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सांसद राहुल गांधी की पहल का असर जब राजस्थान में ही नहीं हुआ तो फिर हरियाणा में कैसे होता...?

आपकी कलम Published by: paliwalwani Updated Fri, 11 Oct 2024 09:51 PM
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केजरीवाल की कुर्सी पर न बैठने का संकल्प लेने वाली आतिशी अब मुख्यमंत्री के बंगले को लेकर लालायित क्यों हैं?

6 उम्मीदवारों की घोषणा के बाद यूपी में सपा-कांग्रेस का गठबंधन क्या मायने रखता है?

10 अक्टूबर 2024 को दिल्ली में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के निवास पर हरियाणा के चुनाव परिणाम को लेकर एक बैठक हुई। इस बैठक में सांसद राहुल गांधी का मानना रहा कि हरियाणा के कुछ नेताओं का इंट्रेस्ट पार्टी से ऊपर था। असल में राहुल गांधी ने यह बात भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा  के बीच चल रही खींचतान के संदर्भ में कही।

चुनाव प्रचार के दौरान भी राहुल गांधी ने मंचों पर हुड्डा और शैलजा का हाथ उठाया और फिर हवा में ही मिलवा भी। यानी दोनों के हाथ ऊपर की तरफ मिले। यही वजह रही कि जमीन पर हुड्डा और शैलजा एकमत नहीं हो सके। मालूम हो कि जिस प्रकार हरियाणा में राहुल गांधी ने हुड्डा और शैलजा के हाथ उठवाए, वैसे ही गत वर्ष दिसंबर में हुए राजस्थान के चुनाव में भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के हाथ उठवाए थे।

चूंकि राजस्थान में भी इन दोनों नेताओं में एकजुटता नहीं हो सकी, इसलिए कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। जाहिर है कि राहुल गांधी ने राजस्थान की हार से कोई सबक नहीं लिया। राहुल गांधी को लगा कि हुड्डा और शैलजा के हाथ  ऊपर करवा देने से कांग्रेस की जीत हो जाएगी।

असल में राहुल ने जो गलती राजस्थान में की उसे ही हरियाणा में दोहराया गया। राजस्थान में चुनाव की कमान अशोक गहलोत को दी गई, इसी प्रकार हरियाणा में कुमारी शैलजा से ज्यादा हुड्डा को महत्व दिया गया। राहुल गांधी को अब तय करना होगा कि आखिर प्रदेश की कमान किस नेता को दी जाए।

 बंगले से मोह क्यों?:

सब जानते हैं कि आतिशी ने जब दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थी, तब सचिवालय में मुख्यमंत्री की उस कुर्सी पर न बैठने का संकल्प लिया, जिस पर अरविंद केजरीवाल बैठते थे। आतिशी का कहना रहा कि मुख्यमंत्री की इस कुर्सी पर सिर्फ केजरीवाल का ही अधिकार है।

आज भी आतिशी सचिवालय में केजरीवाल वाली कुर्सी के पास अपनी छोटी कुर्सी पर लगाकर बैठती है। सवाल उठता है कि जब आतिशी केजरीवाल की कुर्सी पर नहीं बैठ रही है तो फिर मुख्यमंत्री के बंगले को लेकर इतनी लालायित क्यों हैं? उल्लेखनीय है कि केजरीवाल ने जब मुख्यमंत्री का बंगला खाली किया तो बंगले की चाबी आतिशी को दे दी, लेकिन दिल्ली के उपराज्यपाल ने बंगले के आदान प्रदान को गलत माना और आतिशी से बंगला खाली करवा लिया।

अब आतिशी पर द्वेषता के आरोप लगा रहे है। अच्छा होता कि केजरीवाल की कुर्सी की तरह आतिशी बंगले का भी मोह नहीं दिखाती। फिलहाल यह बंगला पीडब्ल्यूडी के कब्जे में है तो अब यह सार्वजनिक होगा कि केजरीवाल ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी सुविधाओं के लिए क्या क्या सामान सरकारी स्तर पर तैयार करवाया। जल्द ही इस बंगले के वीडियो उजागर होने वाले हैं।

 गठबंधन के क्या मायने?:

10 अक्टूबर को 10 सीटों में से 6 पर उम्मीदवारों की एकतरफा घोषणा करने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन बना रहेगा। यूपी में इसी वर्ष विधानसभा की 10 सीटों पर उपचुनाव होने है। सवाल उठता है कि जब उम्मीदवारों की एकतरफा घोषणा कर दी गई है, तब गठबंधन क्या मायने रखता है? असल में हरियाणा चुनाव में सपा ने उत्तर प्रदेश की सीमा में लगी सीट मांगी थी, लेकिन कांग्रेस ने देने से मना कर दिया।

सीट शेयरिंग न होने पर भी सपा चुप रही, लेकिन अखिलेश यादव ने हरियाणा चुनाव का बदला ले लिया है। अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव ने कहा भी कि यदि हरियाणा में समझौता होता तो सपा की वजह से यादवों के वोट मिल जाते। परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा के यादव विधायक ज्यादा है। मालूम हो कि हरियाणा की हार के बाद इंडिया गठबंधन के दल कांग्रेस पर हावी है।

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