नई दुनिया सिलेंडर प्रिटिंग से जब आफसेट प्रिटिंग के दौर में आई, तब अखबारों के इन्दौरी इतिहास में आधुनिक क्रांति का दौर आया था, खासकर प्रिंट मीडिया के। आफसेट प्रिंटिंग मशीन के साथ रंगीन अखबार भी आया। शुरुआत में तब अखबार ब्लेक एंड व्हाइट ही रहा।
साप्ताहिक रविवारीय अंक के चार पेज रंगीन छपते थे या कोई बड़ा घटनाक्रम हो तब रंगीन अखबार छपता रहा। खैर आफसेट मशीन आई तो उस तकनीक के विशेषज्ञ भी जरुरत थी। तब जो लोग थे वे सिलेंडर प्रिंटिंग मशीन के जानकार थे। आदरणीय नरेन्द्र तिवारीजी के संपर्क यहाँ भी काम आए।
कौनसी मशीन लेनी है यह भी तिवारीजी ने ही चयन किया था। तिवारीजी कर्नाटक के बंगलौर के पास के कस्बे में रहने वाले, उस समय वे थामसन प्रेस दिल्ली में आफसेट प्रिटिंग का काम देख रहे श्री जेवियर फ्रांसीस को विशेष तनख्वाह और सुविधा पर इन्दौर लाए। बाबूजी ने रामस्वरूप शुक्ल दयालगुरु से कहकर सुदामा नगर में एक मकान दिलवा दिया था। फ्रांसीस जी को नई दुनिया की ओर से एक माह के प्रशिक्षण के लिए जापान भी भेजा गया था।
बड़े सज्जन, कर्तव्यनिष्ठ और अपनी विधा के विशेषज्ञ थे। नई- नई मशीन, शुरुआत में कभी भी खड़ी हो जाती, अखबार छपाई का समय और क्या करें..? इस हर सवाल का जवाब जेवियर फ्रांसीस ही होते थे। वे आफसेट मशीन के मुम्बई, दिल्ली, बंगलौर आदि के स्थापित विशेषज्ञों के संपर्क में रहते थे, फोन पर समस्या बताना, हल पूछना और स्वयं ही उस समस्या का हल कर लेते थे।
फ्रांसीस साहब के रहते एक बार भी मैंने यह नहीं देखा कि अखबार देर से छपा हो। हाँ शुरुआत में सिलेंडर मशीन अखबार प्रकाशन से हटाई नहीं थी। दोनों ही मिलकर आवश्यक प्रसार संख्या पूरी कर देती थी। फिर तो गति पकड़ ली..।
जेवियर फ्रांसीस का कौशल ही था कि नई दुनिया को प्रिंटिंग में राष्ट्रीय स्तर पर लगातार प्रथम पुरुस्कार मिला। प्रिंटिंग के संदर्भ में उनका सलाह सर्वोपरि होती थी। इसका लाभ भी नई दुनिया को मिला। वैसे भी नई दुनिया अपनी सामग्री, शुद्ध हिन्दी के कारण लोकप्रिय था ही, जेवियर फ्रांसीस के प्रिंट कौशल चार चांद लगा दिया। पुरुस्कार ने नई दुनिया को अलग पहचान दी।
एक मशीन से दो, तीन, चार मशीनें हो गईं, प्रसार संख्या एक लाख को पार कर गई। श्री जेवियर फ्रांसीस धीरे-धीरे अंग्रेजी से टूटी-फूटी हिन्दी बोलने लगे। फिर मिक्स हिन्दी और मीठी लगने वाली हिन्दी, उच्चारण में कन्नडा स्टाईल। फिर तो वे फर्राटे से हिन्दी बोलने लगे...।
वे पूरे इन्दौरी हो गए। यहाँ उनकी मित्रमंडली भी बन गई। परिवार, बच्चे भी रम गए। श्रेष्ठ व्यावहारिक और सबसे संबंध निभाने वाले सज्जन इंसान, मुस्कराते रहना उनकी खूबी रही। टीप-टाप रहना, हमेशा टाई लगाए रखना उनकी लाइफ स्टाइल थी।
नई दुनिया में उन्होंने प्रशिक्षण देकर अपनी एक स्थानीय टीम बना ली थी। तीनों मशीन पर प्रशिक्षित इंचार्ज तैयार किए और मशीन के हर बिन्दु पर काम करने वाले मशीनमैन तैयार किए। प्लेट बनाना, कैमरे से फिल्म, फिल्म से प्लेट पर इम्प्रेशन, उसे साफ करना, मशीन पर चढ़ाना और उसके पहले स्याही लोड करना, प्लेट पर पानी की निरंतरता से लेकर अखबार काऊंटिंग करने वाले कर्मचारी भी उनसे प्रशिक्षण लेकर ही रोजी-रोजी कमा रहे थे। मेरे देखते-देखते ही सौ से अधिक कर्मचारी प्रिंट, कैमरा और प्लेट मैकिंग सेक्शन में काम करने लगे।