इस बार 100 साल बाद करवा चौथ पर महासंयोग का निर्माण हो रहा है। इस वजह से ये पर्व और भी खास होने वाला है, तो आइए जानते हैं इस महासंयोग के बारे में :
बुध-आदित्य योग: करवा चौथ के दिन बुध और सूर्य एक साथ होंगे। जिससे बुध-आदित्य योग बनेगा। इस योग को बहुत शुभ माना जाता है। मृगशिरा नक्षत्र: करवा चौथ के दिन चंद्रमा मृगशिरा नक्षत्र में होगा। इस नक्षत्र को भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। शिव-परिघ योग: करवा चौथ के दिन शिव-परिघ योग भी बनेगा। इस योग को भी बहुत शुभ माना जाता है।सर्वार्थ सिद्धि योग: करवा चौथ के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बनेगा। इस योग को किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए शुभ माना जाता है।
अमृत योग : करवा चौथ के दिन अमृत योग भी बनेगा। इस योग को सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शुभ माना जाता है। करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर, 2023 को रखा जाएगा। इस दिन चंद्रोदय का समय रात 8:37 बजे है। करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:44 बजे से 7:02 बजे तक है। इस समय के दौरान सुहागिनें करवा चौथ की पूजा कर सकती हैं।
करवा चौथ की पूजा विधि :
हिंदू धर्म में महिलाएं पति की दीर्घ आयु के लिए कई व्रत रखती हैं और करवाचौथ उन्हीं में से एक है। इस दिन पत्नियां सारा दिन निर्जला व्रत रखकर शाम को चांद को अर्घ्य देकर और भगवान की पूजा करके अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करके अपना व्रत तोड़ती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत रखा जाता है। इस बार 1 नवम्बर यानी बुधवार को करवाचौथ मनाई जा रही है। आजकल कई कुंवारी कन्याएं भी यह व्रत रखती हैं। सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए ऐसा किया जाता है।
करवाचौथ पर व्रत रखने के अलावा कई और परंपराएं भी हैं, जिनका लंबे समय से पालन किया जाता रहा है। करवाचौथ यानी ‘करवा’ और ‘चौथ’। करवा का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन और चौथ मतलब ‘चतुर्थी’। इस दिन मिट्टी के इस बर्तन की पूजा की जाती है, इसलिए इसे करवाचौथ नाम दिया गया है। करवाचौथ का व्रत रखने से पति की लंबी उम्र ही नहीं बल्कि दोनों के बीच रिश्ता भी और मजबूत होता है। यह त्योहार पति-पत्नी के अटूट रिश्ते में प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
प्राचीन काल की कथा है कि एक साहूकार के 7 लड़के और एक लड़की थी। कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर घर की सभी महिलाओं ने करवाचौथ का व्रत रखा। रात्रि बेला में साहूकार के बेटे जब भोजन करने बैठे तो उन सभी ने अपनी बहन से भी भोजन करने को कहा। मगर बहन ने यह कहकर भोजन करने से मना कर दिया कि उसका आज करवाचौथ का व्रत है। भूख के कारण बहन का मुर्झाया चेहरा देखकर भाइयों से रहा नहीं गया। भाइयों ने पेड़ की ओट में एक दिया जलाकर रख दिया और बहन को बोला कि चांद निकल आया है और वह अर्घ्य देकर खाना खा सकती है।
बहन ने दिए को चांद समझकर अर्घ्य दे दिया और उसके बाद भोजन करने बैठ गई। उसने जैसे ही भोजन का पहला निवाला तोड़ा, उसके पति के मरने की खबर आ गई। उसे समझते देर नहीं लगी कि सभी देवी-देवता उससे नाराज हो गए हैं और इस कारण ऐसा हुआ है। उसके बाद वह अपनी ससुराल पहुंचकर अपने पति के शव के पास ही बैठी रही। उसने फिर से पूरे विधि-विधान के साथ करवाचौथ का व्रत रखा। भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर उसके पति को जीवित कर दिया और उसके घर को फिर से खुशहाल कर दिया।
करवाचौथ पर महिलाएं सारे दिन निर्जला व्रत रहती हैं। शाम में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही करवा की भी पूजा की जाती है। उसके बाद चांद को अर्घ्य देकर महिलाएं अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करके व्रत खोलती हैं।
करवाचौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है। नवविवाहिता के पहले करवा चौथ पर कुछ परिवारों में मायके से ससुराल में उपहार स्वरूप वस्त्र और श्रृंगार का सामान भिजवाया जाता है, जिसे पहन कर ही नवविवाहिता यह पूजा करती हैं। करवा चौथ के दिन छोटी बहू, परिवार की बड़ी बहू या फिर सास को करवा और मिष्ठान्न प्रदान कर अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती है।