मुम्बई. फ़िल्म ‘काला पानी’ में अन्नू कपूर सावरकर बने और ‘सरदार’ में महात्मा गांधी अन्नू कपूर की शख़्सियत कमाल की है, उनके पास बैठने के लिए जितना भी वक्त मिले कम ही लगता है। दूरदर्शन के म्यूजिक रियलिटी शो ‘फोक स्टार्स: माटी के लाल’ के सेट पर साथ बिताए दिन उन्हें अब भी याद हैं। संगीत का उन्हें अद्भुत ज्ञान है।
देसी लोक कथाओं का उनके पास न खत्म होने वाला पिटारा है। अभिनय के अलावा वह और भी कई विधाओं में पारंगत हैं। राहुल बग्गा (Rahul Bagga) और परितोष त्रिपाठी (Paritosh Tripathi) के अभिनय का रस दोनों की वेब सीरीज ‘मुकेश जासूस’ के बाद से चढ़ता ही रहा है। राहुल को किसानी में आनंद आता है और परितोष को फक्कड़ जिंदगानी में।
अन्नू कपूर – ये फिल्म जब तक आप देखेंगे नहीं, एक नारी की पीड़ा क्या होती है वह समझ नहीं आएगी। मातृत्व का जो समर्पण और प्रेम है वो समझ नहीं आएगा। फिल्म के अंत के दृश्यों में इसके रचनात्मक लेखक सूफी खान ने संवादों के जरिये फिल्म को जो मोड़ दिया है एक मध्यम मार्ग दिखाता।
अन्नू कपूर – मिली होंगी इन सब लोगों को सोशल मीडिया पर। आपको तो मालूम है मैं इन सब चीजों से दूर रहता हूं। हमारे निर्देशक कमल चंद्रा काफी परेशान हैं। फिल्म में काम करने वाली लड़कियों को भी धमकियां और गालियां मिली हैं।
अन्नू कपूर – जिस चीज के लिए मुझे चुना गया है मैंने वो काम पूरी ईमानदारी के साथ किया है। जब मैंने वीर सावरकर का रोल किया था तब भी मैंने पूरी ईमानदारी के साथ पूरे समर्पण के साथ किया और आप ताज्जुब करेंगे कि वीर सावरकर का जो फिल्म में दृश्य, जहां उनसे एक कैदी पूछता है और जवाब में सावरकर जो कहते हैं, वह संवाद मेरा ही लिखा हुआ है।
राहुल बग्गा – क्या है कि डिग्रियों की महत्ता अभी हमारे देश में कम नहीं हुई है और ये भी एक बड़ा कारण है बेरोजगारी का। यहां हुनर से ज्यादा डिग्री को अहमियत दी जाती है। मुझे लगा कि मैं एक सर्टिफाइड एक्टर तो हूं नहीं तो मैं क्यों न अपना पद ही बदल लूं। तो मैं एक सर्टिफाइड फार्मर बन गया।
परितोष त्रिपाठी – ये फिल्म जिन मसलों की बात करती है, वे काफी व्यापक हैं। और जैसा कि हम सुनते समझते आए हैं कि अच्छे काम की शुरूआत घर से ही करनी चाहिए। अगर हमें लगता है कि हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा है और हमारे घर में भी उसका असर है तो मेरा मानना है कि समाज को बदलने की शुरुआत घर से ही होनी चाहिए।