अफगानिस्तान में तालिबान ने कब्जा कर लिया है। इसका सीधा असर भारत और अफगानिस्तान के व्यापार पर पड़ेगा। इसका मुख्य कारण है कि भारत सरकार तालिबान को मान्यता नहीं देती है। जबकि भारत के अफगानिस्तान सरकार के साथ अच्छे संबंध थे। भारत दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान के प्रोडक्ट्स का सबसे बड़ा बाजार है। भारत ने अफगानिस्तान में करीब 3 अरब डॉलर (22,251 करोड़ रुपए) का निवेश किया है।
भारत और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय कारोबार होता है। फाइनेंशियल ईयर 2020-21 में दोनों देशों के बीच 1.4 अरब डॉलर, यानी 10,387 करोड़ रुपए का व्यापार हुआ है। इसी तरह 2019-20 में दोनों देशों के बीच 1.5 अरब डॉलर (11,131 करोड़ रुपए) का व्यापार हुआ था। 2020-21 में भारत ने अफगानिस्तान को करीब 6,129 करोड़ रुपए के प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट किए थे, जबकि भारत ने 37,83 करोड़ रुपए के प्रोडक्ट्स इंपोर्ट किए गए थे। भारत, अफगानिस्तान से किशमिश, अखरोट, बादाम, अंजीर, पिस्ता, सूखे खूबानी जैसे मेवे इंपोर्ट करता है। इसके अलावा अनार, सेब, चेरी, खरबूजा, तरबूज, हींग, जीरा और केसर भी इंपोर्ट करता है।
अफगानिस्तान के साथ भारत का व्यापार एक तरफा था। भारत ने अफगानिस्तान में डेवलपमेंट किया, लेकिन अब अफगानिस्तान चीन की एक्सिस में चला गया है। जिसके कारण अब अफगानिस्तान के साथ व्यापार की उम्मीद कम ही है। अफगानिस्तान के साथ व्यापार लगभग खत्म है। भारत कैलिफोर्निया से भी ड्राई फ्रूट्स का इंपोर्ट करता है, लेकिन इस साल वहां भी कुछ समस्याएं हैं जिसके चलते ड्राई फ्रूट्स की कीमतें और बढ़ेंगी।
भारत ने पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान में करीब 22 हजार 251 करोड़ रुपए का निवेश किया है। इसके पीछे भारत की रणनीति ये थी कि ईरान में चाबहार पोर्ट को सड़क मार्ग के जरिए अफगानिस्तान से जोड़ा जाएगा। ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के देलारम तक की सड़क परियोजना का काम भी जारी है। इससे अफगानिस्तान के रास्ते मध्य यूरोप तक भारत की पहुंच आसान होगी।
इस रूट से भारत मध्य यूरोप के साथ कारोबार भी कर पाएगा, लेकिन अब इस योजना पर पानी फिरता नजर आ रहा है। पिछले दो दशक के दौरान भारत ने अफगानिस्तान के विकास के लिए काफी काम किया है। भारत ने यहां पर डेलारम और जरांज सलमा बांध के बीच करीब 218 किमी लंबी सड़क का निर्माण करवाया है। इसके अलावा अफगानिस्तान की संसद का निर्माण भी भारत ने करवाया है।