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इस दीवाली अंतरमन के दीप जलाएं : स्वाभिमान के दीप जले तो ही अहंकार के अंधेरे का नाश होता है...डॉ. प्रदीप कुमावत

आपकी कलम Published by: चन्द्रशेखर मेहता Updated Fri, 17 Oct 2025 11:12 AM
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चन्द्रशेखर मेहता

स्वाभिमान के साथ जीना सीखिए-क्योंकि स्वाभिमान की कीमत भी चुकानी पड़ती है।

जीवन और संगठनों में हमने अनेक बार देखा है कि चाटुकारिता और चमचागिरी के माध्यम से लोग पद तो पा लेते हैं, पर आत्मसम्मान खो बैठते हैं। इसके विपरीत, जो लोग संस्कारित होकर स्वाभिमान के साथ आगे बढ़ते हैं, वे प्रायः उपहास के पात्र बन जाते हैं-पर अंततः इतिहास उन्हीं का आदर करता है।

राजनीति और समाज दोनों में यह दृश्य सामान्य है-जो झुकना नहीं जानते, जो दंडवत होकर पद नहीं माँगते, वे प्रायः उपेक्षित रह जाते हैं। आज के समय में यह भले ही ‘अवगुण’ समझा जाए कि कोई व्यक्ति झुकता नहीं, पर जब वही व्यक्ति अकेले में स्वयं से संवाद करता है, तब उसे आत्मसंतोष मिलता है कि उसने अपने स्वाभिमान को नहीं बेचा।

ऐसे लोग भले ही पद न पा सकें, पर मन की शांति और आत्मसम्मान लेकर संसार से विदा होते हैं। यही संतोष, यही साधना, उन्हें ईश्वर के अधिक समीप ले जाती है। राम को तो राज्यापेक्ष का पद प्राप्त होते होते रह गया। यदि राम को राज्य मिल जाता तो शायद मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में रामकोहम नहीं पूछ पाते वो केवल राजा राम रह जाते लेकिन राम के पथ पर चलकर ही राम ने ईश्वर को प्राप्त किया थे तो वे एक मनुष्य ही मनुष्य के रूप में प्रकट हुए कर्मों से मर्यादा पुरुषोत्तम हो गए। पद प्रधान नहीं है कर्म प्रधान है राम ने पूरे मार्ग में कहीं भी अहंकार नहीं दिखाया विनम्रता सरलता सहजता।

और संतोष के साथ आगे बढ़े कभी उन्होंने यह नहीं कहा कि मैं अयोध्या का राजकुमार हूँ या मैं श्रेष्ठ कुल का वंशज हूँ। इसी मर्यादा ने उनको महान बनाया। राम ने स्वाभिमान और अभिमान के अंतर को भी बड़े गुड़ तरीके से समझाया जब बालि का वध किया मृत्यु शैया पर पड़े रावण का भी अहंकार जब तिरोत हुआ तो लक्ष्मण को फ़ोन करो। गुरु ज्ञान लेने के लिए भेजा।उसके चरणों की ओर खड़े होकर ज्ञान को प्राप्त करो

स्वाभिमान और अहंकार में सूक्ष्म किंतु गहरा अंतर है। जब यह अंतर समझ में आता है, तब व्यक्ति विनम्र रहते हुए भी स्वाभिमान से जीना सीख लेता है। किन्तु स्वाभिमान की आड़ लेकर अहंकार को पोषित करना पतन का कारण बनता है। इसलिए सजग रहें — विनम्र रहें, सहज रहें, सरल रहें। यही मनुष्यता का मूल है।

  • इस दीपावली, अपने भीतर के मनुष्यत्व को पोषित करें।
  • स्वाभिमान के दीप जलाएँ -पर अहंकाररूपी अंधकार को दूर करें।
  • जहाँ प्रशंसा बनती है, वहाँ मुक्त कंठ से करें।
  • जो बड़े हैं, उन्हें प्रणाम करें; जो छोटे हैं, उन्हें प्रेम से गले लगाएँ।
  • यही तो राम का पथ है, यही राम का संदेश है।
  • मैं कोई विद्वान या पंडित नहीं, बस जीवन के अनुभवों और आघातों से यही समझ पाया हूँ —
  • कि बिना अति-महत्वाकांक्षा के, अपने कर्म के प्रति निष्ठावान रहकर निरंतर आगे बढ़ना ही सच्चा जीवन-पथ है।
  • अभिमान को त्यागें, स्वाभिमान के साथ जिएँ —
  • क्योंकि विनम्रता ही वह दीप है, जिसमें ईश्वर स्वयं प्रकट होते हैं।

आप सभी को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ...

ईश्वर करे, आपके जीवन में स्वाभिमान का प्रकाश सदा उज्ज्वल बना रहे।

डॉ. प्रदीप कुमावत

  • निदेशक आलोक संस्थान
  • राष्ट्रीय सचिव अखिल भारतीय नववर्ष समारोह समिति
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