सामान्य तौर पर देखा जाए तो किसी राष्ट्र की उन्नति उसके नागरिकों के स्वास्थ्य पर ही निर्भर करती है। यदि नागरिक स्वस्थ हैं तो निश्चित रूप से वह देश भी उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है। बहुत से व्यक्ति स्वास्थ्य के अर्थ को पूर्ण रूप से नहीं समझते। कुछ व्यक्ति बीमारियों से दूर रहने को ही स्वास्थ्य समझते हैं। कुछ शरीर के सुन्दर होने को ही स्वास्थ्य समझते हैं। कुछ व्यक्तियों के विचार से स्वास्थ्य केवल कार्य करने की क्षमता है, किन्तु यह स्वास्थ्य की संकुचित अवधारणा है। सामान्यतः अस्वस्थता तथा कष्टों का कारण स्वास्थ्य के प्रति ऐसा संकुचित दृष्टिकोण ही है। अतः एक व्यापक एवं सही दृष्टिकोण की जरूरत है जो वास्तविक स्वास्थ्य की ओर ले जा सके। क्योंकि स्वास्थ्य के अन्तर्गत शारीरिक शक्ति, क्षमता तथा सहनशीलता का पर्याप्त भंडार और मानसिक संतुलन भी आता है, जिससे दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसके अर्थ को हम निम्न परिभाषाओं से स्पष्ट कर सकते हैं-
अतः उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि इसमें सामाजिक, मानसिक, भावात्मक स्वास्थ्य भी शामिल है।
मनुष्य के जीवन में स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्वास्थ्य व्यक्ति की अमूल्य निधि है। यह केवल व्यक्ति विशेष को प्रभावित नहीं करता, बल्कि जिस समाज में वह रहता है उस सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करता है। स्वस्थ मनुष्य ही सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह कुशलतापूर्वक कर सकता है। इसलिए समाज में यह कहावत स्वास्थ्य के महत्त्व को दर्शाती है। “यदि धन खो गया कुछ नहीं खोया, यदि चरित्र खो गया तो कुछ खो गया, परन्तु यदि स्वास्थ्य खो गया तो सब कुछ खो गया।”
स्वास्थ्य मनुष्य समाज का आधार स्तम्भ है। यदि हमारा स्वास्थ्य ठीक नहीं तो पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान भी कोई उपकार नहीं कर सकता। समस्त कार्य क्षेत्र कोई भी हो, विचार कुछ भी हों, जीवन चर्चा कैसी भी हो, अस्वस्थ शरीर सदा ही आपकी उन्नति व विकास की राह का रोड़ा बनेगा। इसके विपरीत यदि स्वास्थ्य ठीक है तो व्यक्ति कठिन से कठिन व विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन पथ पर उत्साहपूर्वक आगे बढ़ता रहता है। यदि शरीर रोगों से ग्रस्त हो और बीमारियों से पीड़ित तो मनुष्य स्वतंत्रतापूर्वक जीवन का उपभोग नहीं कर सकता। अरमान तड़फते रहते हैं, वंश चलता नहीं, इच्छाओं को दबाने से मनुष्य चिड़चिड़ा हो जाता है और शारीरिक दोषों के साथ-साथ मानसिक रोग भी लग जाते हैं तथा खाना-पीना, घूमना-फिरना सभी हराम हो जाता है। इसलिए जीवन यदि पुष्प है तो स्वास्थ्य उसमें शहद के समान है।
स्वास्थ्य का महत्त्व बताते हुए बेकन कहते हैं, “स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि भवन है और रुग्ण तथा दुर्बल शरीर आत्मा का कारागृह है।” स्वास्थ्य मनुष्य के लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मनुष्य को जीवन में कई कर्तव्य निभाने होते हैं, उसको जीवन निर्वाह के लिए आजीविका कमानी पड़ती है, उसे अपने माता-पिता और बच्चों को सहारा देना होता है व अन्य पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियाँ निभानी होती हैं।
ऐबिस कार्ल कहते हैं, “केवल जीना ही बहुत नहीं है बल्कि हमें आनन्दमय जीवन की भी आवश्यकता है और जीवन की खुशी के लिए अच्छा स्वास्थ्य चाहिए। इन सबसे अधिक हमें ऐसे स्वास्थ्य की आवश्यकता है जो हमारे शरीर, मन व आत्मा को स्वस्थ्य रखे।”
स्वास्थ्य का महत्त्व न केवल मानव के लिए है, बल्कि समाज के लिए भी उतना ही महत्तवपूर्ण है क्योंकि स्वस्थ्य व्यक्तियों का समाज ही उन्नति करता हैं बाहरी ताकतों की चुनौतियों का सामना करता है तथा सफलतापूर्वक अपने अधिकारों व कर्तव्यों का पालन कर मनुष्य सभ्यता को स्वस्थ व जीवत रख पाता है। सामाजिक स्वस्थ्य (Community Health) के महत्त्व का वर्णन करते हुए जे. एम. जस्सावाला कहते हैं, “यदि शिक्षा और विज्ञान मनुष्य सभ्यता का दिमाग व केंद्रीय स्नायुतन्त्र है तो स्वास्थ्य इसका दिल है।” स्वास्थ्य वास्तव में जीवन का अमूल्य रत्न है। इसको हर एक व्यक्ति प्राप्त कर सकता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य के प्रति अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक रखते हुए अपने शरीर का ठीक ध्यान रखे तो 90 प्रतिशत बीमारियाँ रोकी जा सकती हैं।
मनुष्य का स्वास्थ्य बैंक की पूंजी के समान समझा जाता है। यह हमारे शरीरिक बैंक का हिसाब है। यदि हम शरीर का ध्यान नहीं रखेंगे तो कोई बीमारी, दुःख विकार शरीर में आ जाता है। तथा व्यक्ति शारीरिक बैंक से उनको दूर करने के लिए कर्च लेता है। किन्तु यदि स्वास्थ्य रूपी बैंक की पूंजी ही नहीं ह तो मनुष्य कठिनाई में पड़ जाता है। अतः जो व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और सामाजिक दृष्टि से स्वस्थ है वही व्यक्ति शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट होने के कारण जीवनशक्ति से पूर्ण, भावात्मक रूप से सहनशील व चिंतारहित होता है और सामाजिक दृष्टि से सहयोगी, परोपकारी, निःस्वार्थी तथा दूसरों का सम्मान करने वाला होता है। वह अपने जीवन को तो सुखमय एवं आनंद से पूर्ण बनाता ही है, साथ ही सुखी जीवन व्यतीत करते हुए वह समाज और राष्ट्र अमूल्य योगदान दे सकता है।’