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श्री महाप्रभु जगन्नाथजी रथयात्रा विशेष : 27 जून 2025 से

अन्य ख़बरे Published by: paliwalwani Updated Thu, 26 Jun 2025 10:58 AM
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भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा-की अग्रिम शुकानाएं 

ओडिशा.

ओडिशा के पुरी में होने वाली प्रसिद्ध रथयात्रा की परंपरा का अनुसरण करते हुए पीलीभीत शहर में भी 365 वर्षों से निकाली जा रही श्री जगन्नाथ स्वामी जी (Shri Jagannatha Swami Ji) की ऐतिहासिक एवं भव्य रथयात्रा इस वर्ष 27 जून, शुक्रवार को आयोजित होगी। नगर मजिस्ट्रेट द्वारा रथयात्रा के आयोजन की अनुमति दे दी गई है और प्रशासन द्वारा सुरक्षा के भी मुकम्मल इंतजाम किए जा रहे हैं।

मंदिर से रथ यात्रा का शुभारंभ, पूरे शहर में भ्रमण

मोहल्ला मोहितशिम खां स्थित मंदिर महाप्रभु श्री जगन्नाथ धाम से भगवान श्री जगन्नाथ जी, उनकी बहन सुभद्रा जी और भाई बलराम जी की भव्य प्रतिमाएं सुसज्जित रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण को निकलेंगी। मंदिर को विशेष रूप से सजाया जा रहा है। मंदिर के प्रबंधक एवं प्रधान सेवक पं. हरिश चंद्र शंखधार ने बताया कि रथ यात्रा दोपहर एक बजे मंदिर परिसर में पूजन एवं आरती के साथ शुरू होगी। इसके पश्चात मुख्य अतिथि रथ को हरी झंडी दिखाकर यात्रा के लिए रवाना करेंगे।

काली का अखाड़ा, झांकियां व भूत-प्रेत की टोली होंगी आकर्षण

आचार्य विष्णु शंखधार ने बताया कि रथयात्रा में विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक मंडलियां आकर्षक प्रस्तुतियां देंगी। इस बार भी काली का अखाड़ा विशेष आकर्षण रहेगा। भूत-प्रेतों की पारंपरिक टोलियां भी अपने अभिनय व करतबों से श्रद्धालुओं को रोमांचित करेंगी। मार्ग में विभिन्न स्थानों पर श्रद्धालुओं के लिए शीतल जल एवं प्रसाद वितरण की व्यवस्था रहेगी।

  • 28 जून को भव्य भंडारा, जनसहभागिता की अपील

रथयात्रा के अगले दिन 28 जून, शनिवार को श्री अग्रवाल सभा भवन प्रांगण संख्या-1 में जगन्नाथ रसोई (भंडारा) का आयोजन किया जाएगा, जो पूर्वाह्न 12 बजे से आरंभ होगा। आयोजकों ने समस्त श्रद्धालुओं से आह्वान किया है कि वे रथयात्रा में शामिल होकर पुण्य लाभ प्राप्त करें तथा भंडारे में सहभागिता कर आयोजन को सफल बनाएं।

  • प्रशासन ने कसी कमर, चाक-चौबंद रहेगी सुरक्षा

जिलाधिकारी, नगर मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक व कोतवाली पुलिस की ओर से रथयात्रा की सुरक्षा व्यवस्था के व्यापक प्रबंध किए जा रहे हैं। प्रशासन द्वारा रूट प्लान तैयार कर लिया गया है और रथयात्रा के शांतिपूर्वक संचालन हेतु पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती सुनिश्चित की गई है।

  • मीडिया कर्मियों को आमंत्रण : प्रधान सेवक पं. हरिश चंद्र शंखधार ने समस्त मीडिया प्रतिनिधियों एवं फोटो जर्नलिस्टों से अनुरोध किया है कि वे 27 जून 2025 को रथयात्रा तथा 28 जून को आयोजित भंडारे में अपनी गरिमामयी उपस्थिति देकर आयोजन की शोभा बढ़ाएं।

हर साल की तरह इस बार भी आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा की शुरूआत होने वाली है। पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा इस बार 27 जुलाई, शुक्रवार से शुरू होगी। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है। तीनों अलग-अलग रथ में सवार होकर यात्रा पर निकलते हैं। रथ यात्रा का समापन आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर होता है। आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा की खास बातें और इस धार्मिक महत्व।

रथ और भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी खास बातें...

भगवान जगन्नाथ के रथ में एक भी कील का प्रयोग नहीं होता। यह रथ पूरी तरह से लकड़ी से बनाया जाता है, यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाया जाता है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होती है।

हर साल भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से ही बनाई जाती है। इन रथों में रंगों की भी विशेष ध्यान दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होने के कारण नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता जो सांवले रंग की हो। वहीं उनके भाई-बहन का रंग गोरा होने के कारण उनकी मूर्तियों को हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।

पुरी के भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिये होते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग का होता है और ये रथ अन्य दो रथों से थोड़ा बड़ा भी होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे चलता है पहले बलभद्र फिर सुभद्रा का रथ होता है।

  • भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहते है.
  • बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज. 
  • सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन रथ होता है.

भगवान को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन जिस कुंए के पानी से स्नान कराया जाता है वह पूरे साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है। भगवान जगन्नाथ को हमेशा स्नान में 108 घड़ों में पानी से स्नान कराया जाता है।

हर साल आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को नए बनाए हुए रथ में यात्रा में भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और सुभद्रा जी नगर का भ्रमण करते हुए जगन्नाथ मंदिर से जनकपुर के गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। यहां पहुंचकर विधि-विधान से तीनों मूर्तियों को उतारा जाता है। फिर मौसी के घर स्थापित कर दिया जाता है। 

भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर पर सात दिनों तक रहते हैं। फिर आठवें दिन आषाढ़ शुक्ल दशमी पर रथों की वापसी होती है। इसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।

सोने की झाड़ू से रास्ते की होती है साफ-सफाई

तीनों रथ के तैयार होने के बाद इसकी पूजा के लिए पुरी के गजपति राजा की पालकी आती है। इस पूजा अनुष्ठान को 'छर पहनरा'  नाम से जाना जाता है। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और यात्रा वाले रास्ते को साफ किया जाता हैं।

मौसी के घर जाते हैं विश्राम करने जाते हैं भगवान जगन्नाथ 

आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ रथ को लोग खींचते हैं। जिसे रथ खींचने का सौभाग्य मिल जाता है, वह महाभाग्यशाली माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा शुरू होकर 3 कि.मी. दूर गुंडीचा मंदिर पहुँचती है। इस स्थान को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहीं पर विश्वकर्मा ने इन तीनों प्रतिमाओं का निर्माण किया था,अतः यह स्थान जगन्नाथजी की जन्मस्थली भी है। यहां पर तीनों लोग सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। फिर आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुनः मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वापसी की यह यात्रा बहुड़ा यात्रा कहलाती है। जगन्नाथ मंदिर पहुंचने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देव-विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।

रथ खींचने का मिलता है, सौ यज्ञ और मोक्ष का पुण्य फल

भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना गया हैं। स्कंद पुराण के अनुसार जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर जगत के स्वामी जगन्नाथजी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है, जबकि जो व्यक्ति जगन्नाथ को प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाता है वो सीधे भगवान विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होता है और जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करता है उसे मोक्ष मिलता है

जगन्नाथ मंदिर का ‘महाप्रसाद’

सभी हिंदू मंदिरों में भगवान की पूजा-आराधना और अनुष्ठान करने बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है। लेकिन जगन्नाथ मंदिर ही एक अकेला ऐसा मंदिर है जहां का प्रसाद ‘महाप्रसाद’ कहलाता है। यह महा प्रसाद जगन्नाथ मंदिर में आज भी पुराने तरीके से मंदिर की रसोई में बनता है। ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। महाप्रसाद को मिट्टी के 7 बर्तनों में रखकर पकाया जाता है। इन 7 बर्तनों को एक के ऊपर रखकर पकाया जाता है। सबसे खास बात है कि सबसे ऊपर रखा हुआ मिट्टी के बर्तन में प्रसाद सबसे पहले पकता है फिर उसके नीचे की तरफ रखा हुआ बर्तन में प्रसाद एक के बाद एक पकता है। महाप्रसाद को पकाने में सिर्फ लकड़ी और मिट्टी के बर्तन का ही प्रयोग किया जाता है। मंदिर में बनने वाला महाप्रसाद कभी भी लोगों को कम नहीं पड़ता है।

जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी रोचक कहानियां

  • पुरी के जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा झंडा बहुत ही अनोखा है क्योंकि यहां पर लगा ध्यज हमेशा हवा के विरीत दिशा में लहराता रहता है।
  • पुरी के जगन्नाथ मंदिर में दोपहर के पहर में किसी भी समय मंदिर के शिखर की परछाई नहीं बनती है।
  • मंदिर परिसर में बनी रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई है जहां पर कुल मिलाकर 752 चूल्हे हैं,जिनमें महाप्रसाद बनाया जाता है।  इस जगह पर जलने वाली अग्नि कभी नहीं बुझती है।
  • जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर कभी ना तो कोई पक्षी बैठता है और न ही कोई विमान मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता है।
  • जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा हुआ सुदर्शन चक्र को किसी भी कोने से देखने पर वह हमेशा एक जैसा ही लगा दिखेगा।

???? जय श्री जगन्नाथ महाप्रभु की

!! श्री जगन्नाथ जी का भात????जगत पसारे हाथ !!

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