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मामा ' का तो बस....' टंट्या मामा ' : सरकार मिशन 2023 पर, फोकस वनवासी समाज पर : नितिनमोहन शर्मा

इंदौर Published by: नितिनमोहन शर्मा Updated Fri, 02 Dec 2022 01:30 PM
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 सालभर से चल रहा आदिवासी समाज का शोर, सालभर और चलेगा 

 रातापानी बैठक के बाद ही ख़ुलासा फर्स्ट ने कर दिया था ख़ुलासा- सरकार की चिंता में अब आदिवासी समाज 

 4 दिसंबर को इंदौर में जुटाया जा रहा आदिवासी समाज, सरकारी योजनाओं का होगा बखान 

 1 लाख वनवासी बंधुओ के आने का दावा, नेहरू स्टेडियम से सरकार का शंखनाद 

 पूरा प्रशासनिक अमला जुटा आयोजन में, शहर से लेकर जंगल तक निकल रही वनवासी गौरव यात्रा 

प्रदेश के 'मामा' के अब सब कुछ टंट्या मामा हो चुके है। टंट्या मामा ओर उनका समाज अब सरकार के नए तारणहार बनकर उभर रहे है। जल जंगल जमीन पर वनवासी समाज का पहला और आखरी अधिकार का नारा तेजी से बुलंद हो रहा है। बिरसा मुंडा का गौरव जोरशोर से स्थापित किया जा रहा है। टंट्या मामा की जन्मस्थली पर कार्यक्रम हों रहे हैं। प्रतिमा लगाई जा रही है। चोराहै का नामकरण किया जा रहा है। गांव देहात जंगल से लेकर शहरों में गौरव यात्राएं निकाली जा रही है। शहरों में पड़ने वाले आदिवासी समाज के युवाओं में पैठ बढ़ाई जा रही है। इंदौर में एक लाख वनवासी बन्धु जुटाए जा रहे हैं। सरकार और प्रशासन मैदान में उतरा हुआ है। मिशन 2023 का आगाज जो हो चुका है...!!! 

 नितिनमोहन शर्मा

अपनी कार्यशैली से न केवल प्रदेश बल्कि जगत में जगत मामा बने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए अब सब कुछ जनजातीय गौरव सूर्यवीर टंट्या मामा के इर्द गिर्द सिमट गया है। टंट्या मामा ओर उनका समाज ही अब ' सरकार ' के लिए मिशन 2023 का तारणहार बन गया है। नतीजतन पूरी सरकार वनवासी समाज की घेराबंदी में जुट गई है। प्रतीक के रूप में टंट्या मामा को आगे रखकर सारी रणनीतिक जमावट हो रही है। वन ओर जंगल ही नही, इंदौर जैसा शहरी क्षेत्र भी इससे अछूता नही। यहाँ एक चोराहा तो टंट्या मामा के नाम कर ही दिया गया है और अब उसी चोराहे पर टंट्या मामा की आदमकद प्रतिमा ने आकार ले लिया है जिसका लोकार्पण 4 दिसम्बर को स्वयम मामा यानी शिवराज सिंह करेंगे।

प्रदेशभर का वनवासी समाज भी इंदौर में जुटाया जा रहा है। दावा तो एक लाख लोगों का किया जा रहा है। नेहरू स्टेडियम में बड़ा कार्यक्रम होगा। इस आयोजन में आदिवासी समाज को बताया जाएगा कि भाजपा सरकार ने इस वर्ग के लिए क्या क्या अब तक किया है और भविष्य में क्या करने जा रही है। अफसरों को तो ये तक ताकीद दी गई है कि सरकार की योजनाओं से लाभान्वित वनवासी परिवारों को विशेष रूप से इस आयोजन तक लेकर आये ताकि वे सबके बीच अपने समाज को बता सके कि वे किन योजनाओं से लाभान्वित हुए है। कमिश्नर से लेकर कलेक्टर ओर गांव के कोटवार से लेकर पटवारी तक इस आयोजन के लिए मैदान में उतार दिए गए है। 

मिशन 2023 को हर हाल में फ़तह करने निकली भाजपा के लिए इस बार आदिवासी बेल्ट सबसे अहम हो चला है। 2018 में इसी बेल्ट में पार्टी ने बड़ा नुकसान उठाया था। इस बार समय से पहले इसी वर्ग में सब चाकचौबंद करने की शुरुआत हुई है।

 आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष का दबाव बड़ा 

रातापानी के जंगल मे राष्ट्रीय संगठन मंत्री की अगुवाई में हुई अहम बैठक में इस रणनीति को अंजाम दिया गया  था। तब ख़ुलासा फर्स्ट से ही ये खुलासा किया था कि अब सरकार का फोकस आदिवासी सीटों पर होगा। उस वक्त ये भी ख़ुलासा किया था की पार्टी चुनावी साल में प्रदेश संग़ठन की कमाम किसी आदिवासी समाज के नेता को दे सकती है। उस बैठक के बाद पार्टी की निरंतर चल रही एक्सरसाइज से अब ये संभावना बलवती होती जा रही है कि गुजरात चुनाव के बाद प्रदेश संगठन में बड़ा फेरबदल हो सकता है और आदिवासी नेता केंद्र में आ सकते है। भाजपा एमपी में आज तक इस वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष नही बना पाई है। यहां तक कि युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष पद भी आज तक आदिवासी समाज को नही दिया गया है। जयस की उभरी चुनोती से पार पाने के लिए सरकार में इस पर गम्भीरता से विचार शुरू कर दिया है।  

 सामान नागरिक संहिता और आदिवासी 

पैसा एक्ट से लेकर कल बड़वानी में सीएम की बहू विवाह प्रथा के खिलाफ प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने का एलान भी इसी रणनीति का हिस्सा है। आदिवासी समाज मे भी बहु विवाह प्रथा का चलन बताया जाता है। सीएम ने मंच से एक शादी की बात की। बीते एक साल से सरकार के केंद्र में ये समाज है। बीते साल पातालपानी पर फोकस कर सरकार ने टंट्या मामा को आगे कर भील समुदाय में पैठ बनाने की रणनीतिक कवायद शुरू की थी जो सालभर बाद टंट्या मामा की प्रतिमा अनावरण तक आ पहुंची है। पैसा एक्ट के जरिये सीएम की आदिवासी समाज की चिंता करते हुए चेतावनी भरे वक्तव्यों की झड़ी लगी हुई है। ये ही नही, जनजातीय गौरव यात्राओं से लेकर पैसा एक्ट का प्रचार ओर सीएम का टंट्या मामा की खंडवा के पास स्थित जन्मस्थली पर जाकर कार्यक्रम करना इसी रणनीति का हिस्सा है।

 आरएसएस के बिरसा मुंडा, सरकार के टंट्या मामा 

आदिवासी समाज के बीच वनवासी अंचलों में आरएसएस की साधना तो बरसो बरस से चल रही थी। 2001 में झाबुआ में हुआ हिन्दू संगम कार्यक्रम, संघ के इस वर्ग के बीच कार्य का विराट प्रकटीकरण था। वनवासी कल्याण आश्रमो के जरिये आरएसएस का काम बस्ती फालियो से आगे तक बढ़ गया है जिसे सेवा भारती ने ओर बल दिया है। आरएसएस ने वनवासी समुदाय के लिए बिरसा मुंडा को प्रतीक बनाकर हाल ही में इंदौर में बड़ा आयोजन किया। लालबाग में हुए इस आयोजन में उमड़ी भीड़ ने सबको चौका दिया जिसमें बड़ी संख्या शहरी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समाज की थी। खासकर उन नोजवानो की जो शहर में पड़ लिख रहे है या कामकाज कर रहे है। एक तरफ सरकार, दूसरी तरफ आरएसएस। दोनो का फ़ोकस इसी वर्ग पर एक साथ चल रहा है जो ' 'जगत मामा ' का काम आसान करता जा रहा है।

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