इंदौर :
दरअसल मिल की जमीन बेचकर मजदूरों की बकाया राशि का भुगतान होना है, लेकिन जमीन बिक नहीं पा रही थी। अब नगर निगम ने हाउसिंग बोर्ड के माध्यम से इस जमीन पर हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्ट लाने की पहल की है। हाउसिंग बोर्ड मिल के मजदूरों के बकाया 174 करोड़ रुपये देने को भी तैयार है, लेकिन मजदूरों की मांग है कि दिसंबर 91 में मिल बंद होने से लेकर जुलाई 2001 में मिल का कब्जा परिसमापक को सौंपे जाने की अवधि का ब्याज भी उन्हें दिलवाया जाए। वे मिल परिसमापक को सौंपे जाने के बाद से अभी तक का ब्याज छोडऩे को तैयार हैं। इनकी मांग है कि न्यायालय ने जो मुआवजा राशि उनके लिए तय की है, उस पर मिल का कब्जा परिसमापक को सौंपे जाने तक का ब्याज दिलवाया जाए। यह रकम लगभग 88 करोड़ रुपये होती है।
मिल मजदूर कर्मचारी-अधिकारी समिति के अध्यक्ष नरेंद्र श्रीवंश का कहना है कि 12 दिसंबर 1991 को बंद हुई मिल में 6000 श्रमिक, कर्मचारी कार्य करते थे। मिल बंदी के बाद बेरोजगार हुए श्रमिकों एवं इनके परिवार के 50 हजार सदस्यों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। अभी तक 2200 से अधिक श्रमिक, कर्मचारियों का निधन हो गया तथा 69 श्रमिकों ने बेरोजगारी-महंगाई से तंग आकर आत्महत्या कर ली। कई बुजुर्ग मानसिक बीमारी से भी पीडि़़त हो गए, वहीं कुछ श्रमिक भीख मांगकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं।