मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने पत्नी के 20 साल से अधिक समय से अलग रहने के आधार पर पति की तलाक की मांग को मंजूर कर लिया है। यही नहीं, कोर्ट ने दंपती के विवाह को भी भंग यानि खत्म (डिज़ॉल्व) कर दिया है। कोर्ट ने कहा मामले में पत्नी का आचरण क्रूरता के दायरे में आता है। केस से जुड़े दंपती का वैवाहिक जीवन पूरी तरह से टूट चुका है। वैवाहिक रिश्ते में आत्मीयता का अभाव दिख रहा है। शादी के रिश्ते के पुनर्जीवित होने की संभावना नहीं है। दोनों ने एक दूसरे को छोड़ दिया दिया है। दिसंबर, 2002 से पत्नी, पति से अलग रह रही है। दंपती ने पहले तलाक के लिए आपसी सहमति से ठाणे जिला कोर्ट में आवेदन किया था, मगर बाद में पत्नी ने तलाक की सहमति को वापस ले लिया था। इसे देखते हुए जिला कोर्ट के तलाक की अर्जी को खारिज़ कर दिया था। निचली अदालत के आदेश के खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में अपील की थी।
मामले से जुड़े दंपती का विवाह 19 अप्रैल, 1999 में हुआ था। दोनों का यह दूसरा विवाह था। पहली शादी से दोनों को एक-एक बेटी थीं। विवाह के कुछ समय के बाद पति-पत्नी के रिश्ते में खटास आ गई। पति के मुताबिक, उसके और पत्नी के स्वभाव, आदतों, रुचियों, विचारों में भिन्नता बढ़ती जा रही थी, जिससे संबंधों में तनाव कम नहीं हो रहा था। पत्नी के जिद्दी स्वभाव और हावी होने की प्रवृत्ति से घर के लोग परेशान थे।
पति के अनुसार, एक दिन हद तब हो गई, जब मेरी पहली पत्नी की चौथी बरसी से कुछ दिन पहले ही मौजूदा पत्नी ने उसकी फोटो को दीवार से हटा कर फेंक दिया। फोटो वाले स्थान की स्थिति ऐसी कर दी कि वहां फिर से फोटो न लगाई जा सके। बूढ़ी मां व बेटी के प्रति भी पत्नी का व्यवहार ठीक नहीं था, जिससे उसका विवाह करने के उद्देश्य व सपना पूरी तरह से विफल हो गया। पत्नी की इन हरकतों से उसे भारी मानसिक क्रूरता का सामना करना पड़ा है। इसीलिए उसकी तलाक़ की मांग को मंजूर किया जाए।
जस्टिस पी़ के़ चव्हाण के सामने पति की अपील पर सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद जस्टिस चव्हाण ने पाया की निचली अदालत में सुनवाई के बाद से पत्नी एक बार भी हाई कोर्ट में उपस्थित नहीं हुई है। 18 सालों से यह अपील कोर्ट में प्रलंबित है। पत्नी ने अपील की कोई खोजबीन नहीं की है। निचली अदालत ने केस से जुड़े तथ्यों और सबूतों को सही नज़रिए से नहीं समझा है। मामले से जुड़े दंपती का विवाह टूट चुका है। वैवाहिक रिश्ते में विघटन साफ दिख रहा है, जिमसें सुधार की गुज़ाइश नहीं दिख रही। मामले पत्नी की हरकत हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1ए बी) के दायरे में आती है। यह मानसिक क्रूरता से संबंधित है। इस तरह जस्टिस चव्हाण ने पति के तलाक को नामंजूर करने वाले ठाणे कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है।