इंदौर. नगर निगम के विनियमित कर्मचारी लंबे समय से अपनी 21 माह की एरियर राशि मिलने का इंतजार कर रहे हैं. संभाग आयुक्त एवं निगम प्रशासक डॉ पवन कुमार शर्मा द्वारा इस बारे में संकल्प पारित किए जाने के बाद उन्हें भरोसा था कि अब उन्हें इस माह से एरियर राशि की किस्त मिलने लगेगी. लेकिन ऑडिट विभाग ने उनकी इस मंशा पर पानी फेर दिया है. बताया जाता है कि प्रदेश के नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा 1 मई 2018 से 16 मई 2007 तक के मस्टर कर्मियों को विनियमित किया गया है. लेकिन नगरीय प्रशासन विभाग के आदेश के अनुसार इन्हें 1 सितंबर 2016 से विनियमित माना गया है. आदेश के अनुसार इन्हें 21 माह के वेतन के अंतर के बराबर एरियर दिए जाने की भी पात्रता हैं. नगरीय प्रशासन विभाग के पत्र के अनुसार इन्हें हर माह ₹2000 की राशि एरियर के रूप में दी जानी थी. लंबे समय तक एरियर की राशि नहीं मिलने पर विनियमित कर्मचारियों ने श्रम न्यायालय की शरण ली और श्रम न्यायालय ने उक्त विनियमित कर्मचारियों को अभिलंब एरियर राशि को किस्त के रूप में देने के आदेश दिए थे. उक्त आदेश के अनुक्रम में संभाग आयुक्त और नगर निगम प्रशासक डॉक्टर पवन कुमार शर्मा द्वारा संकल्प भी पारित कर दिया गया था. निगमायुक्त श्रीमती प्रतिभा पाल द्वारा जारी आदेश के तहत सुपर स्टाफ के विनियमित कर्मचारियों को एक क़िस्त का भुगतान भी किया जा चुका है. इस माह से निगम के सफाई कर्मियों सहित सभी विनियमित कर्मचारियों को एरियर राशि की किस्त का भुगतान किया जाना था. लेकिन इसी बीच ऑडिट विभाग के सहायक संचालक अनिल गर्ग ने उक्त भुगतान पर आपत्ति लेते हुए इस पर रोक लगा दी है. जबकि पूर्व संचालक उप संचालक अरुण शुक्ला ने विनियमित कर्मचारियों को उक्त राशि दिए जाने संबंधित अभिमत जारी किया था. इसे लेकर नगर निगम के मास्टर कर्मियों और सफाई यूनियन के नेताओं में काफी नाराजगी हैं. सफाई यूनियन के नेताओं महेश गौहर, राजेश करोसिया, हरीश नागर, बाबूलाल सिरसिया, नागेश गौहर ने कहा कि इस मामले में वे जल्द ही निगम प्रशासक से मिलेंगे. (मेट्रो टुडे डॉट एमपी)
बता दे : श्रम न्यायालय की शरण ली और श्रम न्यायालय ने उक्त विनियमित कर्मचारियों को अभिलंब एरियर राशि को किस्त के रूप में देने के आदेश जारी किए थे. उसके बाद भी जानबूझकर आपत्ति लेकर एरियर राशि के भुगतान पर रोक लगा दी. निगम कर्मचारियों को विनियमित कर्मचारियों को स्थाई लाभ के साथ एरियर राशि का भुगतान करना था. लेकिन एक दुसरे पर बहाने बाजी करते हुए शासन की मंशानुसार उन्हें स्थाई का लाभ नहीं दिया जा रहा है, जबकि इसकी पात्रता हासिल कर चुके हैं, वही शासन भी कई बार निगम को पत्र लिखकर निगम स्तर पर ही स्थाई करना हैं. लेकिन हर बार बात गोलमाल हो जाती हैं. निगम में जब तक मस्टरकर्मी का संगठन काम रहा था तब तक स्थाईकरण की गूंज सुनाई दे जाती थी. जब से विनियमित कर्मचारी हुए तब से संगठन अनचाहे मुढ़ से यदाकदा मांग करता रहता हैं, लेकिन अधिकांश पदाधिकारियों से बात की जाए तो उनका कहना है कि कोरोना काल में हमारी कौन सुनेगा. यहां बाद काफी हद तक सही भी है, किन्तु कर्मचारियों का हक कौन मार रहा हैं. जो बरसों से नियमिति होने की राह आज भी देख रहे हैं, जबकि इंदौर नगर पालिक निगम का कई महत्वपूर्ण कार्य इनके हाथों से चल रहा हैं. फिर प्रशासक बेफ्रिकर होकर ना जाने किस का इंतजार कर रहा हैं. ऑडिट विभाग के सहायक संचालक अनिल गर्ग पर भी आरोप लगाते हुए कर्मचारियों ने कहा विनियमित हुए कर्मचिरयों पर भी रोक लगा दिजिए आपकी आपत्ति से शासन का भला होता है तो कर्मचारी खुशी महसूस करेगें. आपको किसने रोका...जब संभाग आयुक्त और निगम प्रशासक ने स्वीकृति प्रदान कर दी है तो ऑडिट विभाग हमारी जायज मांगों को क्यों रोक रहा हैं, जहां ऑडिट विभाग को आपत्ति लेना होती है वहां आंख मंद करके बैठ जाते हो और जहां छोटे कर्मचारियों को मंहगाई दौर में घर चलना महंगा साबित हो रहा हैं. उन्हें 21 माह बाद अपना हक मिला तो उससे भी छिनने की कोशिश की जा रही हैं. इस रवैया की कर्मचारी संगठनों से सख्त आपत्ति लेते कहा कि अगर निगम के सफाई कर्मियों सहित सभी विनियमित कर्मचारियों को एरियर राशि की किस्त का भुगतान नहीं किया गया तो सख्त आंदोलन करना पड़ा तो वो भी करने से पीछे नहीं रहेंगे. पहले हमारी बात संभाग आयुक्त एवं निगम प्रशासक और निगम आयुक्त के समक्ष अपनी बात रखने जा रहे हैं.