◾उस शहर को आप ने चयनित किया ताकि पालीवाल समाज बंधु भी लक्ष्मीनारायण भगवान के दर्शन कर सकें और इसी दर्शन की लालसा में पालीवाल बंधु, अपने एक भाई से दूसरे पालीवाल भाई के संपर्क में भी आता रहेगा। और परस्पर एक दूसरे के प्रति स्नेह भी बना रहेगा। पर अथक प्रयासों के बाद भी आप की ये मंशा पुर्ण नही हो सकी, खैर ठीक है। जैसी प्रभु की इच्छा, वैसी हमारी रज़ा, इसी के साथ साथ आपके अथक प्रयासों में एक कड़ी यह भी है कि घने जंगलों के बीच कुछ साथियों को लेकर देवपुरी कालोनी, कनाडिया रोड़ इंदौर में जहाँ पर पालीवाल ब्राह्मण समाज की एक धर्मशाला भी है। जो की देवपुरी कॉलोनी पालीवाल धर्मशाला के नाम से पालीवाल ब्राह्मण समाज बंधुओं के बीच में विख्यात है।
◾यहाँ पर भी पालीवाल समाज बंधुओं ने मिलकर हम सबके आराध्य देव श्री चारभुजा नाथ जी की प्रतिमा को प्राण-प्रतिष्ठा करके धर्मशाला में स्थित मंदिर परिसर में स्थापित किया था। लेकिन दुर्भाग्य देखिए...! कि कुछ अधार्मिक, राजनितिक, एवं समाजहित विरोधियों ने श्री चारभुजा नाथ जी की मूर्ति को उखाड़ कर उस देव स्थान से विसंगत कर अपने साथ ले गये और समीप रखी आराध्य देव श्री लक्ष्मीनारायण भगवान की मूर्ति को, कुछ वरिष्ठ समाजसेवियों ने तत्तकालीन श्री लक्ष्मीनारायण पुरोहित जी के कर कमलो में (हाथों में) थमाते हुए उस मुर्ति को अपने घर पर स्थापित करने की सलाह दे डाली, एवं वहाँ पर जो भी धार्मिक कार्य संपन्न हुए थे, उस पर कुछ वरिष्ठ समाजसेवियों जनों ने पानी फेर दिया। जिससे में से अब शायद एक दो ही बचे बाकी शेष स्वर्गलोक में सफर कर रहे है। मुर्ति स्थापना करने पर कुछ समाज बंधुओ को जिन्होंने वहाँ पर श्री चारभुजानाथ जी, श्री लक्ष्मीनारायण जी और कुछ अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति देवपुरी कॉलोनी, कनाड़िया रोड़ पर पालीवाल समाज की धर्मशाला में मुर्ति स्थापित करने की सजा उन्हें यह मिली की बिना अपराध किए काले बोर्ड पर समाज से बाहर करने का फरमान लिख दिया गया। जो कताई उचित नहीं था...जैसे-जैसे समाचार मिलते गए...वैसे-वैसे मीठाधीश के प्रति आक्रोश फैलता गया...अत : मीठाधीश को पस्त होना पड़ा..और परिणाम स्वरूप आज भी वहाँ पर प्रभु श्री चारभुजा नाथ जी की प्रतिमा को स्थापित नही करने दिया। या फिर प्रभु मंदिर को भी खंडित रखकर लोगों को भी खंडित ही रखना चाहते है। आज भी चारभुजानाथ जी की प्रतिमा निर्मित है। जिसे पूर्व की कुछ कार्यकारिणी एवं पदाधिकारी सदस्यगण अपने साथ लेकर चले गये। जो की आज भी अपनी घट स्थापना की प्रतिक्षा कर रही है।
◾में अपनी इस लेखनी के माध्यम से यही विनति आराध्य देव श्री चारभुजा नाथ जी से करना चाहता हुं कि आराध्य देव इन, अधार्मिक और समाज हित विरोधियों को सदबुद्धी प्रदान करके इनके मन मंदिर को उज्वल करते हुए प्रतिभा कहाँ है...उसकी भी तलाश की जाना चाहिए।
अपने ज्ञान का प्रकाश इन के मस्तिष्क में करें ताकि ये लोग अपने निजी मतभेदों को भुलाकर समाज हित और भक्तों, की भक्ति-भावनाओं का सम्मान, एवं जो दिवंगत समाज बंधु हमारे बीच नहीं है। जिन्होंने मुर्ति स्थापित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, उन की आत्म शांति के लिये, धार्मिक भावनाओं का सम्मान, करते हुए समाजहित में एक अच्छा संदेश प्रदान करना चाहिए।
◾आज ब्रह्मलीन श्री लक्ष्मीनारायण पुरोहित जी हमारे बीच में नही है। लेकिन आप ने समा हित में जो भी कार्य किये, एवं जो भी आपकी मंशा पुर्ण नही हो पाई हो लेकिन हमारे मस्तिष्क में आप की यादे आप के द्वारा समाजहित में आपके अथक प्रयास सदैव स्मरण बनके एक अमिट छाप के रूप में सदैव हमारे अंतर मन को विचलित करते रहेंगे। में आराध्य देव श्री लक्ष्मीनारायण भगवान से यहीं यही प्रार्थना करता हुं कि प्रभू आप की आत्मा को शांति प्रदान कर, आपको वैकुण्ठ में जगह प्रदान करें। यह लेख किसी की भावना को आहट करने के लिए प्रकाशित नहीं किया जा रहा है, लेकिन किसी के मन में कोई टीस अधुरी रह जाए तो उसे समाज बंधुओं के बीच बताना भी पड़ेगा ओर प्रभु की खोज में पूछना भी पड़ेगा...अब कितने साल तक पूर्वी क्षेत्र में आज भी मंदिर वीरान पड़ा है...उसमें आज भी श्री चारभुजा जी की मूर्ति स्थापित होने का इंतजार हो रहा...प्रभु कब लौट के आओगे...आओ ओर सबके मन में सुख शांति ओर अमन बना रहे।
● पालीवाल वाणी ब्यूरो-Sunil paliwal-Pulakit Purohit... ✍
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