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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भगवा ध्वज को अपना गुरु माना

आपकी कलम Published by: Nilesh Paliwal Updated Tue, 19 Jul 2016 11:40 AM
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भारतीय संस्कृति में गुरु को असीम श्रद्धा एवं आदर का केंद्र माना गया है। गुरु को आचार्यो देवोभव की संज्ञा दी गई है। आषाढ मास की पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा या आषाढी पूनम के नाम से प्रसिद्ध है। इसी दिन गुरुकुलो में विघार्थी अपने गुरु की पुजा करते थे। गुरु पूर्णिमा का पर्व अनादि काल से चला आ रहा है। महर्षि वेदव्यास ने इसे और अधिक व्यापक स्वरुप प्रदान किया। इस कारण से व्यास पूर्णिमा भी कहते है। गुरु अर्थात् अज्ञान रुपी अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला परमात्मा तक पहुंचने का मार्गदर्शन गुरु से ही प्राप्त होता है।

गारयते विज्ञापयति शास्त्र रहस्यम् इति गुरुः।
गिरति अज्ञानांधकारम् इति गुरुः।।

अर्थात् जो वेद आदि शास्त्रों के रहस्य को स्पष्ट करता है वही गुरु है। जो अनमोल उपदेशांे के द्वारा शिष्यों का अज्ञान रुपी अंधकार दूर करता है वही गुरु है। गुरु तो गोविन्द से भी बडा हैंै। इस पृथ्वी पर जब-जब भी भगवान ने अवतार लिया तो उन्हंे भी गुरु का ही आश्रय लेना पड़ा। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, संत कबीर, रैदास, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, आदि ने भी गुरु की दीक्षा से ही महापुरुषों का दर्जा प्राप्त किया।
      अगर हम भारतीय इतिहास का अवलोकन करें तो असंख्य महापुरुषों के निर्माण और व्यक्तित्व- कृतित्व के पीछे-पीछे गुरुओं की विशाल श्रृंखला रही इसीलिए हिन्दू समाज में गुरु की गरिमा है। इतिहास साक्षी है कि एकलव्य को भील बालक कहकर गुरु द्रोणाचार्य ने शस्त्र- विघा सीखाने से इंकार कर दिया था। लेकिन एकलव्य की आचार्य द्रोण के प्रति अटूट निष्ठा थी। उसी निष्ठा से उसने गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाई। उसे ही साक्षात् गुरु मानकर नित्य उसकी पूजा- अर्चना कर स्वयं ही धनुर्विधा का अभ्यास करने लगे। एक दिन धनुर्विधा में वह इतना पारंगत हो गया कि गुरु द्रोणाचार्य के परम प्रिय शिष्य अर्जुन को उसने मात दे दी।
गुरु कृपाचार्य की शिक्षा ने युधिष्ठिर को सत्यवादी बनाया। श्री रामकृष्ण परमहंस जैसे गुरु को पाकर ही स्वामी विवेकानंद का विवेक जागृत हुआ। तभी देश में ही नही विदेशों मंे उन्होंने स्वधर्म का प्रचार किया।
        समर्थ गुरु रामदास के मार्गदर्शन से ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य अर्थात हिन्दू पदपादशाही की स्थापना कर इतिहास की दिशा ही बदल दी। महाभारत में अर्जुन ने किरात वंशी शिव की स्तुति करते हुए नमो बालक वर्णीय अर्थात् शिव को उगते सूर्य की उपमा दी है। भगवा रंग उगते हुये सूर्य का रंग है अर्थात् शिव स्वरुप है जो लोक कल्याणकारी है। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, अर्जुन, विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरुगोविंद सिंह आदि महापुरुषों ने इसी भगवा ध्वज की छत्रछाया में विजय श्री को प्राप्त किया है। हमारे देश के वीरो, बालको ने और माताओं ने भी इसी ध्वज की रक्षा के लिए अपना जीवन सर्वस्व बलिदान किया है।
        राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भगवा ध्वज को अपना गुरु माना है। गुरु पूर्णिमा पर भगवा ध्वज की पूजा कर गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाया जाता है। यह पर्व व्यक्ति मे त्याग, तपस्या एवं राष्ट्र-समाज सेवा के लिए तन, मन, धन, से ही समर्पण के भावो का संचार करता है। राष्ट्रीय नमः राष्ट्रीय, इदं न मम् अर्थात मेरा जीवन मेरी शक्ति सामथ्र्य, ज्ञान, ऐश्वर्य, अपना व्यक्तित्व व कृतित्व तथा जीवन का क्षण-क्षण व रक्त का कण-कण और अपनी सभी धन संपदा आदि सभी कुछ राष्ट्र के कल्याण के काम में आए। ऐसा भाव जब प्रत्येक व्यक्ति में होता तभी यह राष्ट्र शक्तिशाली बनकर, सुखी, संपन्न हो सकेगा। यह संदेश इस गुरु पूर्णिमा पर्व का है।

नीलेश पालीवाल
राजसमंद,राजस्थान
मोबाईल नं. 08764124279

Paliwalnilesh038@gmail.com

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