Dev Shrimali...
ग्वालियर नगर निगम में बीजेपी का अजेय सियासी दुर्ग ढह जाने के कारण उपजा अवसाद अभी छंट भी नहीं पाया था कि आज बीजेपी को एक और बड़ा तगड़ा झगड़ा लगा । मुरैना नगर निगम में बीजेपी प्रत्याशी की करारी हार और वहां काँग्रेस प्रत्याशी शारदा सोलंकी ने जीत दर्ज कराई है। वे लगभग चौदह हजार मतों के बड़े अंतर से जीतीं। मुरैना में यह चुनाव केंद्रीय कॄषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ था। तोमर मुरैना से ही संसद सदस्य है और बीजेपी के राष्ट्रीय नेता भी इसलिए देश भर की मीडिया ही नहीं बल्कि पक्ष- विपक्ष के नेताओं की निगाहें भी इसके परिणाम पर टिकीं थीं। लेकिन अब जब यह परिणाम भी ग्वालियर की तरह कांग्रेस के पक्ष और बीजेपी के खिलाफ आया तो इनकी साख को लेकर भी विश्लेषण होने लगा।
ग्वालियर - चम्बल संभाग में बीजेपी के खिलाफ और कांग्रेस के समर्थन में इस लहर को आंधी के विस्फोटक रूप में ग्वालियर नगर निगम चुनाव के परिणाम आये । ग्वालियर नगर निगम में बीजेपी हार भी सकती है इस बात की पार्टी का कोई नेता कल्पना भी नही कर सकता था और कांग्रेसियों को तो सपने में भी यह दृश्य नही दिखता था कि जल विहार में कोई कांग्रेस की मेयर शपथ ले रही है। इस बार तो दिल्ली और भोपाल में बैठे पार्टी के आला नेताओं की जीत के आश्वस्ति और भी प्रभावी थी क्योंकि पार्टी ये मानकर चलती थी कि अंचल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने दल-बल सहित बीजेपी में आ जाने के बाद कांग्रेस तो समाप्त ही हो गई। लेकिन जब नगर निगम चुनावो का आगाज हुआ।
मेयर से लेकर पार्षद प्रत्याशियों के नामों की घोषणा हुई वैसे ही लगने लगा था कि हालात ठीक नही है। इसके बाद सीएम शिवराज सिंह, प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा ही नही बल्कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा अनेक मंत्री और बड़े नेताओं ने आकर ग्वालियर और मुरैना में डेरा डाला। बैठक,सभा और रोड शो किये । इन आयोजनों में भव्यता तो दिखी लेकिन न कार्यकर्ताओं में जोश भर सका और न ही आम जनता की नाराजी दूर हो सकी। जो ध्वनि सडकों पर सबको सुनाई पड़ रही थी उसे अपने फील गुड में बीजेपी नेता सुनने को ही तैयार नहीं थे।
यही बजह है कि ग्वालियर जिसे बीजेपी जनसंघ के समय से अपनी प्रयोगशाला कहती थी जो कुशाभाऊ ठाकरे से लेकर, अटल विहारी वाजपेयी तक की कर्म और जन्मभूमि रही हो ,वहां बीजेपी अपनी 57 वर्ष पुरानी नगर निगम की सत्ता गंवा बैठी। बीजेपी की उम्मीदवार श्रीमती सुमन शर्मा यहां सिर्फ हारी ही नहीं बल्कि वे उस काँग्रेस की प्रत्याशी श्रीमती शोभा सिकरवार से हर राउंड में पिछड़ी जिसका मेयर बने आधी शताब्दी से ज्यादा समय बीत गया था। पिछले चुनाव में यहाँ से मेयर प्रत्याशी विवेक नारायण शेजवलकर 99000 हजार के अंतर इकतरफा जीते थे।
कांग्रेस बमुश्किल अपने दस पार्षद जिता सकी थी लेकिन इस बार बीजेपी मानकर चल रही थी कि उसके पास डबल शक्ति है । इस अंचल के कांग्रेस के क्षत्रप ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उसके साथ है, लेकिन हुआ उल्टा। सिन्धिया की शक्ति प्लस से प्लस जुड़कर माइनस में बदल गई। कांग्रेस में व्याप्त सनातन गुटबाजी का वायरस बीजेपी में भी घुस गया। बैठकों से लेकर सड़कों तक टकराव और गुटबाजी ही चर्चा में रही। रूठने वालों की कतार बढ़ती रही और मनाने वाले बंगलों में ही रहे या भव्य रोड शो में। कॉंग्रेस नेता अपनो को खामोशी से मनाने और पटाने में लगे रहे। पहले बीजेपी में रहे मेयर प्रत्याशी के पति विधायक डॉ सतीश सिकरवार अपने पुराने साथियों की दुखती रग सहलाकर उन्हें भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि वे भले ही दूसरे दल में हों ,वक्त जरूरत उनके काम वे ही आएंगे। और वे अपने मिशन में कामयाब हो गए।
ग्वालियर की पराजय का चिंतन कर सही कारणों की तलाश करने की जगह बीजेपी इसका ठीकरा कम मतदान पर फोड़कर खुद को भरमाती रही यही बजह है कि जब 13 जुलाई 2022 को मुरैना नगर निगम के लिए मतदान हुआ और वहां मतदान केंद्रों पर खूब भीड़ उमड़ी तो बीजेपी नेता फिर फीलगुड में आत्ममुग्ध नज़र आये । उन्हें लगा यह सीएम के रोड शो, प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा के प्रभाव और नरेंद्र सिंह के कुशल नेतृत्व का नतीजा है । वोट प्रतिशत बढ़ा भी लेकिन नतीजा वैसा ही निकला जैसा ग्वालियर में था। मतगणना शुरू होते ही बीजेपी प्रत्याशी चक्र -दर-चक्र पिछड़ने लगी और महज एक घण्टे में ही उन्होंने निर्णायक बढ़त बना ली। ज्यादा मतदान का भी फायदा कांग्रेस को ही हुआ । वह वहां ज्यादा पार्षदों को जिताने में भी कामयाब रही जो मौका वह ग्वालियर में चूक गई ।
पहले चरण की मतगणना में लहार क्षेत्र से नगर पालिका और नगर परिषदें बीजेपी मुक्त हो चुकी थी आज मेहगांव, मौ में कांग्रेस फायदे में रही जबकि गोरमी,भिण्ड,अकोड़ा,गोहद में मुक़ाबले में। मालनपुर और फूप ही ऐसी है जहाँ से उसके लिए अच्छी खबर है।
बीजेपी के लिए इन परिणामो ने अलार्म बजाया है कि वे हार के लिए फेस सेविंग के बहाने गढ़ने की जगह सही कारणों की तलाश करें ताकि 2023 को सुरक्षित कर सकें।लेकिन सियासत में ऐसा होता कहां है । कार्यकर्ता की बात सब करते है लेकिन उसकी सुनता कोई नही। इस पर मदन मोहन दानिश के एक शेर मौजूद है-