु ऊर्जा क्षमता करीब 7,000 मेगावाट है और वर्ष 2030 तक इसे सिर्फ 20 हजार मेगावाट करने का लक्ष्य है जो रूस की मदद से हासिल की जाएगी।