प्रबुद्ध नागरिक विचार मंच संगोष्ठी-वैचारिक पर्यावास को समृद्ध बना
राजसमंद। प्राकृतिक पर्यावरण के साथ-साथ वैचारिक पर्यावास को समृद्ध बनाकर तनाव मुक्त जीवनशैली विकास की संभावना प्रबल बन सकती है। हम घर परिवार एवं समाज के भौतिक एवं मानवीय विकास में सन्तुलन नहीं बना पाए तो मानव के अस्तित्व पर संकट बढ़ेंगे। उक्त विचार रविवार को विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रबुद्ध नागरिक विचार मंत्र एवं तुलसी साधना शिखर समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में उभर कर आए। संगोष्ठी की अध्यक्षता साधना शिखर कार्याध्यक्ष भंवरलाल वागरेचा ने की। जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में लोक अधिकार मंच के राष्ट्रीय महासचिव नरेन्द्रसिंह कछवाहा एवं डॉ. विजय खिलनानी थे। संगोष्ठी के विषय आधुनिक जीवन शैली का व्यक्ति के पर्यावास पर प्रभाव विषय प्रवर्तन करते हुए मंच समन्वयक राजकुमार दक ने कहा कि पारिवारिक संस्कारों की कमी और तनाव भारी जीवन शैली ने व्यक्ति में अवसाद के वातावरण को मजबूत किया है। इसके लिए हमें अपनी महत्वाकांक्षा को यर्थात् परक बनाना होगा। मंच सह समन्वयक दिनेश श्रीमाली ने भौतिकवादी जीवन शैली में बदलाव पर बल देते हुए कहा कि हम प्रकृति मित्र जीवन अपनाएंगे तो हमारे पर्यावास को अनुकूलन मिलेगा। गायत्री परिवार के गिरजाशंकर पालीवाल ने नैतिक मूल्यों के विकास में शिक्षण संस्थानों की भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि विद्यालयों में सेमीनार, संगोष्ठी, बागवानी से इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। डॉ. खिलनानी एवं कछवाहा ने कहा कि बौद्धिकता एवं श्रम के बीच की बढ़ती खाई हमारे लिए चिन्ता का विषय है जिसके चलते हमारे वैचारिक पर्यावरण को क्षति पहुंची है। हमारी कौशिश होनी चाहिए कि हम कौशल विकास, कृषि, प्रकृति आधारित रोजगार के अवसर पेश करें। लीलेश खत्री एवं कल्याणमल विजयवर्गीय ने प्रेक्षाध्यान, योग को अहिंसामूलक जीवन शैली का आधार बताते हुए कहा कि इससे सद् संस्कारों को प्रबल बनाया जा सकता है। संगोष्ठी में अध्यक्ष वागरेचा ने कहा कि कोरी डिग्री वाली शिक्षा ने हमारे मस्तिष्क को भले ही व्यापक बना दिया लेकिन हमारे दिल में संकुचन आया है। इस पर अंकुश लगाना आजा की अहम आवश्यकता है। इस अवसर पर बृजलाल कुमावत, जगदीशचन्द्र लड्ढा, महेशचन्द्र लोढ़ा, अभय महात्मा, डॉ. बालकृष्ण बालक, पूरणमल सामर ने भी विचार व्यक्त किए।