सूत्रों की माने तो इस टोली में आने को वरिष्ठ भी अब आतुर हो चले है। उन्हें डर है कि कही इससे भी हाथ न धोना पड़ जाए। हालांकि अनमने मन से ही वे इस मसले पर सामने आए हैं। अब ये "नंदबाबा" पर है कि वे अपने "मोहन" को कैसे सखा देते है? "नंदभवन" यानी दिल्ली दरबार का मिजाज इस बार पूरी तरह बदला हुआ हैं। लिहाजा इस बार टोली में शामिल होने की वैसी मारामारी नही मची हुई है, जैसी आमतौर पर देखी जाती थी।
"नंदभवन" में चिंतन मंथन पूर्ण हो चुका हैं। इस मंथन में प्रदेश से तमाम दिग्गज को बुलाया गया था। सिवाय पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चोहान को छोड़कर। जबकि प्रदेश के नए सीएम, दोनो डिप्टी सीएम, प्रदेश अध्यक्ष-महामंत्री, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल आदि सब इस अहम रणनीतिक बैठक में आलाकमान के बुलावे पर शामिल हुए। यहां तक की हालिया चुनाव हारे फग्गनसिंह कुलस्ते तक इस बैठक में न्यौते गए। बस "मामा" ही "गोकुल" यानी भोपाल में रह गए। शेष प्रदेश की तमाम लीडरशिप नंदगांव यानी दिल्ली में थी।
मामा की गैरमौजूदगी से संकेत मिलते है कि "मोहन" के "सखाओ" की टोली में " शिव सम्प्रदाय" से जुड़े "गोप-ग्वाल" कम ही नजर आएंगे। आठ- दस घन्टे और दो दौर की बैठक के बाद तैयारी सब पूरी हो गई है। बस अब कभी भी "मोहन" के "गोप-ग्वाल" सामने आ जाएंगे।
सबसे ज्यादा जिज्ञासा भाजपा को सत्ता तक पहुचाने में अहम भूमिका निभाने वाले मालवा निमाड़ अंचल को लेकर बनी हुई हैं। हालांकि पार्टी में इस अंचल से सीएम व डिप्टी सीएम देकर अपना काम पूरा कर लिया है। बावजूद इसके पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि " नंदभवन" इस क्षेत्र में उनकी जीत को तवज्जों देगा। खासकर ऐसे मौके पर जब कांग्रेस ने इसी अंचल से प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तैनात कर दिया है।
सबसे ज्यादा जिज्ञासा इंदौर को लेकर है। भाजपा ने यहां अपने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की अगुवाई में जिले की सभी 9 मे से 9 सीट पर जीत का भगवा लहराया है। समूचे प्रदेश ही नही, राजस्थान-छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी जीत भी इंदौर के खाते में ही दर्ज हुई हैं। सीएम रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से भी बड़ी।
ये जीत भी राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय के सखा की है। इस बड़ी जीत के नायक विधायक रमेश मेंदोला रहे है जो 1 लाख 7 हजार से ज्यादा मतों से विजयी हुए। ये उनकी चौथी जीत है और हर जीत बड़ी थी। हर जीत के बाद मेंदोला को मंत्री बनाने की बाते परवान चढ़ती है लेकिन अंजाम तक नही पहुँचती। अब ये तो निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जाने की वे इंदौर ओर इन्दोर के इस नेता के साथ ऐसा क्यों करते थे? वे सुदर्शन गुप्ता को तो मंत्री बनाने को तैयार हो जाते थे लेकिन रमेश मेंदोला के मामले में हाथ पीछे खींच लेते थे।
अब निजाम बदला है। मामा राज बिदा हो गया है। मोहन राज आ गया। लिहाजा शहर की उम्मीद भी बढ़ गई की कम से कम अब तो इंदौर की सुनवाई होगी और "दादा दयालु" मंत्री बनेंगे। मेंदोला को मालवा की पसन्द बताया जा रहा है। वही निमाड़ से अर्चना चिटनीस का नाम अव्वल है। घर बैठे "दौड़भाग" में वयोवृद्ध विक्रम वर्मा भी लगे है। पत्नी नीना वर्मा के लिए। अब देखना है कि उनकी चल पाती है या ठाकरेजी के समय का पुराना प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव आड़े आ जायेगा। हमेशा की तरह उषा ठाकुर भी बेहद उम्मीद से है। सिंधिया के सहारे ये ही उम्मीद तुलसी सिलावट ने भी पाल रखी हैं। लेकिन ये दोनों नेता "अखण्ड मंत्री" कोटे में आ रहें है जिसे इस बार दिल्ली दरबार पसन्द नही कर रहा। वह नए नाम पर काम कर रहा है।
इंदौर से मंत्री के लिए नाम की कमी नही है। महेंद्र हार्डिया से लेकर मनोज पटेल और मालिनी गौड़ से लेकर मधु वर्मा तक इस कतार में है। इसमे उषा ठाकुर भी शामिल है। लेकिन इन सबका नाता "शिव सम्प्रदाय" से होने के कारण इस बार दावेदारी वैसी तगड़ी नजर नही आई जैसी आमतौर पर होती आई हैं। चाहे वो पूर्ण मंत्रिमंडल का मामला हो या मंत्रिमंडल का विस्तार, ये ही नाम इन्दोर से भोपाल तक दौड़ते रहते है। इस बार इन नामो का कोई "नामलेवा"अब तक नजर नही आया। जबकि इस बार इनमे से अधिकांश नेता स्वयम को मंत्री मान ही चुके थे। सबको उम्मीद थी "अपने भाईसाहब" की ताजपोशी की। लेकिन तमाम नेताओ की आशाओं पर तुषारापात हो गया। हालांकि सूत्रों ने इनमे से एक नाम के लिए नरेन्द्र सिंह तोमर की सिफारिशों का ख़ुलासा किया है। अब तोमर स्वयम के संकट से पार पा ले तो बात बने। तब तक इंतजार करें "मोहन" की "गोप-ग्वाल" टोली का।