भोपाल. (कपिल तिवारी की कलम से....✍️) विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी का हमारा देश वर्तमान समय मे कोविड-19 के कारण विश्व ऑक्सीजन की समस्या से जूझ रहा है. इस सबंध में देशभर के पर्यावरण संरक्षकों से वार्ता की जा रही थी उनके तर्को के आधार पर हरे-भरे पेड़ो में आक्सीजन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है पेड़ आक्सीजन के अलावा बारिश के लिए भी महत्वपूर्ण होते हैं. आज कोरोना जैसी महामारी में जहां आक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा हुआ था तब एक ही बात सोशल मीडिया पर चल रहा था कि अगर पेड़ ना काटे होते तो आज यह आफत नही होती लेकिन क्या हम यह सब जानकर भी जंगल को सिर्फ इसलिए काटे जाएंगे ताकि वंहा से अनुमानित हीरे निकलेंगे.
● जंगलों को बचाने के लिए विरोध हुआ तेज : सूखा, गरीबी, पलायन और बेरोजगारी के लिए दुनिया में पहचाने जाने वाले बुंदेलखंड के हरे-भरे जंगलों को भी उजाड़ने की इबारत लिखी जाने की तैयारी है. इस बार निशाने पर हैं छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगल, जहां हीरो की खुदाई की जानी है. इसके लिए यह इलाका एक निजी कंपनी को सौंपा जा रहा है. सरकार और निजी कंपनी के बीच चल रही कवायद का विरोध शुरू हो गया है और गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पर गोलबंदी भी तेज हो गई है. सूत्रों की मानें तो छतरपुर जिले के बक्सवाहा में हीरो का भंडार है और यहां लगभग 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे हो सकते हैं. इसकी कीमत कई हजार करोड़ आंकी गई है. यहां हीरा पन्ना से ज्यादा होने का अनुमान है. जिस कंपनी ने हीरे खनन का काम लेने में दिलचस्पी दिखाई है, वह इस इलाके की लगभग 382 हेक्टेयर जमीन की मांग कर रही है. ऐसा अगर होता है तो इस इलाके के लगभग सवा दो लाख वृक्षों पर असर पड़ेगा और यूं कहें कि सीधे तौर पर वे नष्ट कर दिए जाएंगे, इनमें लगभग 40 हजार पेड़ तो सागौन के ही हैं इसके अलावा पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय पेड़ भी हैं.
● पेड़ हमें मुफ्त में ऑक्सीजन दे रहे है वो हरे-भरे पेड़ पौधों को काटा जा रहा : आज जो लोग इस महामारी से भी प्रकृति का महत्व नहीं समझ रहें हैं, वह कब समझेंगे। पूरे देश में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ है. ऑक्सीजन का प्लांट लगाया जा रहा है, लेकिन जबसे पृथ्वी है तब से हमें मुफ्त में ऑक्सीजन देने वाले पेड़ पौधों को काटा जा रहा है. शायद सरकार को यह नहीं पता की ढ़ाई लाख पौधों को वृक्ष बनने में कितना वक्त लगता है.
● क्या दावे के आधार को ही माना जा रहा है सच्चाई : यूं तो मध्य प्रदेश के पन्ना जिले को हीरों की खान माना जाता है. लेकिन पन्ना से सटे छतरपुर जिले के बक्सवाहा जंगलों में देश में हीरों का सबसे बड़ा भंडार मिलने का दावा किया जा रहा है. इन जंगलों में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे होने का अनुमान लगाया गया है जो पन्ना से 15 गुना बताए जा रहे हैं. लेकिन इन हीरों को पाने के लिए वहां लगे बहुमूल्य पेड़ों की बलि देनी होगी जिसके लिए 382.131 हेक्टेयर जंगल खत्म करने की तैयारी की जाने लगी है. छतरपुर के बक्सवाहा में बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत 20 साल पहले एक सर्वे शुरू हुआ था. दो साल पहले प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की थी जिसे आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने खनन खरीदा था.
● क्या हीरे के लिए पेड़ों की होगी कटाई : हीरों के लिए जमीन की खुदाई के लिए अब जंगल में पेड़ों की कटाई की जाएगी. इसके लिए वन विभाग ने जमीन पर खड़े पेड़ों की गिनती कर ली है, जो 2,15,875 हैं. इनमें सागौन, केम, जामुन, बहेड़ा, पीपल, तेंदू, अर्जुन के पेड़ हैं. बिड़ला समूह से पहले आस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो ने खनन लीज के लिए आवेदन किया था. लेकिन मई 2017 में संशोधित प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले ही रियोटिंटो ने यहां काम करने से इनकार कर दिया था.
● देश के लिए आक्सीजन , बारिश महत्वपूर्ण है या हीरे : कोरोना काल मे मनुष्य प्रजाति को आक्सीजन का महत्व सीखा ही दिया है मनुष्य प्रजाति को पता चल चुका है कि कैसे आक्सीजन जीवन के लिए अमूल्य है लेकिन उस सब से हट कर बकस्वाहा के जंगल को सिर्फ इसलिए काटा जाने का प्रस्ताव है ताकि वंहा से अनुमानित आंकलन के हिसाब से जमीन में हीरो की उपस्थिति है तो क्या हीरे जीवन के लिए जरूरी है या आक्सीजन ओर बारिश ये एक गंभीर विषय है जिस पर प्रकृति प्रेमी अपनी बातों को रखे हुए है.
● लाखो हाथ जंगल बचाव के लिए उठे : सोशल मीडिया पर कुछ दिनों में ही छतरपुर से सटे उक्त जंगल कटाई को लेकर ट्रोल किया गया जिसमें लाखो हाथ जंगल बचाव के लिए उठ खड़े हुए है ताजा जानकारी के अनुसार उक्त मामले को लेकर कुछ प्रकृति प्रेमी जंगल बचाव के लिए कोर्ट की शरण लेने की भी तैयारी में है और अगर ऐसा है तो बिल्कुल होना भी चाहिए ताकि अपनी प्रकृति सिर्फ इसलिए नष्ट नही कर सके क्यो की वंहा जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण आक्सीजन को छोड़ कर सिर्फ हीरो के लिए जंगल तबाह कर दिए जाए.
● सेकड़ो वर्षो पुराने है कई पेड़ : सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि जिस जंगल को सिर्फ हीरो की खदान के लिए तबाह करने की प्रकिया चल रही है उक्त जंगल मे कई पेड़ सेकड़ो वर्षो से विधमान है वंहा की प्राकृतिक वातावरण ने आसपास के स्थलों पर जलस्तर को भी बढ़ाया है कुछ राजनेता एस बात को विकास कहते दिखाई दे रहे है जबकि उक्त जंगल जैसे अन्य जंगल को बसाने में कई वर्ष लग जाएंगे.
● सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पूछ रहे सवाल : देश में एक भी ऐसी जगह नहीं दिखती जो पहले बंजर रही हो लेकिन किसी सरकार के प्रयासों से वो हरी भरी हो गई हो...हाँ लेकिन ऐसी हज़ारों तस्वीरें दिख जाती हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि कभी यहां भरपूर हरियाली थी, तमाम वनस्पतियों से भरा जंगल था लेकिन अब फ्लाई ओवर बन गया है, बिल्डिंग तन गयी है...!
● देश में केवल दो जगहों पर हीरा निकलता है, एक गोलकुंडा आंध्रप्रदेश में और दूसरा हमारे पन्ना मध्यप्रदेश में... : पन्ना जो भी गया होगा वह जानता है कि पन्ना पर प्रभु की कितनी कृपा है, चारों ओर घने जंगल, वन्यप्राणी और हीरे के भंडार... पिछले दिनों मध्यप्रदेश सरकार ने पन्ना-छतरपुर के आस पास जियोलाजिकल सर्वे करवाया था, जिसमें पता पड़ा कि छतरपुर के पास बकस्वाहा के जंगलों के बीच एक हीरों का भण्डार है...जिसकी क़ीमत हज़ारों करोड़ रुपये की हो सकती है. अब सुनने में आ रहा है कि हीरे निकालने के लिए दो लाख से ऊपर पेड़ों को काटना पड़ेगा, तब जाकर वे हीरे मिलेंगे... अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि हीरे ज़्यादा आवश्यक हैं या पेड़ और जंगल ? क्या इतने पेड़ सरकार लगा सकेगी ? मान लीजिए फ़ोटो सेशन के लिए लगवा भी दिए तो क्या वे उन पेड़ों की जगह ले पाएंगे ? मतलब बचे रह पाएंगे ? और हीरे निकालने के बाद उस क्षेत्र को क्या मिलेगा? मने रोजगार कितना मिलेगा...यह भी बता दें सरकार बहादुर...क्योंकि पन्ना की धरती तो सैकड़ों वर्षों से हीरे उगल रही है उसे क्या मिला...सिवाय पर्यावरण के नुकसान के...रेत खोद खोदकर नदियाँ उजाड़ दी गयी हैं, सागौन की लकड़ी की अवैध तस्करी इस कदर हुई कि आधा जंगल साफ हो चुका है...वहाँ आज तक न कोई विकास ही हुआ न स्थानिकों को रोज़गार मिला बस मिला है तो उत्पीड़न, शोषण और भाषण...।
(●मिलन सिंग सिसोदिया का सवाल)