टोक्यो ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली इंडियन हॉकी टीम के प्लेयर विवेक सागर की गांव से ओलिंपिक तक के सफर की कहानी दिलचस्प है। विवेक के पिता रोहित प्रसाद सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। वे चाहते थे कि बेटा बड़ा होकर इंजीनियर बने, लेकिन किस्मत कुछ और ही चाहती थी। महज 10 साल की उम्र में विवेक के हाथों में हॉकी की स्टिक आ गई। फिर क्या था, अपने जिद और जुनून से हर मुकाम हासिल कर लिया।
विवेक MP के होशंगाबाद जिले के इटारसी के पास चांदौन गांव के रहने वाले हैं। कभी उनके पास हॉक स्टिक खरीदने के पैसे नहीं थे। आज CM से 1 करोड़ रुपए का चेक मिला। साथ ही DSP की नौकरी भी।
बचपन में विवेक के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए पिता को विवेक का हॉकी खेलना पसंद नहीं था। वे चाहते थे कि विवेक पढ़ाई पर ध्यान लगाए और पढ़-लिखकर इंजीनियर बने, लेकिन विवेक को हॉकी खेलने का जुनून चढ़ चुका था। वह चांदौन गांव से इटारसी आते और ग्राउंड पर हॉकी खेलना सीखने लगे। कई बार तो दोस्तों से स्टिक लेकर प्रैक्टिस करते। उनकी इस लगन को देखते हुए मां कमला देवी, बड़े भाई विद्या सागर, बहन पूनम और पूजा सपोर्ट करने लगे। 13 साल की उम्र में विवेक ने हॉकी एकेडमी जॉइन कर ली थी। हालांकि, बाद में पिता ने भी विवेक का खूब साथ दिया।
अकोला टूर्नामेंट में हॉकी खेलते समय विवेक पर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार की नजर पड़ी थी। उन्होंने विवेक के खेल को देखकर एमपी एकेडमी जॉइन करने का ऑफर दिया था। इसके बाद अकेडमी में आकर विवेक का खेल और निखरने लगा
विवेक सागर वर्ष 2018 में फोर नेशंस टूर्नामेंट, कॉमनवेल्थ गेम्स, चैम्पियंस ट्राफी, यूथ ओलंपिक, न्यूजीलैंड टेस्ट सीरीज, एशियन गेम्स और साल 2019 में अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट, ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज और फाइनल सीरीज, भुवनेश्वर जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारतीय टीम में शामिल रहे।एशियाड 2018 में भारत को कांस्य पदक दिलाने वाली भारतीय टीम में शामिल मिडफिल्डर हॉकी खिलाड़ी विवेक सागर 62 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं। विवेक सागर को साल 2018 में मध्यप्रदेश शासन ने एकलव्य अवार्ड से सम्मानित भी किया है।