भोपाल

अमरवाड़ा सीट का उपचुनाव : ईवीएम की कलाकारी और सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग से भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को जितवाया

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अमरवाड़ा सीट का उपचुनाव : ईवीएम की कलाकारी और सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग से भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को जितवाया
अमरवाड़ा सीट का उपचुनाव : ईवीएम की कलाकारी और सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग से भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को जितवाया

मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और आलाकमान नहीं कर पाया गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से करार, क्या जानबूझकर भाजपा को दिया गया फायदा?

क्या कमलनाथ को कमजोर करने के लिए कांग्रेस-भाजपा ने मिलाया था हाथ?

यदि ऐसे ही कमलनाथ को कमजोर करते रहे तो प्रदेश से कांग्रेस खत्‍म हो जायेगी

विजया पाठक, एडिटर : जगत विजन

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा सीट पर हुए उपचुनाव के परिणाम सामने आ गए हैं। चुनाव के परिणाम कांग्रेस पार्टी के अनुकूल नहीं रहे और लंबे समय से वर्चस्व की लड़ाई से जूझ रहे कांग्रेस के उच्च दर्जे के नेताओं की आपसी कलह के कारण भाजपा के उम्मीदवार कमलेश शाह लगभग तीन हजार मतों से विजयी हुए।

इस जीत को करीब से देखें तो कई प्रश्न मन में उठते हैं। जो प्रत्याशी अपने ही बूथ में प्रतिद्वंदी प्रत्याशी से कम वोट पा रहा है, जो प्रत्याशी नोटा को मिले मत से कम वोट पा रहा है, आखिर उसकी जीत बगैर शासकीय मशीनरी के सहयोग के बिना कैसे संभव है। बिना ईवीएम मशीन में खेला किए कैसे संभव है।

इस जीत को देखने के बाद कई प्रश्न मन में उठते हैं और कांग्रेस पार्टी को इन प्रश्नों के जवाब चुनाव आयोग से जरूर लेना चाहिए। क्योंकि यह हार कमलनाथ या नकुलनाथ की नहीं यह हार संपूर्ण कांग्रेस पार्टी और प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की भी है। पटवारी ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अगर बेहतर ढंग से इस सीट का प्रबंधन किया होता तो आज परिणाम कुछ और होते। पटवारी व कांग्रेस कार्यालय के सूत्रों के अनुसार पटवारी व अन्य नेता बिल्कुल नहीं चाहते थे कि कमलनाथ के नेतृत्व में पार्टी अमरवाड़ा सीट जीते।

अनदेखी के बावजूद जमे हुए हैं कमलनाथ

यदि प्रदेश में ऐसे ही कमलनाथ को कमजोर करते रहे तो निश्चित ही प्रदेश से कांग्रेस खत्‍म हो जायेगी। प्रदेश में कमलनाथ ही एकमात्र चेहरा हैं जो कांग्रेस को जिंदा बनाये रख सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्‍य है कि प्रदेश के साथ-साथ आलाकमान भी कमलनाथ को पूरी तरह से खत्‍म करने अमादा है। कांग्रेस को देखना चाहिए कि प्रदेश में कौन जनप्रिय नेता है और‍ कौन कांग्रेस को जीवित रख सकते हैं। पहले विधानसभा, फिर लोकसभा और अब अमरवाड़ा का उपचुनाव। इन तीनों चुनावों में ही कांग्रेस ने कमलनाथ को कमजोर करने की कोशिश की। वह तो कमलनाथ जैसे कर्मठ और समर्पित नेता हैं जो इतनी अनदेखी होने के बाद भी पार्टी के प्रति समर्पण भाव से पार्टी से जुड़े हुए हैं।  

प्रदेश अध्यक्ष को लेना चाहिए हार की जिम्मेदारी

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर कांग्रेस की हार की स्क्रिप्ट तो तीन महीने पहले ही लिख दी गई थी। बताया गया कि जब कमलेश शाह ने भाजपा ज्वाइन किया उसके बाद ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने कमलनाथ और उनकी राजनीति को डेमेज करने के लिए इस योजना पर काम किया और उन्होंने इस योजना पर चरणबद्ध ढंग से कार्य भी किया। यही कारण है कि पटवारी ने अमरवाड़ा सीट पर न तो प्रचार सभाएं लेने का निर्णय किया और न ही वे उस सीट पर प्रचार के लिए गए। यहीं नहीं उन्होंने स्थानीय नेताओं से बात करना भी उचित नहीं समझा। इसीलिए इस हार का ठीकरा पार्टी आलाकमान को जीतू पटवारी पर फोड़ना चाहिए।

गोंडवाना पार्टी से भी संबंध रखने पर नहीं किया विचार

राजनैतिक विशेषज्ञों की बात करें तो कांग्रेस पार्टी के प्रदेश स्तर के नेता बारीकी से इसका प्रबंधन करते थे तो वह एक बड़ी गलती बिल्कुल नहीं करते। वह गलती थी गोंडवाना लोकतंत्र पार्टी के प्रत्याशी की अनदेखी। अगर पार्टी नेताओं ने देवीराम से बातचीत कर उन्हें कांग्रेस पार्टी के सहयोग का कहा होता तो आज जीत कांग्रेस पार्टी की होती। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के अहम के चलते पार्टी ने देवीराम से सहयोग नहीं मांगा। यह पहला मामला नहीं है जब पटवारी ने पहली बार ऐसा किया हो इससे पहले भी पार्टी आलाकमान को पार्टी के नेताओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार की जानकारी सामने आती रही है।

कमलनाथ के लिए प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव था

कमलनाथ के लिए यह बहुत प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव था क्योंकि प्रत्याशी कोई भी हो, छिंदवाड़ा की सातों सीटों पर वे कमलनाथ के नाम पर ही चुनाव लड़ते रहे हैं। वर्ष 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में यहां की सात सीटों पर कांग्रेस जीती थी, पर इस उपचुनाव में कमलनाथ अपनी साख नहीं बचा पाए।

अगर हम कमलनाथ के राजनैतिक इतिहास पर नजर डालें तो कमलनाथ छिंदवाड़ा से नौ बार सांसद रहे हैं। उनकी पत्नी अलका नाथ और बेटे नकुलनाथ ने एक-एक बार लोकसभा में इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी जितेंद्र सिंह को छोड़ दें तो कांग्रेस का कोई राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए छिंदवाड़ा नहीं पहुंचा।

केवल एक बार जीत सकी थी भाजपा

मध्यप्रदेश में सिर्फ़ छिंदवाड़ा ही एक ऐसी संसदीय सीट है, जिस पर भारतीय जनता पार्टी सिर्फ़ एक बार जीत हासिल कर पाई है। ये सीट भी बीजेपी के पास सिर्फ़ एक साल तक रही थी, जब राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा ने उपचुनाव में कमलनाथ को हराया था।

वर्ष 1977 में भी जब पूरे देश में इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ लहर थी, तब भी ये सीट कांग्रेस ने ही जीती थी। आज़ादी के बाद से ये सीट ज़्यादातर कांग्रेस की रही है और कमलनाथ के परिवार का इस पर क़ब्ज़ा 40 सालों से भी ज़्यादा से है। दूसरा सबसे अहम पहलू ये है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कमलनाथ के क़रीबी माने जाने वाले कांग्रेस के नेताओं का बीजेपी में एक-एक कर जाने का सिलसिला शुरू हो गया था।

छिंदवाड़ा को कांग्रेस से ज़्यादा कमलनाथ का अभेद्य गढ़ माना जाता रहा है। पिछले दो विधानसभा के चुनावों में छिंदवाड़ा की सात में से सात सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीत मिली थी।

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