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संत प्रेमानंद ने जब खुद को मौत के लिए तैयार बताया : बोले मुझे देख. मौत सिर पर है. फिर भी मैं मस्त हूं...

धर्मशास्त्र Published by: paliwalwani Updated Mon, 09 Jun 2025 02:00 AM
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संत प्रेमानंद महाराज का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. देश के कोने-कोने से ही नहीं. बल्कि विदेशों से भी लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर आते हैं. हर कोई यही चाहता है कि संत प्रेमानंद उनकी उलझनों का कोई सीधा और सच्चा रास्ता बता दें.

दो सौ से तीन सौ बार तक हाथ धो डालता है. ये देखकर उसकी मां भी रोने लगती

इसी बीच हाल ही में उनके पास एक ऐसा युवक पहुंचा. जिसकी हालत देखकर वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया. उसने कहा कि जब से कोरोना का दौर शुरू हुआ है. तब से वो हर वक्त बस हाथ धोता रहता है. उसे लगता है कि उसके चारों ओर वायरस हैं. अगर उसने हाथ नहीं धोए. तो कुछ बहुत बुरा हो सकता है. दिन भर में वो दो सौ से तीन सौ बार तक हाथ धो डालता है. ये देखकर उसकी मां भी रोने लगती है.

जब मौत सामने है. तब भी मैं शांत हूं

युवक की ये हालत सुनकर संत प्रेमानंद कुछ पल शांत रहे. फिर बोले. इसमें डरने की क्या बात है. मेरी तो दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं. मैं हर रोज डायलिसिस करवा रहा हूं. किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है. मगर मैं बिल्कुल भी नहीं डरता. मरने के लिए पूरी तरह तैयार हूं. मुझे एक संत ने पहले ही बता दिया था कि मेरी उम्र अस्सी साल तक है. अब जब मौत सामने है. तब भी मैं शांत हूं. और तुम हो कि जवान होकर भी खौफ में जी रहे हो.

युवक ने फिर कहा कि महाराज जी मैं बाहर निकलने से डरता हूं. अगर किसी वजह से जाना भी पड़ जाए. तो लौटकर कई-कई घंटे तक नहाता हूं. खुद को साबुन से पूरी तरह धो डालता हूं. बस और ऑटो जैसी जगहों पर तो मैं बिल्कुल नहीं जा सकता. वहां भी मुझे बस संक्रमण ही नजर आता है.

मुझे देख. मौत सिर पर है. फिर भी मैं मस्त हूं

संत ने मुस्कराते हुए कहा. बेटा इतनी चिंता किस बात की है. क्या तूने कभी मुझे शिकायत करते सुना. मुझे देख. मौत सिर पर है. फिर भी मैं मस्त हूं. डरने से कुछ नहीं रुकता. जिंदगी को जीना है. तो खुलकर जियो. और हां. बस शौच के बाद अच्छे से हाथ धोना. बाकी बार-बार हाथ धोकर तुम खुद को थका रहे हो.

इसी दौरान वहां बैठे एक शख्स ने बातचीत के बीच में कहा. वो एक डॉक्टर है. और उसे लगता है कि इस युवक को मानसिक बीमारी है. जिसे मेडिकल भाषा में ओसीडी कहा जाता है.

संत प्रेमानंद ने उसे भी सुना. और युवक की ओर देखते हुए फिर बोले. देखो बेटा. जीवन बहुत छोटा है. उसे डर के हवाले मत करो. भरोसा रखो. एक बार खुद पर और ईश्वर पर विश्वास करके बाहर निकलो. देखना कुछ नहीं होगा. मैं निडर हूं. क्योंकि मैंने जीना सीख लिया है. तुम भी जीना सीखो. डरकर नहीं. विश्वास के साथ.

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