विशेष लेख: रविंद्र आर्य
हर भारतीय के हृदय में जब राष्ट्रगान गूंजता है और तिरंगा शान से लहराता है, तब यह केवल एक झंडा नहीं होता — यह हमारे आत्मगौरव, त्याग, बलिदान और संघर्ष का प्रतीक बन जाता है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चलाया जा रहा ‘हर घर तिरंगा’ अभियान, 2 अगस्त से 15 अगस्त 2025 तक प्रत्येक भारतीय को यही संदेश देता है कि हम गर्व से कहें — मेरा तिरंगा, मेरा गौरव।
इस गौरवपूर्ण पहल में गौतम बुद्ध नगर के सांसद डॉ. महेश शर्मा के आह्वान पर विश्व हिंदू परिषद, फतह नागर की इकाई भी पूरे जोश और समर्पण के साथ जुट गई है। विहिप के कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया है कि इस 15 अगस्त को हर गली, हर द्वार, हर छत पर तिरंगा लहराएगा और यह संदेश जाएगा कि भारतवासी केवल आज़ादी का उत्सव नहीं मनाते, बल्कि अपने पूर्वजों के बलिदान को भी स्मरण करते हैं।
लेकिन आइए, इस बार आज़ादी के उस पक्ष को रेखांकित करें, जिसे अक्सर इतिहास के पन्नों में हाशिये पर रखा गया — ‘गरम दल’ के वे क्रांतिकारी, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी।
महान वीर सावरकर : अंडमान की सेल्यूलर जेल में कालापानी की अमानवीय यातनाएँ झेलने वाले स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ने न केवल सशस्त्र क्रांति का आह्वान किया, बल्कि भारत को एक शक्तिशाली, सनातनी और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में कल्पित किया।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस : “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” का नारा देने वाले नेता जी ने आज़ाद हिंद फौज बनाकर ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी। वे महात्मा गांधी की अहिंसा की नीति से सहमत नहीं थे और उन्होंने सशस्त्र क्रांति को ही भारत की मुक्ति का उपाय माना।
भीकाजी कामा : भीकाजी कामा ने विदेशी धरती पर पहली बार भारतीय तिरंगा फहराया और अंतरराष्ट्रीय मंचों से भारत की स्वतंत्रता की आवाज़ बुलंद की। उनके साथ आर्य समाज की क्रांतिकारी सोच ने युवाओं में राष्ट्रभक्ति का ज्वार पैदा किया।
चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त : यह trio आज़ादी की वह क्रांतिकारी आवाज़ थे, जिन्होंने “इंकलाब ज़िंदाबाद” को अमर बना दिया। इनकी शहादत ने भारत के युवाओं को जगाया और आज़ादी की लड़ाई को गति दी।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खाँ : ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...’ लिखने वाले राम प्रसाद बिस्मिल और उनके अनन्य साथी अशफाक उल्ला खाँ ने यह दिखा दिया कि मज़हब नहीं, मातृभूमि सर्वोपरि है। दोनों ने काकोरी कांड में वीरतापूर्वक भाग लिया और फाँसी पर झूल गए।
राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस, उधम सिंह : सांडर्स हत्याकांड के वीर राजगुरु और सुखदेव, जलियांवाला बाग के बदले में जनरल डायर को मारने वाले उधम सिंह, और महज़ 18 साल की उम्र में फाँसी चढ़ने वाले खुदीराम बोस — ये सभी एक ऐसी क्रांतिकारी भावना के प्रतीक हैं, जिसे भारत कभी भूल नहीं सकता।
15 अगस्त को जब तिरंगा लहराए, तो केवल तस्वीर खिंचवाने या औपचारिकता के लिए न हो। वह लहराता तिरंगा हमें याद दिलाए-देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले उन वीरों को, जिनकी बदौलत आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं।
गौतम बुद्ध नगर की विहिप इकाई, अपने सांसद डॉ. महेश शर्मा एवं भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ यह सुनिश्चित कर रही है कि हर नागरिक अपने घर पर तिरंगा फहराए और गर्व से कहे “मैं भारतीय हूँ, और यह मेरा गौरव है।”