आज खाने में घी ना लेना एक फेशन बन गया है. बच्चे के जन्म के बाद डॉक्टर्स भी घी खाने से मना करते है. दिल के मरीजों को भी घी से दूर रहने की सलाह दी जाती है. ये गौमाता के खिलाफ एक खतरनाक साज़िश है. रोजाना कम से कम 2 चम्मच गाय का घी तो खाना ही चाहिए.
बेशक आज की युवा पीढ़ी आधुनिकरण की वजह से अपने ऋषि मुनियों के द्वारा दिए ज्ञान को भूल चुका हो किन्तु आज भी उनके ज्ञान का महत्व और उपयोगिता उतनी ही है. इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस बीमारी का इलाज आज का विज्ञान नहीं खोज पाता उसे हजारों साल पहले ऋषि मुनियों के आयुर्वेदिक उपायों से ठीक किया जा सकता है. यहीं नहीं हर वैज्ञानिक इस बात को मानता है और प्रमाणित करता है कि उनके द्वारा बताएं गए उपाय अतुलनीय और पुर्णतः लाभदायी है.
हमारे उन्ही पूर्वजों ने प्रकृति की मदद से ही हर रोग का निदान खोजा है और हमारे जीवन का आधार रखा है. आज हम आपको उनके दवा बताएं गए गाय के घी के महत्व, लाभ के बारे में बतायेंगे. ऐसे बहुत ही कम लोग है जो गाय के घी की गुणवत्ता से परिचित है किन्तु ये हमारे जीवन में खासा महत्व रखता है.
रोगों में गाय का घी : ( Cow Ghee in the Disease ) : जिस तरह पुराना गुड अधिक लाभदायी होता है ठीक उसी तरह से पुराना गाय का घी भी अधिक फायदेमंद होता है. इस तरह उसके गुण बढ़ जाते है और वो सुनने की शक्ति, नेत्र शक्ति बढ़ता है. साथ ही वो ज्वर, खांसी, संग्रहणी, मस्तक रोग, मूर्छा, विष, उन्माद इत्यादि रोगन से बचाता है. अगर घी दस साल पुराना हो जाएँ तो उसे कोंच कहते है वहीँ इसके ग्यारह साल पुराने होने पर इसे महाघृत कहा जाता है.