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5 अप्रैल को रुण्डेड़ा की सबसे अलग और निराली गैर का आयोजन

राजस्थान Published by: Jamnashankar Menariya Updated Sat, 02 Apr 2016 01:59 PM
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रुण्डेड़ा (राज.)। परम्परानुसार सभी तीज त्यौहार धुमधाम से बनाने की परम्परा आज भी कायम है। एक होली का पर्व ही ऐसा है जो काफी समय तक लोगों के जेहन में बसा रहता है। आज हम बात कर रहे है रूण्डेडा में बनाने वाली रंग तेरस आगामी 5 अप्रैल को मनाई जाएगी। कई गांवो में मची होली महोत्सव की धुम के बाद अब रुण्डेड़ा (राज.) में रंग तेरस पर मचेगी धुम।

रुण्डेड़ा गांव में हार्दिक स्वागत

रुण्डेड़ा ग्रामवासियों की तरफ से समस्त समाजबंधुओं से आग्रह है की प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष आप सहपरिवार रुण्डेड़ा गांव में अवश्य पधारे ओर रंग तेरस का भरपूर आनंद उठाये। इस अवसर सर्वश्री जमनाशंकर मेनारिया, राधेश्याम मेनारिया, किशनलाल मेनारिया, भरत मेनारिया, संजय मेनारिया, भवानीशकर मेनारिया एवं समस्त मेनारिया समाजबंधुओं का हार्दिक स्वागत करते हुए नजर आयेगे। पालीवाल वाणी समूह ने भी रंग तेरस पर ग्रामीणजनों को बधाई दी।

रंगतेरस का इतिहास

रुण्डेड़ा ग्रामवासी करीब साढे चार सौ वर्षो से गांव में यह त्यौहार महात्मा जत्ती जी के क्लदास के स्मृति में उत्साह व श्रद्धा के साथ धुमधाम से मनाया जाता है। रंग तेरस त्यौहार को लेकर गांव में अभी से व्यापाक तैयारियां जोर शोर से शुरू हो गई है।

यह रहती है कार्यक्रम की विशेषताएं

रुण्डेड़ा ग्रामवासी उत्तर दिशा में स्थित धूणी पर गांव के पंच तीन ढोल, थाली और मदक के साथ पहंुचते है। यहाँ पूजा-अर्चना कर जत्तीजी का ध्यान कर उन्हें कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। जत्तीजी को आमंत्रित करने के बाद तीनो ढोल के साथ ग्रामीणजन रवाना होते है। वे मार्ग में डेमन बावजी को भी आमंत्रित कर आशीर्वाद लेते है और यहां से गांव के बड़े मंदिर पहंुचते है। इस आयोजन में भाग लेने की रस्म पूरी कर जत्तीजी की अमानत माला, चिमटा व घोड़ी लेकर गैर नृत्य आरंभ किया जाता है। कुछ देर नृत्य के बाद ग्रामीण यहाँ से तलहटी मंदिर, निंबडयिा बावजी, जूना मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, महादेव मंदिर, जणवा समाज का मंदिर होते हुए वापस राजीखुशी बड़ा मंदिर ग्रामीणजन एवं मेनारिया समाज बंधु पहुंचते है।

सजने-संवरने का जबर्दस्त शौक

मंदिर में धोक व पूजा-अर्चना के बाद ग्रामीण अपने-अपने घरो पर पहुंचते है और यहाँ संवरने का कार्य शुरू होता है। ग्रामीण गांव में पहुँचे हुए अतिथि मेहमानो व रिश्तेदारो का आत्मीय स्वागत कर उन्हें अपने-अपने घरो पर ले जाते है और खान-पान का दौर चलता है। रात करीब 9 बजे ग्रामीणजनों का जत्था फिर चैक पर एकजुट होकर एकत्रित होते है, जहां ढोल की लय-ताल पर गैर नृत्य किया जाता है। इसमें बुजुर्गो सहित युवाओं व बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। गैर नृत्य के साथ ही तलवार व आग के गोले से हैरत अंगेज कार्यक्रम प्रस्तृत किये जाते हैं। यह कार्यक्रम सुबह भोर तक जारी रहता है। कार्यक्रम का समापन आतिशबाजी व तोप चलाकर किया जाता है। इस आयोजन में ग्रामीणवासियों के साथ मेनारिया समाज, जाट समाज व जणवा समाज सहित सभी समाजबंधुओं का तनमन धन से का सहयोग मिलता है।

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