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2 जून की रोटी का अर्थ, जून महीने से नहीं जुड़ा है. जानिए क्या है इसका असल मतलब...

आपकी कलम Published by: paliwalwani Updated Sun, 02 Jun 2024 09:30 PM
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जून का महीना आते ही लोगों को दो चीजों की याद सबसे ज्यादा आती है, एक तो बेहाल करने वाली गर्मी से बचाने के लिए बारिश की, और दूसरा, ‘2 जून की रोटी’ की! आपने अक्सर लोगों से दो जून की रोटी के बारे में सुना होगा.

कोई मजाक में कहता है तो कोई सीरियस होकर, पर क्या आप वाक्य का अर्थ जानते हैं? मीम्स में भी दो जून का काफी प्रचलन है, लोग इसके जुड़े फनी पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर भी करते हैं. इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर ‘दो जून की रोटी’ का अर्थ क्या होता है! और इसे लेकर इतने मीम क्यों बनते हैं..?

जिस ‘जून’ को हम महीने के तौर पर जानते हैं, उसे अवधी भाषा में ‘वक्त’ के रूप में जाना जाता है. तो दो जून की रोटी का अर्थ हुआ, "दो वक्त की रोटी". यानी सुबह और शाम का भोजन. जब किसी को दोनों वक्त का खाना नसीब हो जाए तो उसे दो जून की रोटी खाना कहते हैं और जिसे नहीं मिलता उसके लिए कहा जाता है कि दो जून की रोटी तक नहीं नसीब हो रही है! वाकई ये रोटी सिर्फ किस्मत वालों को मिलती है और अगर आप उनमें से एक हैं तो आपको परमात्मा का शुक्रगुजार होना चाहिए.

दो जून की रोटी' के क्या हैं मायने

दरअसल 'दो जून की रोटी' एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है कि दिनभर में आपको दो टाइम का खाना मिल जाना. माना जाता है कि जिस शख्स को दो टाइम का खाना मिल रहा है, वह किस्मतवाला है. क्योंकि कई लोगों को मेहनत करने के बावजूद दो टाइम का खाना तक नसीब नहीं हो पाता है. अब इसके इतिहास की जानकारी तो नहीं लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ यही निकाला जाता है. 

इतिहासकारों ने भी किया है रचनाओं में जिक्र 

बड़े-बड़े इतिहासकारों ने दो जून की रोटी का जिक्र अपनी रचनाओं में किया है. प्रेमचंद से लेकर जयशंकर प्रसाद तक ने इस कहावत को अपनी कहानियों में शामिल किया. महंगाई के दौर में अमीर तो भर पेट खाना खा लेते हैं, पर गरीबों के लिए दो जून की रोटी भी नहीं नसीब है. आपने इस तरह के वाक्य अक्सर कहानियों या खबरों में पढ़े होंगे. इसमें भी जून महीने से नहीं, बल्कि दो वक्त के खाने से ही मतलब है.

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